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अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही ऑस्टियोपोरोसिस

पिछले कुछ सालों में ऑस्टियोपोरोसिस को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. साथ ही आजकल चिकित्सक तथा जानकार हर व्यस्क व्यक्ति को निर्धारित अवधि के उपरांत बोन डेंसिटी चेक कराने की सलाह देते हैं, जिससे उनकी हड्डियों की समस्या और विशेषकर ऑस्टियोपोरोसिस को लेकर उनकी हड्डियों की संवेदनशीलता को जाना जा सके. यूं तो दुनियाभर में ऑस्टियोपोरोसिस को मूलतः बुढ़ापे की समस्या के रूप में जाना जाता रहा है, लेकिन अब इसे वर्तमान जीवन शैली के दुष्प्रभावों में से एक के रूप में भी गिना जाने लगा है, क्योंकि इसके प्रभाव के चलते कम उम्र के लोगों में भी इस रोग के लक्षण नजर आने लगे हैं.

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ऑस्टियोपोरोसिस
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Published : Oct 20, 2021, 4:17 AM IST

Updated : Oct 20, 2021, 12:02 PM IST

दुनियाभर में लोग 20 अक्टूबर को यानी आज विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस मनाते के रूप में मनाते हैं. इस दिवस पर बड़ी संख्या में सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाए बोन डेन्सिटी जांच शिविर आयोजित करती हैं तथा चिकित्सक तथा जानकार अलग-अलग मध्यमों से लोगों को ऐसी खुराक और जीवन शैली को अपने नियमित जीवन में अपनाने का सुझाव भी देती है, जिससे उनकी हड्डियों का स्वास्थ्य हर उम्र में बना रह सके. इस उपलक्ष्य में ETV भारत सुखीभवा भी अपने पाठकों के साथ ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़े कुछ शोधों के निष्कर्ष और चिकित्सकों की राय साझा कर रहा है.

ऑस्टियोपोरोसिस को लेकर क्या कहते हैं शोध
वर्ष 2018 में इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया था कि राजधानी दिल्ली में लगभग 9% लोग हड्डियों की खामोश बीमारी कहीं जाने वाले ऑस्टियोपोरोसिस से तथा लगभग 60% लोग ऑस्टियोपोरोसिस की पूर्व स्थिति ऑस्टियोपीनिया से पीड़ित थे. भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान परिषद की ओर से प्रकाशित यह शोध नई दिल्ली के एक अस्पताल के आर्थोपेडिक विभाग तथा आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के सहयोग से 38 से 68 साल के पुरुषों और महिलाओं पर किया गया था. लेकिन जानकार मानते हैं कि न सिर्फ हमारे देश बल्कि दुनियाभर में यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

इस रोग के कारणों को लेकर भी दुनिया के अलग अलग कोनों में विभिन्न अध्ययन किए गए हैं. गौरतलब है की इस रोग के लिए सिर्फ उम्र और पोषण की कमी ही नही, बल्कि कई व्यवहारिक आदतों को भी जिम्मेदार माना जाता है. वर्ष 2015 में अमेरिका के नेशनल जेविश हेल्थ सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में दावा किया कि धूम्रपान करने वाले लोगों विशेषकर पुरुषों को ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की समस्या को लेकर ज्यादा संवेदनशील देखा गया. एनल्स ऑफ अमेरिकन थोरासिस सोसाइटी जनरल में प्रकाशित इस शोध के निष्कर्षों में बताया गया था कि धूम्रपान करने वाले उन पुरुषों में जो सीओपीडी से भी पीड़ित होते हैं बोन डेंसिटी कम हो जाती है. 45 से 80 वर्ष के 3321 प्रतिभागियों पर किए गए इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि धूम्रपान करने वाले पुरुषों को बोन डेंसिटी कम होने का खतरा 55% तक अधिक होता है साथ ही उनमें वर्टेबल फ्रेक्चर का खतरा भी 60% तक अधिक हो सकता है.

सब जानते हैं की महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का प्रभाव अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आता है जिसके लिए उनके शरीर में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्व की कमी को जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन पोषण के इतर अगर बात करें तो और भी कई कारण हैं जो ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को बढ़ाते हैं. वर्ष 2019 में हुए एक शोध में सामने आया कि महिलाओं में नींद की कमी भी ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ा सकती है. इस शोध में ऐसी महिलाओं को विषय बनाया गया था जो 5 घंटे या उससे भी कम समय के लिए सोती थी. ऐसी महिलाओं में अपेक्षाकृत कम बोन मास डेंसिटी पाई गई थी .

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ऑस्टियोपोरोसिस

क्या है ऑस्टियोपोरोसिस के चिकित्सीय कारण
साधारण शब्दों में कहा जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया के दौरान जब हड्डियों में द्रव्यमान यानी बोन मास में कमी आने लगती है तो उनके रीजनरेशन यानी पुनर्निर्माण पर असर पड़ने लगता है. नतीजतन हड्डियां नाजुक और कमजोर होने लगती है. कई बार कमजोरी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि हल्की सी खांसी जैसी साधारण शारीरिक क्रिया के चलते भी उनके टूटने की आशंका बन सकती है.

कम उम्र वालों को भी प्रभावित कर रहा है ऑस्टियोपोरोसिस
मध्य प्रदेश के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ निशांथ देवहरे बताते हैं कि सिर्फ शारीरिक कमजोरी ही नहीं बल्कि अब आसीन जीवन शैली भी ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को काफी बढ़ा रही है. यही कारण है कि वर्तमान समय में बच्चों और युवाओं में भी ऑस्टियोपोरोसिस होने का आंकड़ा बढ़ रहा है. वे बताते है कि प्राकृतिक तौर पर हमारे शरीर की मशीनरी इस तरह से काम करती है कि बचपन में किसी भी प्रकार के पोषण की कमी शरीर पर बहुत ज्यादा हावी नहीं हो पाती है. लेकिन ऐसे बच्चे जो ज्यादातर जंक फुड खाते हैं या एक सक्रिय दिनचर्या जीने की बजाय अपना अधिकतम समय बंद कमरों में मोबाइल कंप्यूटर टीवी के समक्ष बिताते हैं, या फिर जिनके सोने या जागने का समय नियत नहीं है यानी जो रात को देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं, उनकी हड्डियां कमजोर होने लगती है. आगे बताते हैं कि उनके पास से कई बच्चे तथा युवा आते हैं जो कि हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द की समस्या का शिकार होते हैं. जिसका कारण आहार में कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्वों की कमी, हड्डियों में प्राकृतिक तौर पर विटामिन डी की कमी तथा व्यायाम या किसी भी प्रकार की शारीरिक सक्रियता के अभाव में हड्डियों पर पड़ने वाले असर को माना जा सकता है.

वे बताते हैं की ऑस्टियोपोरोसिस होने से पहले ही उसकी रोकथाम के उपाय करना ज्यादा बेहतर है जैसे पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम, सही मात्रा में नींद तथा धूम्रपान से दूरी ऑस्टियोपोरोसिस से रोकथाम में सहायक हो सकती है. इसके अतिरिक्त यदि मांसपेशियों या हड्डियों में लगातार दर्द की समस्या हो तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए.

पढ़ें: संतुलित आहार और जीवनशैली अपनाकर हड्डियों की समस्याएं करें दूर

दुनियाभर में लोग 20 अक्टूबर को यानी आज विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस मनाते के रूप में मनाते हैं. इस दिवस पर बड़ी संख्या में सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाए बोन डेन्सिटी जांच शिविर आयोजित करती हैं तथा चिकित्सक तथा जानकार अलग-अलग मध्यमों से लोगों को ऐसी खुराक और जीवन शैली को अपने नियमित जीवन में अपनाने का सुझाव भी देती है, जिससे उनकी हड्डियों का स्वास्थ्य हर उम्र में बना रह सके. इस उपलक्ष्य में ETV भारत सुखीभवा भी अपने पाठकों के साथ ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़े कुछ शोधों के निष्कर्ष और चिकित्सकों की राय साझा कर रहा है.

ऑस्टियोपोरोसिस को लेकर क्या कहते हैं शोध
वर्ष 2018 में इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया था कि राजधानी दिल्ली में लगभग 9% लोग हड्डियों की खामोश बीमारी कहीं जाने वाले ऑस्टियोपोरोसिस से तथा लगभग 60% लोग ऑस्टियोपोरोसिस की पूर्व स्थिति ऑस्टियोपीनिया से पीड़ित थे. भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान परिषद की ओर से प्रकाशित यह शोध नई दिल्ली के एक अस्पताल के आर्थोपेडिक विभाग तथा आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के सहयोग से 38 से 68 साल के पुरुषों और महिलाओं पर किया गया था. लेकिन जानकार मानते हैं कि न सिर्फ हमारे देश बल्कि दुनियाभर में यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

इस रोग के कारणों को लेकर भी दुनिया के अलग अलग कोनों में विभिन्न अध्ययन किए गए हैं. गौरतलब है की इस रोग के लिए सिर्फ उम्र और पोषण की कमी ही नही, बल्कि कई व्यवहारिक आदतों को भी जिम्मेदार माना जाता है. वर्ष 2015 में अमेरिका के नेशनल जेविश हेल्थ सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में दावा किया कि धूम्रपान करने वाले लोगों विशेषकर पुरुषों को ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की समस्या को लेकर ज्यादा संवेदनशील देखा गया. एनल्स ऑफ अमेरिकन थोरासिस सोसाइटी जनरल में प्रकाशित इस शोध के निष्कर्षों में बताया गया था कि धूम्रपान करने वाले उन पुरुषों में जो सीओपीडी से भी पीड़ित होते हैं बोन डेंसिटी कम हो जाती है. 45 से 80 वर्ष के 3321 प्रतिभागियों पर किए गए इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि धूम्रपान करने वाले पुरुषों को बोन डेंसिटी कम होने का खतरा 55% तक अधिक होता है साथ ही उनमें वर्टेबल फ्रेक्चर का खतरा भी 60% तक अधिक हो सकता है.

सब जानते हैं की महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का प्रभाव अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आता है जिसके लिए उनके शरीर में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्व की कमी को जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन पोषण के इतर अगर बात करें तो और भी कई कारण हैं जो ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को बढ़ाते हैं. वर्ष 2019 में हुए एक शोध में सामने आया कि महिलाओं में नींद की कमी भी ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ा सकती है. इस शोध में ऐसी महिलाओं को विषय बनाया गया था जो 5 घंटे या उससे भी कम समय के लिए सोती थी. ऐसी महिलाओं में अपेक्षाकृत कम बोन मास डेंसिटी पाई गई थी .

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ऑस्टियोपोरोसिस

क्या है ऑस्टियोपोरोसिस के चिकित्सीय कारण
साधारण शब्दों में कहा जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया के दौरान जब हड्डियों में द्रव्यमान यानी बोन मास में कमी आने लगती है तो उनके रीजनरेशन यानी पुनर्निर्माण पर असर पड़ने लगता है. नतीजतन हड्डियां नाजुक और कमजोर होने लगती है. कई बार कमजोरी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि हल्की सी खांसी जैसी साधारण शारीरिक क्रिया के चलते भी उनके टूटने की आशंका बन सकती है.

कम उम्र वालों को भी प्रभावित कर रहा है ऑस्टियोपोरोसिस
मध्य प्रदेश के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ निशांथ देवहरे बताते हैं कि सिर्फ शारीरिक कमजोरी ही नहीं बल्कि अब आसीन जीवन शैली भी ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को काफी बढ़ा रही है. यही कारण है कि वर्तमान समय में बच्चों और युवाओं में भी ऑस्टियोपोरोसिस होने का आंकड़ा बढ़ रहा है. वे बताते है कि प्राकृतिक तौर पर हमारे शरीर की मशीनरी इस तरह से काम करती है कि बचपन में किसी भी प्रकार के पोषण की कमी शरीर पर बहुत ज्यादा हावी नहीं हो पाती है. लेकिन ऐसे बच्चे जो ज्यादातर जंक फुड खाते हैं या एक सक्रिय दिनचर्या जीने की बजाय अपना अधिकतम समय बंद कमरों में मोबाइल कंप्यूटर टीवी के समक्ष बिताते हैं, या फिर जिनके सोने या जागने का समय नियत नहीं है यानी जो रात को देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं, उनकी हड्डियां कमजोर होने लगती है. आगे बताते हैं कि उनके पास से कई बच्चे तथा युवा आते हैं जो कि हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द की समस्या का शिकार होते हैं. जिसका कारण आहार में कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्वों की कमी, हड्डियों में प्राकृतिक तौर पर विटामिन डी की कमी तथा व्यायाम या किसी भी प्रकार की शारीरिक सक्रियता के अभाव में हड्डियों पर पड़ने वाले असर को माना जा सकता है.

वे बताते हैं की ऑस्टियोपोरोसिस होने से पहले ही उसकी रोकथाम के उपाय करना ज्यादा बेहतर है जैसे पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम, सही मात्रा में नींद तथा धूम्रपान से दूरी ऑस्टियोपोरोसिस से रोकथाम में सहायक हो सकती है. इसके अतिरिक्त यदि मांसपेशियों या हड्डियों में लगातार दर्द की समस्या हो तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए.

पढ़ें: संतुलित आहार और जीवनशैली अपनाकर हड्डियों की समस्याएं करें दूर

Last Updated : Oct 20, 2021, 12:02 PM IST
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