चंडीगढ़: तीन कृषि कानूनों को लेकर देश में बवाल मचा है. इन कानूनों का चौतरफा विरोध देखने को मिल रहा है. कृषि कानूनों को लेकर हरियाणा की राजनीति भी अपना रुख बदल रही है और इसकी वजह है हरियाणा में हुए किसानों के साथ विपक्ष का प्रदर्शन. वहीं 10 सितंबर को कुरुक्षेत्र के पिपली में हुआ लाठीचार्ज दोनों ही पार्टियों के बीच दरार का काम कर रही है.
जेजेपी पर बढ़ा राजनीतिक दबाव
पंजाब अकाली दल की नेता और मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद जेजेपी पर राजनीतिक दबाव बढ़ गया है. कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि अगर जेजेपी किसानों के हितों को समझती तो बीजेपी से समर्थन वापस ले लेती, लेकिन इनको किसानों से कोई सरोकार नहीं है.
राहुल की रैली में भी निशाने पर थी जेजेपी
वहीं 6 अक्टूबर को हुई राहुल गांधी की ट्रैक्टर यात्रा में भी इस गठबंधन को लेकर सवाल खड़े किए गए. राहुल गांधी ने बीजेपी और जेजेपी गठबंधन पर किसान विरोधी होने का आरोप भी लगाया. ऐसे में जेजेपी नेताओं को मानसिक रूप से भी बीजेपी का सर्मथन करने पर राजनैतिक हानि होने की आशंका है.
किसान संगठनों की तरफ से भी इस्तीफे का दबाव
जेजेपी पर सिर्फ राजनीतिक दबाव ही नहीं बल्कि किसानों की तरफ से भी जवाबदेही का बोझ बढ़ता जा रहा है. भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी भी उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं. किसानों के नाम पर वो तो यहां तक कह चुके हैं कि दुष्यंत चौटाला को शर्म आनी चाहिए.
क्या मानते हैं राजनीतिक जानकार ?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस समय जेजेपी पर सबसे ज्यादा दबाव है, क्योंकि ये वो पार्टी है जो खुद को किसान हितैषी बताती है और देवीलाल के नाम पर राजनीति करती है. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस दबाव से जेजेपी और बीजेपी के रिश्तों पर कोई असर पड़ेगा या नहीं ?
ऐसे में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन किसानों के मुद्दे पर बेहद नाजुक स्थिति में है. बीजेपी के केंद्रीय स्तर के फैसले पर जेजेपी के सामने दो ही विकल्प बचते हैं या तो तमाम आरोपों को मौन स्वीकार्यता के साथ गठबंधन का धर्म निभाए या फिर दबाव में आकर खुद को किसान हितैशी पार्टी साबित करने के लिए बीजेपी का साथ छोड़ दे.
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