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Surajkund Mela 2022: राजस्थान की स्वर्ण मुनव्वत कला की विदेशों में भी डिमांड, 70 साल के रिमोट साइंटिस्ट को मिल चुके हैं कई अवॉर्ड - 35वें सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले

35वें सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में आए राजस्थान के शिल्पकार की कलाकृतियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. शिल्पकार डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा रिमोट साइंटिस्ट के पद से रिटायर हुए है और 70 साल की उम्र में खूबसूरत कलाकृतियां तैयार कर रहे हैं.

Rajasthan gold emboss painting
राजस्थान की स्वर्ण मुनव्वत कला
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Published : Mar 26, 2022, 4:50 PM IST

फरीदाबाद: 35वें सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में देश के कोने-कोने से शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. इन्हीं में शामिल हैं. राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले 70 वर्षीय शिल्पकार डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा. स्वर्ण मुनव्वत कला (Gold Emboss Painting) में महारत हासिल कर चुके डॉ. शर्मा रिमोट साइंटिस्ट भी हैं. इतना ही नहीं विश्व के प्रसिद्ध चित्रकार न्यूयॉर्क के फ्रंसिस्को क्लीमेंट को भी अपना हुनर दिखा चुके हैं.

डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा महज 12 साल की उम्र से स्वर्ण मुनव्वत कला सीख ली थी. नौकरी के दौरान उनका इस कला से मोह कम नही हुआ. ड्यूटी के बाद मिलने वाले समय में वो इस कला पर हाथ साफ करते. आज उनकी उम्र करीब 70 वर्ष हो चुकी है, लेकिन कला के प्रति उनका जुनून कम नहीं हुआ है. सूरजकुंड मेले में शर्मा द्वारा लाई गई विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

राजस्थान के शिल्पकार डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

डॉ. शर्मा को मिल चुका है कई अवॉर्ड- साल 1992-93 में स्टेट अवॉर्ड और 1999 में नेशनल अवॉर्ड और साल 2019 में कला रत्न सम्मान से नवाजा जा चुका है. साल 1954 में डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा का जन्म हुआ. 12 साल की उम्र में कला के प्रति उनका रुझान पैदा हुआ और विभिन्न कलाओं पर रिसर्च करते रहे. एमए, बीएड व पीएचडी करने के बाद साल 1979 में उनका चयन स्टेट रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर जोधपुर में अनुसंधान अधिकारी के रूप में हो गया. 34 साल तक रिमोट विषय पर रिसर्च करते रहे, लेकिन कला के प्रति उनका जुनून खत्म नहीं हुआ.

Rajasthan gold emboss painting
राजस्थान की स्वर्ण मुनव्वत कला से कलाकृति तैयार करते शिल्पकार. डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा.

इस तरह तैयार होती है कलाकृति- उन्होंने बताया कि स्वर्ण मुनव्वत कला में सॉफ्ट स्टोन के चूर और पके मिट्टी के बर्तनों के चूर को मिलाकर कलाकृति बनाई जाती है. पुरानी मिट्टी के घड़े आदि जो टूट जाते हैं, उन्हें पीसकर कपड़े से छनाई करते हैं. उससे निकलने वाले चूर में पेड़ के गोंद को मिलाकर मटेरियल तैयार किया जाता है. इसके पहले कपड़े को जमीन में चिपकाकर उसे ड्राइंग की जाती है. बेस बनने के बाद पेड़ के गोंद और पके मिट्टी के चूर से तैयार हुए पेस्ट को ब्रश के जरिये आकृति को आकार दिया जाता है.

ये भी पढ़ें: Surajkund Mela 2022: उत्तराखंड का ये संगठन स्वच्छ भारत के सपने को कर रहा साकार, प्लास्टिक की जगह रिंगाल से बने उत्पाद लाए

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फरीदाबाद: 35वें सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में देश के कोने-कोने से शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. इन्हीं में शामिल हैं. राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले 70 वर्षीय शिल्पकार डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा. स्वर्ण मुनव्वत कला (Gold Emboss Painting) में महारत हासिल कर चुके डॉ. शर्मा रिमोट साइंटिस्ट भी हैं. इतना ही नहीं विश्व के प्रसिद्ध चित्रकार न्यूयॉर्क के फ्रंसिस्को क्लीमेंट को भी अपना हुनर दिखा चुके हैं.

डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा महज 12 साल की उम्र से स्वर्ण मुनव्वत कला सीख ली थी. नौकरी के दौरान उनका इस कला से मोह कम नही हुआ. ड्यूटी के बाद मिलने वाले समय में वो इस कला पर हाथ साफ करते. आज उनकी उम्र करीब 70 वर्ष हो चुकी है, लेकिन कला के प्रति उनका जुनून कम नहीं हुआ है. सूरजकुंड मेले में शर्मा द्वारा लाई गई विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

राजस्थान के शिल्पकार डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

डॉ. शर्मा को मिल चुका है कई अवॉर्ड- साल 1992-93 में स्टेट अवॉर्ड और 1999 में नेशनल अवॉर्ड और साल 2019 में कला रत्न सम्मान से नवाजा जा चुका है. साल 1954 में डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा का जन्म हुआ. 12 साल की उम्र में कला के प्रति उनका रुझान पैदा हुआ और विभिन्न कलाओं पर रिसर्च करते रहे. एमए, बीएड व पीएचडी करने के बाद साल 1979 में उनका चयन स्टेट रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर जोधपुर में अनुसंधान अधिकारी के रूप में हो गया. 34 साल तक रिमोट विषय पर रिसर्च करते रहे, लेकिन कला के प्रति उनका जुनून खत्म नहीं हुआ.

Rajasthan gold emboss painting
राजस्थान की स्वर्ण मुनव्वत कला से कलाकृति तैयार करते शिल्पकार. डॉ. ज्योति स्वरूप शर्मा.

इस तरह तैयार होती है कलाकृति- उन्होंने बताया कि स्वर्ण मुनव्वत कला में सॉफ्ट स्टोन के चूर और पके मिट्टी के बर्तनों के चूर को मिलाकर कलाकृति बनाई जाती है. पुरानी मिट्टी के घड़े आदि जो टूट जाते हैं, उन्हें पीसकर कपड़े से छनाई करते हैं. उससे निकलने वाले चूर में पेड़ के गोंद को मिलाकर मटेरियल तैयार किया जाता है. इसके पहले कपड़े को जमीन में चिपकाकर उसे ड्राइंग की जाती है. बेस बनने के बाद पेड़ के गोंद और पके मिट्टी के चूर से तैयार हुए पेस्ट को ब्रश के जरिये आकृति को आकार दिया जाता है.

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