हिसार: हरियाणा में पराली जलाने का मामला (Stubble burning case in Haryana) हर साल सामने आता हैं. इसी के चलते अक्टूबर-नवंबर महीने में प्रदूषण भी बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई एफआईआर व अन्य कई नियम कानून बना चुकी है लेकिन अब कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. पिछले 4 साल में हरियाणा सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 693.25 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. बावजूद इसके साल दर साल पराली जलाने के मामले घटने की बजाय बढ़ रहे हैं.
पिछले 4 साल में हरियाणा कृषि कल्याण विभाग द्वारा 693.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इन पैसों से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 31 हजार चार सौ छाछठ कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए. इसके अलावा 41 हजार किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है. हरियाणा में पराली प्रबंधन (stubble management in haryana) के लिए सरकार इन उपकरणों पर 50 से 80 फीसदी तक छूट दे रही है. व्यक्तिगत मशीन लेने पर 50 फीसदी और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए मशीन लेने पर 80 फीसदी छूट दी जाती है. इतनी मशीनें दिए जाने के बाद भी पिछले सालों की तुलना में पराली जलाने का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा (stubble burning Case increased in Haryana) है.
साल | पराली जलाने का क्षेत्र | खर्च |
2018 | 2.45 लाख हेक्टेयर | 132.86 करोड़ |
2019 | 2.37 लाख हेक्टेयर | 101.49 करोड़ |
2020 | 2.16 लाख हेक्टेयर | 205.75 करोड़ |
2021 | 3.54 लाख हेक्टेयर | 151.39 करोड़ |
सरकार द्वारा खर्च किए गए बजट और किसानों को दी गई मशीनों को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि इस पूरे बजट में बड़ा गोलमाल है. हरियाणा में करीब 6500 गांव है और जिनमें से दो से ढाई हजार गांव में ही धान की फसल उगाई जाती है. आंकड़ों के हिसाब से हर गांव में करीब 20 मशीन अकेले किसान के पास और 15 कस्टम हायरिंग सेंटर होने चाहिए लेकिन ऐसा हकीकत में नहीं है. इसमें पैसों का गोलमाल किया गया है. कृषि विभाग द्वारा किसानों को समझाने के लिए बजट तो दिखाया जाता है लेकिन कोई ग्राउंड पर जाकर किसानों से बात ही नहीं करता. सरकार द्वारा मशीनों को बांटने और पराली प्रबंधन पर खर्च करने के लिए जो पॉलिसी सरकार की तरफ से बनाई गई है उसमें किसी भी तरह से किसान नेताओं से सुझाव नहीं लिए गए.