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किसानों को नहीं मिल रहा कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य, 20 प्रतिशत तक आई गिरावट

किसानों के लिए सफेद सोना कहलाने वाली फसल कपास इस बार उन्हें मायूस कर रही है. किसान सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव पर कपास बेचने को मजबूर हैं.

कपास की फसल
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Published : Oct 30, 2019, 3:56 PM IST

भिवानी: किसानों के लिए सफेद सोना कहलाने वाली फसल कपास इस बार उनके लिए सफेद सोना साबित नहीं होने जा रही है, क्योंकि किसान सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव पर कपास बेचने को मजबूर हैं. किसानों को कपास का भाव इस समय 3,300-5,200 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने चालू कपास सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी 5,550 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम रेशे के कपास का 5,255 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है.

कपास से जुड़े किसानों के सपने
कपास बेचने आए किसानों ने बताया कि कपास को लेकर उनके बहुत से सपने जुड़े होते हैं. कपास बेचकर किसी को घर बनाना होता है, किसी को बच्चों की शादी करनी होती है तो किसी को बच्चों की पढ़ाई-लिखाई फीस के लिए पैसे इकट्ठे करने होते हैं. साथ ही अगली फसल की बिजाई और घर के खर्च चलाने के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ती है. पर इतने महंगे बीज, महंगी दवा, बुवाई व सिंचाई का खर्च और ऊपर से चुगाई मजदूरी पर, इन सब खर्चों के बाद 5100-5200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में कुछ नहीं बचता.

जानें क्यों टूट रही किसानों की आस

'दवाओं के रेट पर कंट्रोल से हो सकता है फायदा'
किसानों का कहना है कि उनकी बचत का बहुत बड़ा हिस्सा दवा कंपनियां लेती जाती है. यदि दवाओं के रेट पर कंट्रोल किया जाए तो किसानों को इसी भाव में बचत हो सकती है.

पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की गिरावट
आपको बता दें कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के हालिया आंकड़ों के अनुसार, इस साल कपास का रकबा 127.67 लाख हेक्टेयर है जोकि पिछले साल से 6.62 लाख हेक्टेयर अधिक है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कॉटन के दाम में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि भारत में पिछले साल के मुकाबले कॉटन का भाव तकरीबन 10 फीसदी गिरा है.

ये भी पढ़ें: करनालः मंडी में धान की खरीद न होना पर किसानों ने दी सरकार को चेतावनी

भिवानी: किसानों के लिए सफेद सोना कहलाने वाली फसल कपास इस बार उनके लिए सफेद सोना साबित नहीं होने जा रही है, क्योंकि किसान सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव पर कपास बेचने को मजबूर हैं. किसानों को कपास का भाव इस समय 3,300-5,200 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने चालू कपास सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी 5,550 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम रेशे के कपास का 5,255 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है.

कपास से जुड़े किसानों के सपने
कपास बेचने आए किसानों ने बताया कि कपास को लेकर उनके बहुत से सपने जुड़े होते हैं. कपास बेचकर किसी को घर बनाना होता है, किसी को बच्चों की शादी करनी होती है तो किसी को बच्चों की पढ़ाई-लिखाई फीस के लिए पैसे इकट्ठे करने होते हैं. साथ ही अगली फसल की बिजाई और घर के खर्च चलाने के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ती है. पर इतने महंगे बीज, महंगी दवा, बुवाई व सिंचाई का खर्च और ऊपर से चुगाई मजदूरी पर, इन सब खर्चों के बाद 5100-5200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में कुछ नहीं बचता.

जानें क्यों टूट रही किसानों की आस

'दवाओं के रेट पर कंट्रोल से हो सकता है फायदा'
किसानों का कहना है कि उनकी बचत का बहुत बड़ा हिस्सा दवा कंपनियां लेती जाती है. यदि दवाओं के रेट पर कंट्रोल किया जाए तो किसानों को इसी भाव में बचत हो सकती है.

पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की गिरावट
आपको बता दें कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के हालिया आंकड़ों के अनुसार, इस साल कपास का रकबा 127.67 लाख हेक्टेयर है जोकि पिछले साल से 6.62 लाख हेक्टेयर अधिक है. अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कॉटन के दाम में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि भारत में पिछले साल के मुकाबले कॉटन का भाव तकरीबन 10 फीसदी गिरा है.

ये भी पढ़ें: करनालः मंडी में धान की खरीद न होना पर किसानों ने दी सरकार को चेतावनी

Intro:
Anchoring : दिन-रात कङी मेहनत कर लोगों का पेट और देश का खजाना भरने वाले अन्नदाता के लिए इस बार सफेद सोने भी घाटे का सौदा बन रहा है। छह महिने दिन रात कङी मेहनत कर भारी भरकम खर्च करके उनगाने वाली सफेद सोना रूपी कपास के उचित दाम ना मिलने से किसान खासे परेशान हैं। किसानों का कहना है कि कपास बेचकर कोई मकान बनाता, कोई बच्चों की शादि करता और बच्चों की फिस भरकर आगे के खर्च चलाता पर बचत कम और खर्च ज्यादा ने सारा बजट बिगाङ दिया।




Body:Vo1  कबुतरों का ये मनमोहक नजारा देख कर कितना अच्छा लगता है। ये नजारा है भिवानी की नई अनाज मंडी का। पर कुछ दूर चलते ही मंडी में सफेद सोना रूपी कपास के ढेर लगे हैं। यहां जितने मनमोहक कबुतरों का नजारा है उससे उलट अन्नदाताओं का नजारा है। अन्नदाताओं का कहना है कि कपास की बिजाई से लेकर कटाई तक हर रोज कङी मेहनत और खर्च करना पङाता है। बावजूद इसके भाव उचित नहीं मिल रहा। किसानों ने बताया कि उनकी कपास 5100-5200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। किसानों का कहना है कि अपनी मेहनत छोङ दें तो भी खाद, बिज, दवा व मजदूरी पर इतनी लागत आती है कि इस भाव में बचन ना के बराबर है।बाइट- किसान
Vo.2  कपास बेचने आए किसानों ने बताया कि कपास को लेकर किसानों के बहुत से सपने जुङे होते हैं। कपास बेचकर किसी को घर बनाना होता है, किसी को बच्चों की शादि करनी होती है तो किसी को बच्चों की फिस देनी होती है। साथ ही अगली फसल की बिजाई और घर के खर्च चलाने के लिए भी पैसे की जरूरत पङती है। पर इतने महंगे बिज, महंगी दवा, बिजाई व सिंचाई का खर्च और उपर से चुगाई मजदूरी पर। इन सब खर्चों के बाद 5100-5200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में कुछ नहीं बचता। किसानों ने बताया कि खाद, बिज व दवा के भाव कुछ कम हों और भाव कुछ ज्यादा हो तो ही बात बन सकती है। वरना किसान घाटे में रहेगा।बाइट- किसान
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Conclusion: किसानों का कहना है कि उनकी बचत का बहुत बङा हिस्सा दवा कंपनियां लेती जाती है। यदि दवाओं के रेट पर कंट्रोल किया जाए तो किसानों को इसी भाव में बचत हो सकती है। अब देखना होगा कि सूबे की सरकार के नुमाईंदे इस और ध्यान देकर कोई कदम उठाते हैं या किसान खाद, बिज व दवाओं की महंगाई की मार यूं ही झेलते रहेंगें।-
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