चंडीगढ़: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हाल ही में बाल गृहों का ऑडिट कराया. जिसमें पता चला कि देश में 40 प्रतिशत ऐसे केंद्र हैं, जिनमें बच्चों के शारीरिक या यौन शोषण को रोकने के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है. ऐसे में ईटीवी भारत ने हरियाणा के बाल गृहों पर रिपोर्ट बनाई. जिसमें जानना चाहा कि हरियाणा में कितने बाल गृह चलाए जा रहे हैं. क्या सभी नियमों के मुताबिक चल रहे हैं और बच्चों के लिए उनमें क्या सुविधाए हैं.
ये भी पढ़ें- हरियाणा साहित्य अकादमी ने साल 2017-19 पुरस्कारों के लिए किया साहित्यकारों का चयन
जिसमें पता चला कि बाल कल्याण परिषद, डब्ल्यूसीडी और रेड क्रॉस ये तीनों 85 से भी ज्यादा चिल्ड्रन्स होम्स चला रहे हैं. इनमें निजी संस्था और एनजीओ 50 से अधिक चाइल्ड केअर इंस्टीट्यूशन चला रहे हैं. इनमें से 64 रजिस्टर हैं जबकि 21 रजिस्ट्रेशन के लिए अंडर प्रोसेस हैं.
हरियाणा में साल 2012 में रोहतक में स्थिति अपना घर में यौन शोषण का मामला सामने आया था. जिसके बाद से नियमों को और भी सख्त कर दिया गया. बाल गृह में रहने वाले बच्चों की निगरानी के लिए हरियाणा सरकार के अधिकारियों, न्यायाधीशों, अधिकारियों और मंत्रियों की विजिट जारी रहती है. बाल गृह में शिकायत बॉक्स लगाया गया है. इसके साथ सीसीटीवी से माइक्रो स्तर पर निगरानी का दावा किया गया है.
ये भी पढ़ें- पूर्व सीएम ओपी चौटाला की रिहाई वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच को ट्रांसफर
हरियाणा में बाल गृहों की स्तिथी को लेकर पंचकूला के शिशु ग्रह समेत हरियाणा बाल कल्याण परिषद की तरफ से कुल 11 बाल गृह चलाए जा रहे हैं. जहां अनाथ बच्चों के भरण पोषण से लेकर हर तरह की सुविधा दी जा रही हैं. वहीं यौन शोषण के मामले सामने आने के बाद इसको लेकर नियम सख्त किए गए हैं. हरियाणा बाल कल्याण परिषद के मानद महासचिव कृष्ण ढुल ने बताया कि 8 चिल्ड्रन होम और तीन एडॉप्शन सेंटर उनकी काउंसिल की देख रेख में चल रहे हैं. बड़े बच्चों के लिए चिल्ड्रन्स होम्स और छोटे बच्चे जिनमें 6 साल तक के बच्चे मौजूद हैं. ऐसे बच्चों के लिए शिशु गृह चलाए जा रहे हैं. जिनमे 50 की संख्या रहती हैं.
बजट को लेकर पूछे सवाल पर कृष्ण ढुल ने बताया कि सरकार की तरफ से बजट बढ़ाया भी गया है. डोनेशन भी लोगों की तरफ से बच्चों के लिए आती है. बजट सेटिस्पेक्टरी है. स्टेट हेडक्वार्टर, अपातस्तिथि के लिए 50 लाख का बजट रखा जाता है. इसके अलावा एनजीओ की तरफ से चलाए जा रहे शेल्टर होम में नियम तय किए गए हैं. जैसे- कितने बच्चों को कितने रूम्स में रखा जा सकता है. कितने सीसीटीवी होने चाहिए. कितना स्टाफ होना चाहिए. कैसे बच्चों पर नजर रखनी चाहिए.
ये भी पढ़ें- बॉलीवुड में एक्टिंग के अलावा हैं अपार संभावनाए, युवा टेक्नीकल फिल्ड भी अपनाएं: गौरव गिल
लावारिस बच्चों के मामले में पहले बच्चे का मेडिकल किया जाता है. इसके बाद बच्चे को सीडब्ल्यूसी के पास पेश किया जाता है. जिसके बाद सीडब्ल्यूसी तय करता है कि बच्चे को किस शेल्टर होम में भेजा जाए. वहीं बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया भी काफी अहम रहती है. कारा के माध्यम से बच्चों को गोद दिया जाता है, वहीं फैमिली की पूरी पड़ताल की जाती है. बहुत सी चीजों को देखने के बाद गोद देने का फैसला किया जाता है.