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Stress Awareness Month : स्वास्थ्य व आम जीवन को भी प्रभावित कर सकता है तनाव, अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह 2023 विशेष - international stress management association

तनाव के लगातार बढ़ते मामलों को संज्ञान में लेते हुए , इससे बचाव के लिए हर संभव प्रयास करने तथा आम जन में उससे जुड़े मुद्दों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल अप्रैल माह में अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह मनाया जाता है. Stress Awareness Month 2023 . Stress management .

stress management  Stress Awareness Month history objective
अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह 2023
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Published : Apr 1, 2023, 6:23 AM IST

Updated : Apr 5, 2023, 12:55 PM IST

तनाव या स्ट्रेस को आज के दौर की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना जाता है. आज के दौर में लगभग हर उम्र के व्यक्ति, अलग अलग कारणों से किसी ना किसी प्रकार के तनाव का सामना कर रहें हैं. वैसे तो तनाव एक आम भावना है लेकिन यदि यह समस्या बन जाये तो इसका असर हमारे व्यवहार के साथ ही कई बार शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर भी नजर आने लगता है. यहां तक कि तनाव के बढ़ने पर कई बार पीड़ित की आम दिनचर्या या उसका जीवन भी प्रभावित हो सकता हैं.

तनाव के नकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा हर उम्र में लोग किस प्रकार से अपने अलग अलग प्रकार के तनाव का प्रबंधन कर सकते हैं इस बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से अप्रैल माह को अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है. Stress Awareness Month 2023 . Stress management

stress management  Stress Awareness Month history objective
अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह 2023

तनाव जागरूकता माह का उद्देश्य व इतिहास
तनाव एक ऐसी भावना है जिसका अनुभव हर कोई अपने जीवन में कभी ना करता ही है. लेकिन दुनिया भर में लाखों लोग हर साल इसके नकारात्मक प्रभावों के चलते गंभीर समस्याओं का शिकार भी बन जाते हैं. लेकिन इससे भी बड़ी चिंता का विषय है कि तनाव की गंभीर अवस्था का पता चलते के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग तनाव प्रबंधन के लिए व चिकित्सीय या व्यवसायिक मदद लेने से हिचकिचाते हैं.

तनाव सिर्फ एक परेशानी भरी भावना नहीं है बल्कि यह चिंता और अवसाद, हार्मोनल समस्याएं, सोने में कठिनाई, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और अन्य कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. ना सिर्फ तनाव की गंभीरता बढ़ने से पहले पीड़ित उसके इलाज के लिए प्रेरित हो सके तथा उसे सरलता से इलाज या मदद प्राप्त भी हो सके, इसके साथ ही आम जन में तनाव के कारणों, लक्षणों व उसके प्रबंधन को लेकर जागरूकता फैल सके इसी उद्देश्य के साथ हर साल अप्रैल माह में तनाव प्रबंधन माह मनाया जाता है.

ज्ञात हो कि वर्ष 1992 में पहली बार इस जन जागरूकता माह को मनाया गया था , जिसके बाद से हर साल अप्रैल के महीने में तनाव जागरूकता माह मनाया जाता है. इस अवसर पर सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं, तथा मनोचिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त व व्यक्तिगत रूप से कई जागरूकता कार्यक्रमों, गोष्ठियों, दौड़, तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. गौरतलब है कि तनाव जागरूकता माह की शुरुआत से पहले से ही कार्यस्थल के तनाव में मदद करने के लिए वर्ष 1974 में एक संगठन की स्थापना की गई थी. बाद में वर्ष 1989 में इस संगठन का नाम बदल कर International stress management association ( अंतरराष्ट्रीय तनाव प्रबंधन संघ ) कर दिया गया था. जिसके तहत हर साल तनाव तथा उससे जुड़े मुद्दों पर कई प्रकार के जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

क्या कहते हैं आंकड़े
चिकित्सक मानते हैं कि तनाव की कोई एक परिभाषा नहीं है, क्योंकि यह किसी भी कारण से हो सकता है. पारिवारिक समस्याओं , कार्यस्थल का तनाव, आपसी कलह, आर्थिक या शारीरिक समस्याएं , कोई भी कारण तनाव का कारण बन सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में औसतन 10 हजार लोगों के कुल जीवन में से लगभग 2,443 वर्ष मानसिक समस्याओं विशेषकर तनाव से जूझते गुजरते हैं. वहीं कोविड़ के बाद से कई कारणों से आम जन में स्ट्रेस के मामलों में लगातार बढ़ोतरी भी देखने में आ रहे हैं.

कहते हैं कि थोड़ा तनाव अच्छा होता है लेकिन यदि तनाव एक मानसिक समस्या बन जाए तो इसके परिणाम काफी परेशानीभरे हो सकते हैं. एनसीआरबी के अनुसार 2021 में 13,792 लोगों ने मानसिक बीमारियों के चलते आत्महत्या का रास्ता अपनाया था . जोकि देश में आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी ज्ञात वजह था. आत्महत्या करने वाले इन कुल लोगों में से 6,134 मामले 18 से 45 साल के युवाओं के थे जो किसी ना किसी प्रकार के मानसिक तनाव या उसके कारण उत्पन्न समस्याओं का सामना कर रहे थे. वहीं कंसल्टेंसी एजेंसी डेलॉइट के अनुसार विश्व के मानसिक समस्याओं से जूझ रहे नागरिकों में से 15% जनसंख्या भारतीयों की है. इसी एजेंसी ने 2021 और 2022 के मध्य तक भारत में करीब चार हजार कर्मचारियों पर कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य विषय पर सर्वे किया था. जिसके अनुसार ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जो कार्यस्थल में तनाव का सामना करते हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि यह समझने के बावजूद की वे तनाव का सामना कर रहे हैं वे इलाज के लिए प्रयास नहीं करते हैं क्योंकि आज के समय में भी लोग यह धारणा रखते हैं कि मनोचिकित्सकों की मदद या इलाज सिर्फ ज्यादा गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रसित लोग लेते हैं या वे लोग लेते हैं जिनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया हो. लोगों को ऐसा लगता है कि ऐसा करने पर वे दूसरों की हंसी का पात्र बन जाएंगे.

ऐसे में स्ट्रेस अवेरनेस मंथ लोगों को एक मौका देता है कि वह ना सिर्फ तनाव तथा उसके प्रबंधन से संबंधित मुद्दों को लेकर चर्चा कर सकें साथ ही उस संकोच की जकड़ से बाहर निकलने के लिए प्रयास कर सकें जो उन्हे जरूरी इलाज या मदद लेने से रोकती है. तनाव के कारणों व लक्षणों को समझने और इसके प्रतिकूल प्रभावों पर व्यक्तिगत रूप से अधिक ध्यान देने का प्रयास करना ही तनाव जागरूकता माह मनाने के मुख्य उद्देश्यों में से एक है.

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तनाव या स्ट्रेस को आज के दौर की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना जाता है. आज के दौर में लगभग हर उम्र के व्यक्ति, अलग अलग कारणों से किसी ना किसी प्रकार के तनाव का सामना कर रहें हैं. वैसे तो तनाव एक आम भावना है लेकिन यदि यह समस्या बन जाये तो इसका असर हमारे व्यवहार के साथ ही कई बार शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर भी नजर आने लगता है. यहां तक कि तनाव के बढ़ने पर कई बार पीड़ित की आम दिनचर्या या उसका जीवन भी प्रभावित हो सकता हैं.

तनाव के नकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा हर उम्र में लोग किस प्रकार से अपने अलग अलग प्रकार के तनाव का प्रबंधन कर सकते हैं इस बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से अप्रैल माह को अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है. Stress Awareness Month 2023 . Stress management

stress management  Stress Awareness Month history objective
अंतरराष्ट्रीय तनाव जागरूकता माह 2023

तनाव जागरूकता माह का उद्देश्य व इतिहास
तनाव एक ऐसी भावना है जिसका अनुभव हर कोई अपने जीवन में कभी ना करता ही है. लेकिन दुनिया भर में लाखों लोग हर साल इसके नकारात्मक प्रभावों के चलते गंभीर समस्याओं का शिकार भी बन जाते हैं. लेकिन इससे भी बड़ी चिंता का विषय है कि तनाव की गंभीर अवस्था का पता चलते के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग तनाव प्रबंधन के लिए व चिकित्सीय या व्यवसायिक मदद लेने से हिचकिचाते हैं.

तनाव सिर्फ एक परेशानी भरी भावना नहीं है बल्कि यह चिंता और अवसाद, हार्मोनल समस्याएं, सोने में कठिनाई, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और अन्य कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. ना सिर्फ तनाव की गंभीरता बढ़ने से पहले पीड़ित उसके इलाज के लिए प्रेरित हो सके तथा उसे सरलता से इलाज या मदद प्राप्त भी हो सके, इसके साथ ही आम जन में तनाव के कारणों, लक्षणों व उसके प्रबंधन को लेकर जागरूकता फैल सके इसी उद्देश्य के साथ हर साल अप्रैल माह में तनाव प्रबंधन माह मनाया जाता है.

ज्ञात हो कि वर्ष 1992 में पहली बार इस जन जागरूकता माह को मनाया गया था , जिसके बाद से हर साल अप्रैल के महीने में तनाव जागरूकता माह मनाया जाता है. इस अवसर पर सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं, तथा मनोचिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त व व्यक्तिगत रूप से कई जागरूकता कार्यक्रमों, गोष्ठियों, दौड़, तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. गौरतलब है कि तनाव जागरूकता माह की शुरुआत से पहले से ही कार्यस्थल के तनाव में मदद करने के लिए वर्ष 1974 में एक संगठन की स्थापना की गई थी. बाद में वर्ष 1989 में इस संगठन का नाम बदल कर International stress management association ( अंतरराष्ट्रीय तनाव प्रबंधन संघ ) कर दिया गया था. जिसके तहत हर साल तनाव तथा उससे जुड़े मुद्दों पर कई प्रकार के जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

क्या कहते हैं आंकड़े
चिकित्सक मानते हैं कि तनाव की कोई एक परिभाषा नहीं है, क्योंकि यह किसी भी कारण से हो सकता है. पारिवारिक समस्याओं , कार्यस्थल का तनाव, आपसी कलह, आर्थिक या शारीरिक समस्याएं , कोई भी कारण तनाव का कारण बन सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में औसतन 10 हजार लोगों के कुल जीवन में से लगभग 2,443 वर्ष मानसिक समस्याओं विशेषकर तनाव से जूझते गुजरते हैं. वहीं कोविड़ के बाद से कई कारणों से आम जन में स्ट्रेस के मामलों में लगातार बढ़ोतरी भी देखने में आ रहे हैं.

कहते हैं कि थोड़ा तनाव अच्छा होता है लेकिन यदि तनाव एक मानसिक समस्या बन जाए तो इसके परिणाम काफी परेशानीभरे हो सकते हैं. एनसीआरबी के अनुसार 2021 में 13,792 लोगों ने मानसिक बीमारियों के चलते आत्महत्या का रास्ता अपनाया था . जोकि देश में आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी ज्ञात वजह था. आत्महत्या करने वाले इन कुल लोगों में से 6,134 मामले 18 से 45 साल के युवाओं के थे जो किसी ना किसी प्रकार के मानसिक तनाव या उसके कारण उत्पन्न समस्याओं का सामना कर रहे थे. वहीं कंसल्टेंसी एजेंसी डेलॉइट के अनुसार विश्व के मानसिक समस्याओं से जूझ रहे नागरिकों में से 15% जनसंख्या भारतीयों की है. इसी एजेंसी ने 2021 और 2022 के मध्य तक भारत में करीब चार हजार कर्मचारियों पर कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य विषय पर सर्वे किया था. जिसके अनुसार ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जो कार्यस्थल में तनाव का सामना करते हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि यह समझने के बावजूद की वे तनाव का सामना कर रहे हैं वे इलाज के लिए प्रयास नहीं करते हैं क्योंकि आज के समय में भी लोग यह धारणा रखते हैं कि मनोचिकित्सकों की मदद या इलाज सिर्फ ज्यादा गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रसित लोग लेते हैं या वे लोग लेते हैं जिनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया हो. लोगों को ऐसा लगता है कि ऐसा करने पर वे दूसरों की हंसी का पात्र बन जाएंगे.

ऐसे में स्ट्रेस अवेरनेस मंथ लोगों को एक मौका देता है कि वह ना सिर्फ तनाव तथा उसके प्रबंधन से संबंधित मुद्दों को लेकर चर्चा कर सकें साथ ही उस संकोच की जकड़ से बाहर निकलने के लिए प्रयास कर सकें जो उन्हे जरूरी इलाज या मदद लेने से रोकती है. तनाव के कारणों व लक्षणों को समझने और इसके प्रतिकूल प्रभावों पर व्यक्तिगत रूप से अधिक ध्यान देने का प्रयास करना ही तनाव जागरूकता माह मनाने के मुख्य उद्देश्यों में से एक है.

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Last Updated : Apr 5, 2023, 12:55 PM IST
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