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हरियाणा में पराली प्रबंधन पर 4 साल में खर्च किये गए 693 करोड़, घटने के बजाय बढ़े मामले - कृषि विभाग

हरियाणा में पराली प्रबंधन पर राज्य सरकार ने पिछले चार साल में 693.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इन पैसों से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 31 हजार चार सौ छाछठ कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए. इसके अलावा 41 हजार किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है

stubble management in haryana
हरियाणा में पराली प्रबंधन पर 4 साल में खर्च किये गए 693 करोड़, घटने के बजाय बढ़े मामले
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Published : Sep 17, 2022, 1:56 PM IST

हिसार: हरियाणा में पराली जलाने का मामला (Stubble burning case in Haryana) हर साल सामने आता हैं. इसी के चलते अक्टूबर-नवंबर महीने में प्रदूषण भी बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई एफआईआर व अन्य कई नियम कानून बना चुकी है लेकिन अब कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. पिछले 4 साल में हरियाणा सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 693.25 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. बावजूद इसके साल दर साल पराली जलाने के मामले घटने की बजाय बढ़ रहे हैं.


पिछले 4 साल में हरियाणा कृषि कल्याण विभाग द्वारा 693.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इन पैसों से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 31 हजार चार सौ छाछठ कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए. इसके अलावा 41 हजार किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है. हरियाणा में पराली प्रबंधन (stubble management in haryana) के लिए सरकार इन उपकरणों पर 50 से 80 फीसदी तक छूट दे रही है. व्यक्तिगत मशीन लेने पर 50 फीसदी और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए मशीन लेने पर 80 फीसदी छूट दी जाती है. इतनी मशीनें दिए जाने के बाद भी पिछले सालों की तुलना में पराली जलाने का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा (stubble burning Case increased in Haryana) है.

stubble management in haryana
किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में प्रदेश में करीब 14.63 लाख हेक्टेयर में धान की फसल उगाई गई थी. लेकिन काफी कोशिशों और सख्त नियम कानूनों के बाद भी 3.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पराली जलाई गई. इतना ही नहीं यह मामले पिछले 4 सालों की तुलना में साल 2021 में सबसे ज्यादा पाए गए हैं. इस बात की जानकारी हरियाणा कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार मिली है. इसके अलावा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) से आरटीआई के माध्यम से आंकड़े जुटाए गए हैं.
साल पराली जलाने का क्षेत्रखर्च
2018 2.45 लाख हेक्टेयर 132.86 करोड़
20192.37 लाख हेक्टेयर 101.49 करोड़
2020 2.16 लाख हेक्टेयर 205.75 करोड़
20213.54 लाख हेक्टेयर 151.39 करोड़

सरकार द्वारा खर्च किए गए बजट और किसानों को दी गई मशीनों को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि इस पूरे बजट में बड़ा गोलमाल है. हरियाणा में करीब 6500 गांव है और जिनमें से दो से ढाई हजार गांव में ही धान की फसल उगाई जाती है. आंकड़ों के हिसाब से हर गांव में करीब 20 मशीन अकेले किसान के पास और 15 कस्टम हायरिंग सेंटर होने चाहिए लेकिन ऐसा हकीकत में नहीं है. इसमें पैसों का गोलमाल किया गया है. कृषि विभाग द्वारा किसानों को समझाने के लिए बजट तो दिखाया जाता है लेकिन कोई ग्राउंड पर जाकर किसानों से बात ही नहीं करता. सरकार द्वारा मशीनों को बांटने और पराली प्रबंधन पर खर्च करने के लिए जो पॉलिसी सरकार की तरफ से बनाई गई है उसमें किसी भी तरह से किसान नेताओं से सुझाव नहीं लिए गए.

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2021 में प्रदेश में करीब 14.63 लाख हेक्टेयर में धान की फसल उगाई गई थी
किसान समूह के लीडर विजय श्योराण ने इस पूरे विषय को लेकर कहा कि किसानों का पराली प्रबंधन को लेकर मार्गदर्शन बेहद प्रभावी तरीके से नहीं किया जा रहा है. वहीं पराली प्रबंधन के अन्य तकनीक ज्यादा जटिल होने के कारण किसान अभी नहीं अपना पा रहे हैं. बेहतर यह होगा कि किसानों की पराली के अन्य प्रयोग किए जाएं जिनमें बिजली बनाना, बायोफ्यूल बनाना, बायो कोयले बनाना आदि तकनीक हो सकती हैं.

हिसार: हरियाणा में पराली जलाने का मामला (Stubble burning case in Haryana) हर साल सामने आता हैं. इसी के चलते अक्टूबर-नवंबर महीने में प्रदूषण भी बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई एफआईआर व अन्य कई नियम कानून बना चुकी है लेकिन अब कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. पिछले 4 साल में हरियाणा सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 693.25 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. बावजूद इसके साल दर साल पराली जलाने के मामले घटने की बजाय बढ़ रहे हैं.


पिछले 4 साल में हरियाणा कृषि कल्याण विभाग द्वारा 693.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इन पैसों से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 31 हजार चार सौ छाछठ कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए. इसके अलावा 41 हजार किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है. हरियाणा में पराली प्रबंधन (stubble management in haryana) के लिए सरकार इन उपकरणों पर 50 से 80 फीसदी तक छूट दे रही है. व्यक्तिगत मशीन लेने पर 50 फीसदी और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए मशीन लेने पर 80 फीसदी छूट दी जाती है. इतनी मशीनें दिए जाने के बाद भी पिछले सालों की तुलना में पराली जलाने का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा (stubble burning Case increased in Haryana) है.

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किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, मलचर आदि मशीने दी गई है
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में प्रदेश में करीब 14.63 लाख हेक्टेयर में धान की फसल उगाई गई थी. लेकिन काफी कोशिशों और सख्त नियम कानूनों के बाद भी 3.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पराली जलाई गई. इतना ही नहीं यह मामले पिछले 4 सालों की तुलना में साल 2021 में सबसे ज्यादा पाए गए हैं. इस बात की जानकारी हरियाणा कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार मिली है. इसके अलावा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) से आरटीआई के माध्यम से आंकड़े जुटाए गए हैं.
साल पराली जलाने का क्षेत्रखर्च
2018 2.45 लाख हेक्टेयर 132.86 करोड़
20192.37 लाख हेक्टेयर 101.49 करोड़
2020 2.16 लाख हेक्टेयर 205.75 करोड़
20213.54 लाख हेक्टेयर 151.39 करोड़

सरकार द्वारा खर्च किए गए बजट और किसानों को दी गई मशीनों को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि इस पूरे बजट में बड़ा गोलमाल है. हरियाणा में करीब 6500 गांव है और जिनमें से दो से ढाई हजार गांव में ही धान की फसल उगाई जाती है. आंकड़ों के हिसाब से हर गांव में करीब 20 मशीन अकेले किसान के पास और 15 कस्टम हायरिंग सेंटर होने चाहिए लेकिन ऐसा हकीकत में नहीं है. इसमें पैसों का गोलमाल किया गया है. कृषि विभाग द्वारा किसानों को समझाने के लिए बजट तो दिखाया जाता है लेकिन कोई ग्राउंड पर जाकर किसानों से बात ही नहीं करता. सरकार द्वारा मशीनों को बांटने और पराली प्रबंधन पर खर्च करने के लिए जो पॉलिसी सरकार की तरफ से बनाई गई है उसमें किसी भी तरह से किसान नेताओं से सुझाव नहीं लिए गए.

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2021 में प्रदेश में करीब 14.63 लाख हेक्टेयर में धान की फसल उगाई गई थी
किसान समूह के लीडर विजय श्योराण ने इस पूरे विषय को लेकर कहा कि किसानों का पराली प्रबंधन को लेकर मार्गदर्शन बेहद प्रभावी तरीके से नहीं किया जा रहा है. वहीं पराली प्रबंधन के अन्य तकनीक ज्यादा जटिल होने के कारण किसान अभी नहीं अपना पा रहे हैं. बेहतर यह होगा कि किसानों की पराली के अन्य प्रयोग किए जाएं जिनमें बिजली बनाना, बायोफ्यूल बनाना, बायो कोयले बनाना आदि तकनीक हो सकती हैं.
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