करनाल: करनाल के गांव फरीदपुर के पास यमुना क्षेत्र में बीस दिन पहले शिवलिंग और नंदी की मूर्ति के अवशेष मिलने के बाद अब पुरातत्व विभाग की टीम ने यमुना में आगे खुदाई का कार्य शुरू कर दिया है. पुरातत्व विभाग व खंड विकास एवं पंचायत विभाग के अधिकारियों की देखरेख में पोपलेन से खुदाई करवाई गई. खुदाई के समय कुछ ईंट भी मिली हैं. टीम ने इस दौरान शिवलिंग और नंदी के साथ-साथ स्तंभों की जांच भी की.
20 दिन पहले मिले थे शिवलिंग और नंदी
बता दें कि लगभग 20 दिन पहले करनाल के गांव फरीदपुर के पास यमुना में रेत की खुदाई का कार्य चल रहा था. इसी दौरान पोपलेन के ड्राईवर को रेत में एक शिवलिंग,नंदी और पिलर दिखाई दिए. पुराने शिवलिंग और नंदी मिलने की सूचना ग्रामीणों को मिली तो ग्रामीणों ने उनकी स्थापना गांव के मंदिर में करवा दी.
सीएम ने भी की थी पूजा
बाद में प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और विधायक हरविंद्र कल्याण ने गांव में दौरा किया और शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी. सीएम ने कहा था कि यमुना क्षेत्र में अभी खुदाई का कार्य करवाया जाएगा. अगर और भी अवशेष मिलते हैं तो उसके बाद पुरातत्व विभाग पूरे मामले की जांच करेगा.
पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची
वीरवार को पुरातत्व विभाग के सहायक निदेशक राजवेंद्र, खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी के सचिव राजेश रोहिला, सचिव सोनू और अन्य कर्मचारी यमुना क्षेत्र में पहुंचे और खुदाई का कार्य शुरू कर दिया. लगभग दो घंटे तक खुदाई का कार्य चला. इस दौरान विभागीय अधिकारियों को कुछ ईंटें भी मिली हैं.
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शिवलिंग और नंदी का किया निरीक्षण
बाद में अधिकारियों और कर्मचारियों का दल गांव में पहुंचा और शिवलिंग और नंदी के साथ-साथ स्तंभों का भी बारिकी से निरीक्षण किया. अधिकारियों ने बताया कि यमुना में मंदिर था या नहीं, इसका कोई अनुमान नहीं है, क्योंकि ईंटों पर किसी प्रकार की मिट्टी या चूना दिखाई नहीं दे रहा है.
कुछ और अवशेषों की तलाश
अनुमान है कि शिवलिंग,नंदी और ईंटें बहकर आई हों. अधिकारियों के अनुसार रेत की दीवार खुदाई से ज्यादा ऊंचाई पर होने से खुदाई का कार्य ठीक तरीके से नहीं हो पाया, इसलिए विभाग ने रेत की दीवार को समतल करने के निर्देश दे दिए हैं, ताकि आस पास के क्षेत्र में कुछ ओर अवशेष मिलता है या नहीं, इसका पता लगाया जा सके.
आकृतियां 8वीं-9वीं शताब्दी की हो सकती हैं
पुरातत्व विभाग के अधिकारी मानते है कि स्तंभों पर जो आकृतियां मिली हैं. वह 8वीं-9वीं शताब्दी की दिखाई पड़ती हैं, लेकिन जब तक इन अवशेषों से संबंधित कोई और अन्य अवशेष नहीं मिलते हैं. तब तक इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है कि यह 8वीं या 9वीं शताब्दी की है. इसके अलावा जो ईंट साइट से मिली हैं, अनुमान है कि वे कुषाण काल की है, जबकि शिवलिंग और अन्य अवशेष 8वीं या 9वीं सदी के हैं. दोनों एक जगह पर कैसे आए इसको लेकर भी अध्ययन किया जाएगा.
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