अहमदाबाद : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अगले महीने गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर का सामना करेगी और पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अलावा आक्रामक तरीके से मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी (आप) के साथ मुकाबला करेगी.
भाजपा ने 1995 से लेकर लगातार छह बार चुनावी जीत दर्ज की है. ऐसे में पेश है उसका स्वॉट विश्लेषण. यह एक तकनीक है, जिसका उपयोग प्रतिस्पर्धा के दौरान किसी की ताकत, कमजोरी, अवसर और खतरे का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है. ज्ञात हो कि गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य है.
ताकत : - प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता, जो भाजपा का तुरुप का इक्का बने हुए हैं.
आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन के चलते 2017 के चुनावों में भाजपा को पाटीदार समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ा था, लिहाजा वह अब पाटीदारों तक अपनी पहुंच पर भरोसा कर रही है. पिछले साल सितंबर में भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाने और आरक्षण आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल को अपने पाले में लाने का फैसला पार्टी के पक्ष में काम कर सकता है.
भाजपा की गुजरात इकाई के पास बूथ स्तर तक एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है.
सत्ताधारी भाजपा हिन्दुत्व, विकास और डबल इंजन की बदौलत तेज प्रगति के मुद्दों पर भरोसा कर रही है. शाह भाजपा की चुनावी तैयारियों की निगरानी कर रहे हैं. उन्हें भाजपा का मुख्य रणनीतिकार भी कहा जाता है.
कमजोरियां : - भाजपा के पास एक मजबूत स्थानीय नेता की कमी है, जो प्रधानमंत्री मोदी की जगह भर सके. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से गुजरात में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल सहित तीन मुख्यमंत्री बन चुके हैं. मोदी 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे.
आप और कांग्रेस द्वारा राज्य सरकार पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने के अलावा, भाजपा को महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक संकट जैसे मुद्दों पर जनता का सामना करना पड़ सकता है.
आप के आक्रामक अभियान ने राज्य की शिक्षा प्रणाली और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में खामियां निकालने की कोशिश की है.
अवसर : विपक्ष का कमजोर होना भाजपा को लगातार सात विधानसभा चुनाव जीतने और पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नीत वाम मोर्चे की उपलब्धि की बराबरी करने का मौका दे सकता है.
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस प्रचार से गायब नजर आ रही है और पार्टी नेता, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त नजर आ रहे हैं.
अगर भाजपा गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में आप को पांच से कम सीटों पर समेटने में सफल होती है तो उसके पास राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने की अरविंद केजरीवाल नीत पार्टी की महत्वाकांक्षाओं को सीमित करने का मौका होगा.
खतरा : हाल ही में मोरबी में हुए पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई. भाजपा की चुनावी सफलता में यह आड़े आ सकती है.
मजबूत केंद्रीय नेतृत्व के कारण भाजपा का भीतर अंदरूनी कलह काफी हद तक दबा हुआ है लेकिन हार से दरारें खुलकर सामने आ सकती हैं.
त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सत्तारूढ़ दल को बहुमत हासिल करने के लिए सहयोगी ढूंढना मुश्किल हो सकता है.
अगर 'आप' कुछ जगहों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहती है तो यह भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है. 2002 के बाद से हर चुनाव में भगवा पार्टी की सीटों की संख्या में गिरावट आ रही है. उसने 2002 में 127, 2007 में 117, 2012 में 116 और 2017 में 99 सीटें जीती थीं.
छह बार भाजपा से हारी कांग्रेस कहां खड़ी है ?
कभी गुजरात में दबदबे वाली राजनीतिक ताकत रही कांग्रेस 1995 के बाद से लगातार छह विधानसभा चुनाव भाजपा से हार चुकी है और उसे इस बार अपना पुराना गौरव फिर से हासिल करने की उम्मीद है. इसने 2017 में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी और 182 में से 77 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा को 99 सीटें मिली थीं.
केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारों के साथ, कांग्रेस अगले महीने होने वाले गुजरात विधानसभा चुनावों में जीत के लिए बेताब है.
हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात भी कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के लिए पहली बड़ी परीक्षा होगी, जो पिछले 24 वर्षों में पार्टी के शीर्ष पद पर काबिज होने वाले पहले गैर-गांधी नेता हैं. कांग्रेस की ताकत, कमजोरियां, अवसर और जोखिम का विश्लेषण :
ताकत : कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता आधार से समर्थन की उम्मीद - ठाकोर और कोली जैसे ओबीसी समुदायों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और मुसलमानों से अपेक्षित समर्थन.
लगातार छह बार भाजपा से हारने के बावजूद, पार्टी ने 40 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी बनाए रखी है.
अगर वह खम (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) वोटों पर ध्यान केंद्रित करती है और असंतुष्ट पटेल समुदाय का समर्थन हासिल करने में सफल रहती है तो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है.
जातियों और समुदायों के खम संयोजन को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी द्वारा एक जीत के फार्मूले के रूप में तैयार किया गया था और अतीत में यह कांग्रेस के काम आया है.
कमजोरियां : राज्य स्तर पर मजबूत नेताओं की कमी.
राज्य इकाई में गुटबाजी और अंदरूनी कलह.
66 शहरी और अर्ध-शहरी सीटें हैं जो कांग्रेस गुजरात में पिछले 30 वर्षों में नहीं जीत पाई है.
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त होने के कारण, राज्य इकाई को वस्तुतः अपने हाल पर छोड़ दिया गया है.
पिछले 10 वर्षों में कई कांग्रेस नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं. इनमें पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और कांग्रेस के 16 विधायक (2017 से 2022 के बीच) शामिल हैं.
अवसर : कांग्रेस को इस बात से राहत मिल सकती है कि 2002 के बाद से गुजरात में हर विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटों की संख्या घट रही है.
गुजरात में आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा आक्रामक प्रचार के रूप में कांग्रेस नेताओं को लगता है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस के ग्रामीण वोट बैंक से ज्यादा भाजपा के शहरी वोट बैंक को नुकसान पहुंचाएगी.
कांग्रेसी नेताओं को उम्मीद है कि गांवों में उसके चुपचाप किए जा रहे कार्यों से लाभ मिलेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने गुजरात में कांग्रेस द्वारा चुपचाप किए जा रहे प्रचार के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं को आगाह किया था.
जोखिम : मोदी फैक्टर जो भाजपा को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर फिर से बढ़त दिला सकता है.
आप और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) द्वारा कांग्रेस के जनाधार में सेंध लगाने की जोरदार कोशिश.
चुनाव हारने पर अधिक लोगों के कांग्रेस छोड़ने की आशंका.
जहां तक आप की बात है कि तो निश्चित तौर पर पार्टी के लिए सबकुछ अरविंद केजरीवाल ही हैं. उनकी ताकत और कमजोरी दोनों वही हैं. उन्हें अकेले ही प्रचार करना भी है और सारे फैसले भी लेने हैं. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का अभाव है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी केजरीवाल का साथ दे रहे हैं.
(एजेंसी)