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आयुर्वेद से करें मिर्गी के दौरों का उपचार - मिर्गी का आयुर्वेदिक उपचार

मिर्गी एक ऐसा रोग है, जिसे लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतिया व्याप्त हैं. हमारे देश में तो इसे जादू-टोने से जोड़ कर भी देखा जाता है. मिर्गी एक सामान्य बीमारी नहीं है, लेकिन सही देखभाल और इलाज से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. आयुर्वेद में भी मिर्गी को लेकर काफी फायदेमंद चिकित्सा तथा उपचार मौजूद है.

Ayurvedic treatment of epilepsy
मिर्गी का आयुर्वेदिक उपचार
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Published : Feb 13, 2021, 9:01 AM IST

आयुवेद में अपस्मार नाम से जानी जाने वाली मिर्गी की बीमारी को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतिया फैली हुई है. इन्ही भ्रांतियों के चलते कई बार मिर्गी के रोगी को सही इलाज नहीं मिल पाता है. मिर्गी को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर भी कहा जाता है. आंकड़ों की माने तो भारत में इस बीमारी से करीब सवा करोड़ लोग पीड़ित हैं. बावजूद इसके मिर्गी को लेकर लोगों में व्याप्त तरह-तरह की भ्रांतियों के कारण बड़ी संख्या में पीड़ितों को सही उपचार नहीं मिल पाता है.

एलोपैथिक के अलावा आयुर्वेद में भी मिर्गी का इलाज मौजूद है, जिसके परिणाम काफी प्रभावी रहते हैं. आयुर्वेद में मिर्गी के लक्षणों, उसके कारणों तथा उसके इलाज को लेकर आयुर्वेदाचार्य डॉ. रंगनायकूलू ने ETV भारत सुखीभवा को विस्तार से जानकारी दी.

क्या है मिर्गी रोग?

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की मिर्गी एक मस्तिष्क संबंधी विकार है. जिसमें असंतुलित इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के कारण मनुष्य के मस्तिष्क का कुछ हिस्सा प्रभावित या कुछ मामलों में क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिसके कारण मरीज को अचानक झटके आने शुरू हो जाते है, या फिर कुछ समय के लिए उसकी चेतना चली जाती है. आमतौर पर मिर्गी की बीमारी बचपन में होती है और समय पर इलाज ना हो, तो इसके लक्षण बार-बार दिखाई देने लगते हैं. वहीं कुछ बुजुर्गों में भी मिर्गी के लक्षण दिखाई देते हैं. मिर्गी के झटके की आव्रती तथा सघनता से जानकारी मिलती है की असामान्य इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी से मस्तिष्क का कितना हिस्सा प्रभावित हुआ है.

आयुर्वेद के अनुसार मिर्गी के कुछ मुख्य कारण

  • पौष्टिक भोजन की कमी
  • अस्वास्थ्यकर या जंक आहार
  • प्राकृतिक प्रक्रियाओं को दबाना जैसे पेशाब को रोकना, जम्हाई को रोकना तथा प्यास को अनदेखी करना
  • अस्वास्थ्यकारी यौनिक गतिविधियां जैसे मासिक चक्र के दौरान शारीरिक संबंध बनाना आदि
  • सिर में लगी किसी प्रकार की चोट
  • अत्यधिक मानसिक दबाव तथा तनाव

डॉ. रंग नायकूलू बताते हैं की मिर्गी के दौरे के दौरान लगातार कंपकपाने के अलावा कई बार मरीज अपनी चेतना भी खो देता है. मिर्गी के दौरे के दौरान मरीज के शरीर में होने वाली गतिविधियां तथा परिवर्तन इस प्रकार है;

  1. मुंह से लगातार थूक का निकलना
  2. शरीर का बहुत ज्यादा कांपना
  3. हाथों और पांव में तीव्र जलन होना
  4. बेहोशी के दौरे पड़ना, जो 10 से 15 सेकंड से 1 मिनट तक तक हो सकते हैं.

कैसे करें मदद

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में मिर्गी दौरे से पीड़ित व्यक्ति की मदद करने के लिए निम्नलिखित उपाय बताते गए हैं;

  • मिर्गी के दौरे से पीड़ित व्यक्ति के चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे डाले
  • उन्हें खुली हवादार जगह पर बिठाए
  • उनकी नाक में प्याज के रस की कुछ बूंदें डालें
  • उसे बच जड़ ( वैज्ञानिक नाम- अकोरस कैलेमस) तथा मिर्च की भाप दें

आयुर्वेद में मिर्गी के उपचार

मिर्गी के उपचार के लिए आयुर्वेद में बहुत सी दवाइयां बताई गई हैं. लेकिन इस रोग का उपचार लंबा होता है. आयुर्वेद में मिर्गी के रोग के लिए बताई गई कुछ दवाइयां इस प्रकार हैं;

  1. ब्राह्मी के पौधे (वैज्ञानिक नाम- वाटर हाइस्सोंप) के 200 मिलीलीटर जूस को शहद मिलाकर सेवन करें.
  2. शतावरी की जड़ (वैज्ञानिक नाम- ऐस्पेरेगस) के 10 ग्राम पाउडर का 100 मिलीलीटर दूध के साथ सेवन करें.
  3. वचा (वैज्ञानिक नाम- अकोरस कैलेमस या स्वीट फ्लैग) की 1 ग्राम मात्रा का शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करें.
  4. यष्टिमधु ( वैज्ञानिक नाम – लिकोराइस) पाउडर की 5 ग्राम मात्रा का कद्दू के जूस के साथ दिन में 3 बार सेवन करें.
  5. सारस्वत चूर्ण कि 1 से 3 ग्राम मात्रा का 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करें.
  6. दशमूला क्वाथ कि 20 मिलीलीटर मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें.
  7. ब्राह्मी वटी की चिकित्सक के निर्देशानुसार एक या दो गोली का 50 मिलीलीटर पानी के साथ सेवन करें.
  8. पंचगव्य घृत की 3 से 6 ग्राम मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें.
  9. ब्रह्मी घृत की 15 ग्राम मात्रा का दिन में दो बार गर्म पानी के साथ सेवन करें.

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की मिर्गी को दौरों या किसी भी प्रकार के रोग के इलाज के लिए विशेषतौर पर आयुर्वेद में अपने आप औषधि नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि आयुर्वेद में रोगी के शरीर की प्रकृति के आधार पर उन्हें दवाई दी जाती है. बहुत जरूरी है कि मिर्गी के रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह के उपरांत ही किसी भी प्रकार की दवाई का सेवन करें.

आयुवेद में अपस्मार नाम से जानी जाने वाली मिर्गी की बीमारी को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतिया फैली हुई है. इन्ही भ्रांतियों के चलते कई बार मिर्गी के रोगी को सही इलाज नहीं मिल पाता है. मिर्गी को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर भी कहा जाता है. आंकड़ों की माने तो भारत में इस बीमारी से करीब सवा करोड़ लोग पीड़ित हैं. बावजूद इसके मिर्गी को लेकर लोगों में व्याप्त तरह-तरह की भ्रांतियों के कारण बड़ी संख्या में पीड़ितों को सही उपचार नहीं मिल पाता है.

एलोपैथिक के अलावा आयुर्वेद में भी मिर्गी का इलाज मौजूद है, जिसके परिणाम काफी प्रभावी रहते हैं. आयुर्वेद में मिर्गी के लक्षणों, उसके कारणों तथा उसके इलाज को लेकर आयुर्वेदाचार्य डॉ. रंगनायकूलू ने ETV भारत सुखीभवा को विस्तार से जानकारी दी.

क्या है मिर्गी रोग?

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की मिर्गी एक मस्तिष्क संबंधी विकार है. जिसमें असंतुलित इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के कारण मनुष्य के मस्तिष्क का कुछ हिस्सा प्रभावित या कुछ मामलों में क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिसके कारण मरीज को अचानक झटके आने शुरू हो जाते है, या फिर कुछ समय के लिए उसकी चेतना चली जाती है. आमतौर पर मिर्गी की बीमारी बचपन में होती है और समय पर इलाज ना हो, तो इसके लक्षण बार-बार दिखाई देने लगते हैं. वहीं कुछ बुजुर्गों में भी मिर्गी के लक्षण दिखाई देते हैं. मिर्गी के झटके की आव्रती तथा सघनता से जानकारी मिलती है की असामान्य इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी से मस्तिष्क का कितना हिस्सा प्रभावित हुआ है.

आयुर्वेद के अनुसार मिर्गी के कुछ मुख्य कारण

  • पौष्टिक भोजन की कमी
  • अस्वास्थ्यकर या जंक आहार
  • प्राकृतिक प्रक्रियाओं को दबाना जैसे पेशाब को रोकना, जम्हाई को रोकना तथा प्यास को अनदेखी करना
  • अस्वास्थ्यकारी यौनिक गतिविधियां जैसे मासिक चक्र के दौरान शारीरिक संबंध बनाना आदि
  • सिर में लगी किसी प्रकार की चोट
  • अत्यधिक मानसिक दबाव तथा तनाव

डॉ. रंग नायकूलू बताते हैं की मिर्गी के दौरे के दौरान लगातार कंपकपाने के अलावा कई बार मरीज अपनी चेतना भी खो देता है. मिर्गी के दौरे के दौरान मरीज के शरीर में होने वाली गतिविधियां तथा परिवर्तन इस प्रकार है;

  1. मुंह से लगातार थूक का निकलना
  2. शरीर का बहुत ज्यादा कांपना
  3. हाथों और पांव में तीव्र जलन होना
  4. बेहोशी के दौरे पड़ना, जो 10 से 15 सेकंड से 1 मिनट तक तक हो सकते हैं.

कैसे करें मदद

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में मिर्गी दौरे से पीड़ित व्यक्ति की मदद करने के लिए निम्नलिखित उपाय बताते गए हैं;

  • मिर्गी के दौरे से पीड़ित व्यक्ति के चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे डाले
  • उन्हें खुली हवादार जगह पर बिठाए
  • उनकी नाक में प्याज के रस की कुछ बूंदें डालें
  • उसे बच जड़ ( वैज्ञानिक नाम- अकोरस कैलेमस) तथा मिर्च की भाप दें

आयुर्वेद में मिर्गी के उपचार

मिर्गी के उपचार के लिए आयुर्वेद में बहुत सी दवाइयां बताई गई हैं. लेकिन इस रोग का उपचार लंबा होता है. आयुर्वेद में मिर्गी के रोग के लिए बताई गई कुछ दवाइयां इस प्रकार हैं;

  1. ब्राह्मी के पौधे (वैज्ञानिक नाम- वाटर हाइस्सोंप) के 200 मिलीलीटर जूस को शहद मिलाकर सेवन करें.
  2. शतावरी की जड़ (वैज्ञानिक नाम- ऐस्पेरेगस) के 10 ग्राम पाउडर का 100 मिलीलीटर दूध के साथ सेवन करें.
  3. वचा (वैज्ञानिक नाम- अकोरस कैलेमस या स्वीट फ्लैग) की 1 ग्राम मात्रा का शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करें.
  4. यष्टिमधु ( वैज्ञानिक नाम – लिकोराइस) पाउडर की 5 ग्राम मात्रा का कद्दू के जूस के साथ दिन में 3 बार सेवन करें.
  5. सारस्वत चूर्ण कि 1 से 3 ग्राम मात्रा का 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करें.
  6. दशमूला क्वाथ कि 20 मिलीलीटर मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें.
  7. ब्राह्मी वटी की चिकित्सक के निर्देशानुसार एक या दो गोली का 50 मिलीलीटर पानी के साथ सेवन करें.
  8. पंचगव्य घृत की 3 से 6 ग्राम मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें.
  9. ब्रह्मी घृत की 15 ग्राम मात्रा का दिन में दो बार गर्म पानी के साथ सेवन करें.

डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की मिर्गी को दौरों या किसी भी प्रकार के रोग के इलाज के लिए विशेषतौर पर आयुर्वेद में अपने आप औषधि नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि आयुर्वेद में रोगी के शरीर की प्रकृति के आधार पर उन्हें दवाई दी जाती है. बहुत जरूरी है कि मिर्गी के रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह के उपरांत ही किसी भी प्रकार की दवाई का सेवन करें.

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