नई दिल्ली : हमारे हिंदू पौराणिक मान्यताओं व कथाओं में हर जीव की पूजा की परंपरा है. कई पशु पक्षी देवी देवताओं के वाहन के रूप में तो कई उनसे जुड़ी कथाओं के कराण पूजे जाते हैं. इतना ही नहीं हमारे यहां तो पेड़, पहाड़ व जानवरों की पूजा का विधान है. कोकिला व्रत में शिव पार्वती के साथ कोयल की पूजा का महत्व है.
इस साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर कोकिला व्रत 2 जुलाई को रखा जाएगा. ज्योतिषियों की गणना के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा 2 जुलाई को संध्याकाल में 8 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 3 जुलाई को 05 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगा. इसीलिए कोकिला व्रत 2 जुलाई को ही रखा जा रहा है.
- कोकिला व्रत जिस दिन व्रत शुरू होता है, उस दिन कोकिला व्रत का संकल्प लेने वाली लड़कियों व महिलाओं को ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय से पहले बिस्तर त्याग कर देना चाहिए, ताकि पूरे दिन चलने वाले कार्यक्रमों व पूजा का समय से शुभारंभ हो सके.
- आज के दिन आंवले के गूदे और पानी के मिश्रण से स्नान करने का विशेष महत्व है. यदि गूदा न मिले तो आंवले के रस को डालकर स्नान करना चाहिए. यह अनुष्ठान कुछ स्थानों पर पूरे एक सप्ताह से अधिक दिनों तक और कुछ जगहों पर अगले 8 से 10 दिनों तक किया जाता है.
- कोकिला व्रत का शुभारंभ स्नान के बाद भगवान सूर्य की पूजा करने की जाती है. फिर चने के मोटे आटे से बनी दिन की पहली रोटी गाय को खिलाकर गाय का आशीर्वाद लिया जाता है.
- इसके बाद हल्दी, चंदन, रोली, चावल और गंगाजल का उपयोग करके कोयल पक्षी की मूर्ति की पूजा करते हैं. इसको अगले 8 दिनों तक पूजा जाता है. यहां कोयल को देवी पार्वती का प्रतीक मानकर पूजा जाता है, क्योंकि माता सती ने कोयल रूप में भोलेनाथ को पाने के लिए कई सालों की कठोर तपस्या की थी.
- कोकिला व्रत के दौरान सूर्यास्त होने तक उपवास रखना चाहिए और कोकिला व्रत कथा सुनकर और यदि संभव हो तो कोयल पक्षी को देखने या उसकी तस्वीर देखने के बाद व्रत का समापन कर देना चाहिए.