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Published : Dec 14, 2021, 6:22 AM IST

जो परमेश्वर के कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता, वह परमेश्वर को ही प्राप्त होता है. राग, भय और क्रोध से सर्वथा रहित, परमात्मा में ही तल्लीन और आश्रित तथा ज्ञानरूप तप से पवित्र हुए बहुत-से भक्त परमात्मा के भाव प्राप्त को हो चुके हैं. जिस भाव से सारे लोग परमात्मा की शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप परमात्मा उन्हें फल देता है. निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है. कर्मों की सिद्धि चाहने वाले मनुष्य देवताओं की उपासना किया करते हैं. प्रकृति के तीनों गुण और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार परमेश्वर के द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गए हैं. यद्यपि परमेश्वर उसका कर्ता है, फिर भी परमेश्वर अकर्ता और अविनाशी है. परमात्मा पर किसी कर्म और कर्मफल का प्रभाव नहीं पड़ता, जो परमात्मा के संबंध में इस सत्य को जानता है, वह कभी भी कर्मों के पाश में नहीं बंधता. प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओं ने परमात्मा की दिव्य प्रकृति को जान कर ही कर्म किया, अतः मानव को चाहिए कि उनके पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करे.

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