पानीपत: इतिहास के नजरिए से हरियाणा के पानीपत का एक अहम योगदान रहा है. बात अगर पानीपत के मराठा देवी मंदिर की करें तो यहां का इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाव ने कराया था. कहते हैं कि मराठों में देवी मां की प्रति पर अटूट श्रद्धा थी. लोगों का मानना है कि इस प्राचीन मराठा देवी मंदिर में जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगते हैं वह जरूर पूरी होती है.
क्या है मंदिर का इतिहास: इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसी सच्चाई भी छिपी हुई है, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं. लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक देवी मंदिर को मराठों ने बनाया (Faith on Tulja Temple in Panipat) था और मराठों ने ही इस मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण करवाया था. लेकिन इतिहासकार रमेश पुहाल कहते हैं कि यहां मंदिर पहले से ही बना हुआ था लेकिन मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के युग में (History of maratha) है.
पानीपत का तीसरा युद्ध: 1761 में मुगलों और मराठों के बीच तीसरा युद्ध हुआ था. युद्ध से पहले 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में जब सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे. तभी वहां से सदाशिव भाऊ की फौज को अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण करने की सूचना मिली और उन्हें पता चला कि वह सोनीपत के गन्नौर के पास आ पहुंचा है.
![Navratri special 2022](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16542551_devi.jpg)
पानीपत वापस हुई मराठों की फौज: अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण को सुनते ही मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई और एक सुरक्षित स्थान को ढूंढ़ते हुए पानीपत के उस जगह पहुंच गई जहां आज यहां देवी मंदिर है. देवी मंदिर में उस समय पुजारी बालेराम हुआ करते थे और उन्होंने बालेराम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया था. कहा जाता है कि पेशवाओं की महिलाएं अपने साथ देवी तुलजा की मूर्ति भी लेकर आई थी. वह इन मूर्तियों की सुबह और शाम पूजा किया करती थी. महिलाओं ने यहां एक तालाब स्थापित किया और वहीं मूर्ति की स्थापना कर दी. 1761 के युद्ध के बाद मराठी यहां से गवालियर चले गए.
![Navratri special 2022](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16542551_devi2.jpg)
1771 में मराठों ने शिवालय का निर्माण कराया: 10 साल बाद यानी 1771 में मराठों ने यहां दोबारा पहुंचकर एक छोटे से शिवालय का निर्माण करवाया और देवी तुलजा की तस्वीर भी वहीं स्थापित की थी. इतिहासकारों का मानना है कि आज भी देवी मंदिर में स्थापित मूर्ति देवी तुलजा हैं, जिसे वह पूजते थे. आज इस मंदिर को और देवी तुलजा की मूर्ति को मां दुर्गा का रूप दे दिया गया है. असल में इस मंदिर का निर्माण मराठा ने नहीं करवाया है. यह मंदिर पहले से ही यहां स्थापित है, जोकि छोटे मंदिरों के रूप में थे. इतिहासकारों का मानना है कि देवी तुलजा की मूर्ति जो पेशवा साथ लाए थे, उसके ऊपर हीरे जड़े हुए थे और आज वह हीरे सिर्फ मूर्ति की आंखों में ही हैं.
![Navratri special 2022](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16542551_devi1.jpg)
पानीपत में तुलजा मंदिर की मान्यता: नवरात्रि के समय (Navratri special 2022) देवी तुलजा के मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का देवी के प्रति असीम विश्वास है. मान्यता है कि इस मंदिर में आने से हर मनोकामना की पूर्ति होती है. शारदीय नवरात्रि 2022 (Sharadiya Navratri 2022) में मां के मंदिर में धूम देखी जा रही है.