चंडीगढ़: हरियाणा पूर्व भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) सरकार ने साल 2014 में हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम बनाया गया था. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए हरियाणा के गुरुद्वारों का अधिकार हरियाणा की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को दे दिया है. जिसका सीधा असर हरियाणा और पंजाब की पंथक राजनीति पर पड़ना लाजमी है. एक तरफ जहां हरियाणा के सियासतदान इस फैसले के बाद पंथक समाज के लोगों को बधाई दे रहे हैं. वहीं पंजाब में इस फैसले को लेकर पंथक सियासत करने वाले परेशान और नाराज हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल (Manohar Lal) जो खुद पंजाबी समुदाय से आते हैं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि हरियाणा की स्वतंत्र समिति होने से निश्चित तौर पर प्रदेश में रहने वाले सिख और सशक्त बनेंगे. इतना ही नहीं उनका मानना है कि दूसरे प्रदेशों के सिखों में भी इसका अच्छा संदेश जाएगा. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी इस फैसले का स्वागत किया है. हुड्डा ने इसका श्रेय लेते हुए कहा कि हमारी सरकार के समय हमने जो एक्ट बनाया था, वह हरियाणा के सिखों के हित मे ही बनाया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उसके पक्ष में फैसला दिया है. जिसका वे स्वागत करते हैं.
हरियाणा में जहां कांग्रेस पार्टी इसका लाभ लेने के लिए अपने वक्त में एक्ट बनाए जाने का हवाला देकर पंथ वोट बैंक को अपने पक्ष में लेने की कोशिश करेगी, तो वहीं बीजेपी भी इसको भूनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी. लेकिन इसका सीधा नुकसान जो दिखाई दे रहा है वो पंजाब में पंथ की सियासत करने वाले अकाली दल को हो रहा है. इसलिए इस फैसले से वे सबसे ज्यादा परेशान भी दिखाई देते हैं. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर किसी पर पड़ रहा है तो वो है शिरोमणि अकाली दल. सबसे बड़ी मुश्किल उनके सामने खड़ी हो गई है. इसी वजह से वे इस फैसले से न सिर्फ नाखुश दिखाई देते हैं बल्कि पंथ की सबसे बड़ी संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के साथ खड़े दिखाई देते हैं.
इसी वजह से शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन एक्ट-2014 को मान्यता दिये जाने के फैसले को पंथ पर हमला करार दिया है. वहीं अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन डालने की तैयारी में है. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो अन्य राज्य भी अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर एसजीपीसी की देखरेख से बाहर निकलकर अपनी अलग कमेटी बनाने के लिए लामबंद हो सकते हैं.
पहले ही दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अलग हो चुकी है. वहीं पंजाब और हरियाणा की बात की जाए तो दोनों राज्यों में करीब 64 फीसदी के करीब आबादी पंथक समाज की है. ऐसे में पंथ की राजनीति करने वाले दल पर इसका सीधा असर होना भी लाजमी है. इस मामले का दूसरा पहलू सामाजिक भी है. कुछ जानकार कहते हैं कि ऐसा होने से पंथ समाज में बंटवारा भी होता दिख रहा है. इसका सीधा असर राजनीति से ज्यादा सामाजिक भी होगा.
इस मसले पर पंथक मामलों के जानकार प्रोफेसर मंजीत सिंह कहते हैं कि ऐसे फैसलों से सिख संस्थाएं कमजोर होती हैं. वे कहते हैं कि एक सिंगल एसजीपीसी ऑल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट के तहत काम करती है. दिल्ली, हजूर साहिब, पटना साहिब और अब हरियाणा अलग हो गया है. आगे अन्य राज्य भी इस तरह से अलग होने की कोशिश करेंगे. वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि ईसाई धर्म रोम से संचालित होता है, तो वहीं मुस्लिम धर्म मक्का से संचालित होता है.
प्रोफेस मंजीत सिंह कहते है कि इस तरह के फैसले से सिख विचारधारा अलग-अलग हो जाएगी. इससे यह छोटे छोटे धड़ों में बंट जाएगी. कई लोगों को इससे एतराज है कि एसजीपीसी सिर्फ अकाली दल ही क्यों कंट्रोल करे, वो समस्या अपने आप में है, लेकिन इसको सुधारने के लिए यह तरीका सही नहीं है. इससे तो पंथ के मूल पर असर पड़ेगा. इसका नतीजा भी सामने आ रहा है. दो पक्ष बन गए हैं और वे आपस में लड़ रहे हैं. दोनों पक्षों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को मध्यस्थ बना लिया है. जो वे कहेंगे वो ही दोनों पक्ष करेंगे.