चंडीगढ़: दिल्ली के बाद अब पंजाब से उठी आम आदमी पार्टी की आंधी ने हरियाणा में भी हलचल मचा दी है. खासकर कांग्रेस के अंदर खलबली एक बार फिर शुरू हो गई है. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस लगातार मंथन पर मंथन कर रही है. इन पांच राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार होने से पार्टी हाईकमान लगातार बैठकों में जुटा हुआ है. एक तरफ जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता हाईकमान से पार्टी में बदलाव के लिए गुहार लगा रहे हैं, तो वहीं हाईकमान भी अब सक्रिय होता दिखाई दे रहा है.
कांग्रेस पार्टी की देशभर के लगभग सभी राज्यों में हालत खराब हो रही है. इन हालातों में पार्टी चिंतन के दौर से गुजर रही है. इसको देखते हुए हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ राहुल गांधी 25 मार्च सुबह 11:30 बजे बैठक करेंगे. इस बैठक में हरियाणा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा, पार्टी के हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष भूपिंदर हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल, राष्ट्रीय महासचिव और हरियाणा कांग्रेस के प्रमुख नेता रणदीप सुरजेवाला, राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा, वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय यादव सहित कुछ और नेता बैठक में शामिल होंगे. इस बैठक में हरियाणा में कांग्रेस के सामने जो चुनौतियां हैं उसको लेकर चर्चा होगी.
हरियाणा में भी पार्टी लंबे समय से अपने संगठन का विस्तार नहीं कर पाई है. करीब 9 सालों से पार्टी संगठन हरियाणा में नहीं बन पाया है. अंदरूनी लडाई के चलते जिला इकाई भंग पड़ी है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जो मानी जाती रही है वह हरियाणा में पार्टी के कई धड़ों में बंटा होना है. काफी लंबे समय से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट पहले पार्टी अध्यक्ष रहे अशोक तंवर पर भारी रहा. वहीं वर्तमान में कुमारी सैलजा भी अपने अध्यक्ष कार्यकाल में अभी तक संगठन को खड़ा नहीं कर पाई हैं.
वर्तमान हालातों में इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि हरियाणा कांग्रेस के कई नेता पार्टी अध्यक्ष के चेहरे को बदलने की कवायद कर रहे हैं. इस बात की भी चर्चाएं हैं कि अध्यक्ष पद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा का नाम आगे किया जा रहा है. यानी पार्टी में हुड्डा गुट जिस तरीके से हावी है उसे देखते हुए हाईकमान के सामने हरियाणा में कई चुनौतियां खड़ी हुई दिखाई देती हैं. जिनका समाधान किए बगैर हरियाणा में फिर से कांग्रेस को खड़ा कर पाना पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहेगी.
हरियाणा कांग्रेस में लगातार गुटबाजी चल रही है. 2019 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अशोक तंवर (Ashok Tanwar) से हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष का पद छीन लिया गया और कुमारी सैलजा को कमान सौंपी गई. वहीं किरण चौधरी से सीएलपी का पद छीनकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दे दिया गया. कांग्रेस में कलह का हाल ये रहा कि प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद अशोक तंवर की मीटिंग में कोई विधायक नहीं पहुंचता था. ना ही भूपेंद्र हुड्डा कभी अशोक तंवर के साथ एक मंच पर दिखाई दिए. 2014 के बाद से ही कांग्रेस की जिला कार्यकारिणी भंग है. उसका गठन आज तक नहीं हो पाया है.
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2014 में कांग्रेस का हुआ बुरा हाल- 2014 में नरेंद्र मोदी की चली आंधी से हरियाणा भी अछूता नहीं रहा. पहले उसने लोकसभा चुनाव में 9 सीटें गंवाई उसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 15 सीटों से संतोष करना पड़ा. ये पहली बार था जब प्रदेश में कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार के बावजूद अपनी साख बचाने में कामयाब रही. बीजेपी को पूर्ण बहुमत से रोक दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने 31 सीटें जीती.
कांग्रेस की इस हालत के कारण क्या- राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुरेंद्र धीमान कहते हैं कि हमेशा से ही कांग्रेस में दो गुट रहे हैं, कई बार तो ये भी कहा गया कि ये कांग्रेस की रणनीति है, जो जातीय समीकरण साधने के लिए तैयार की जाती है. लेकिन अक्सर ये रणनीति से ज्यादा गुटबाजी ही नजर आई. इसीलिए 2014 के बाद से भजनलाल, राव इंद्रजीत, चौधरी बीरेंद्र सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर जैसे बड़े नेताओं के साथ करीब 38 नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. संगठन का कमजोर होनाराजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुरेंद्र धीमान के मुताबिक हरियाणा में संगठन स्तर पर कांग्रेस की हालत क्या ये समझने के लिए बस इतना काफी है कि 2014 से अब तक पार्टी जिला कार्यकारिणी नहीं बना पाई है.
कांग्रेस की वापसी कौन करवा सकता है- राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस वक्त हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही ऐसे लीडर दिखाई पड़ते हैं जो कांग्रेस की डूबती नैया के खेवनहार बन सकते हैं. यही वजह है कि 2019 के चुनाव से ठीक पहले बगावती तेवर दिखाने वाले हुड्डा को कांग्रेस ने अशोक तंवर के ऊपर तरजीह दी और चुनाव की कमान सौंपी. जिसमें उन्होंने कुछ हद तक अपने हाईकमान को संतुष्ट भी किया. और बीजेपी को दोबारा बहुमत में आने से रोकने में कांग्रेस सफल रही. और 2014 की 15 सीटों के मुकाबले कांग्रेस 31 सीट पर जीत हासिल की.