यमुनानगर: हरियाणा के यमुनानगर जिले में किसानों ने अर्धनग्न होकर आज सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी ( farmers Protest in yamunanagar) की. किसानों ने सरकार पर अनदेखी के आरोप लगाए हैं. किसानों ने सरकार को चेतावनी दी कि जब तक मुश्तरका शामलात जमीनों को लेकर अपना फैसला नहीं पलटती तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा. बता दें कि पिछले कई दिनों से किसान मुश्तरका जमीनों को लेकर लगातार सरकार से खफा चल रहे हैं. इसको लेकर बीते 6 सितंबर को भारतीय किसान यूनियन ने जाटधर्मशाला में बैठक भी की थी.
नाराज किसानों ने यमुनानगर के कन्हैया चौक से किसानों ने पैदल मार्च निकाला और जगाधरी लघु सचिवालय तक सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.देह शामलात और मुश्तरका जमीनों को लेकर किसानों ने सरकार को फिर खरी खोटी सुनाई और किसानों को दबाने और कुचलने के गंभीर आरोप लगाए. गुस्साए किसानों ने लघु सचिवालय के बाहर मुश्तरका जमीनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर की प्रतियां जलाई. किसानों का कहना है अगर सरकार हमारे अर्धनग्न प्रदर्शन की अनदेखी करती है तो हम गुरनाम सिंह चढ़ूनी से मिलकर जल्द आगे की रणनीति बनाएंगे .
क्या है पूरा मामला - दरअसल शामलात देह और जुमला मुश्तरका मालकान भूमि (Jumla Mushtarka Malkan Bhoomi) पंजाब विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 (punjab village common Land act) के तहत काश्तकारों और काब्जिों के नाम हो चुकी थी. माल रिकॉर्ड के अनुसार किसान इनके मालिक हैं और वो इनको बेच, खरीद और रेहन कर सकते हैं. इन जमीनों पर मकान, दुकान, फैक्टरी भी बनी हुई हैं. साल 1992 में तत्कालीन सरकार ने विलेज काॅमन लैंड रेगुलेशन अधिनियम 1961 में संशोधन कर जुमला मुस्तरका मालकान जमीनों को पंचायती जमीन करार दे दिया था.
सरकार के इस फैसले के विरोध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में किसानों ने याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने फैसला किसानो के पक्ष में दिया था. लेकिन 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से शामलात देह और जुमला मुस्तरका मालकान भूमि वापस पंचायतों और नगरपालिकाओं को करने के आदेश दिए हैं. हरियाणा सरकार के वित्त आयुक्त ने इस फैसले को लागू करवाने के लिए 21 जून 2022 को सभी जिला उपायुक्तों को लेटर जारी कर दिया था.
है शामलात देह जमीन- शामलात देह जमीन (what is shamlat deh land) वो होती है जिसे आजादी से पहले से खेती या अन्य किसी कार्य में कोई प्रयोग करता आ रहा है. आजादी के बाद ये जमीन काश्तकारों और काबिज लोगों के नाम कर दी गई थी. दशकों से इन जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है और जमीनें अब उनके नाम हैं.
जुमला मुश्तरका मालकान भूमि- ये वो जमीनें हैं जिन्हें गांव के लोगों ने सामाजिक कार्यो जैसे गौशाला, तालाब व अन्य किसी काम के लिए लिया था. इनमें से जो जमीन प्रयोग के बाद बची वो उन्हीं काश्तकारों और काब्जिों के नाम हैं जिन्होंने दी थी. इन्हें जमीनों को जुमला मुस्तरका मालकान भूमि कहा जाता है. इन जमीनों को भी सुप्रीम कोर्ट ने पंचायतों और नगरपालिकाओं के नाम करने के आदेश दिए हैं.
क्या कहता है पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट: सन 1992 में सरकार ने पंजाब विलेज कॉमन लैंड (रेगुलेशन) एक्ट 1961 में संशोधन कर जुमला-मुस्तरका मालकान जमीनो को पंचायती जमीन करार दे दिया था. जिसे पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय (चंडीगढ़) में किसानों द्वारा चुनौती दी गई थी और उच्च न्यायालय ने फैसला किसानों के पक्ष में दिया था. फैसले में कहा गया था कि जुमला-मुस्तरका मालकान जमीन हिस्सेदार किसानो की मलकियत है और इसे उनके हिस्सेदारों में तकसीम कर दिया जाए. लेकिन इसके बाद भी सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और और अब सरकार ने आजादी के बाद हुए पहले रेवेन्यू सेटलमेंट के अनुसार सभी मुस्तरका-मालकान व शामलात-देह की सभी तरह की जमीनो को पंचायत-देह में तबदील करने का आदेश जारी कर दिया है जोकि न्याय संगत नहीं है.