हाल ही में छोटे स्तर पर किए गए दो अध्ययनों के नतीजों में सामने आया है की कोरोना वायरस से पीड़ित बच्चों और युवा वयस्कों के फेफड़ों पर इस वायरस के लक्षण और प्रभाव ज्यादा गंभीर असर नहीं दिखाते हैं. आमतौर पर वृद्ध लोगों के मुकाबले बच्चों तथा नवजातों को श्वसन तंत्र से संबंधित संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील माना जाता हैं, लेकिन जब बात कोरोना वायरस की आती है, तो इस संक्रमण से पीड़ित अधिकांश बच्चों में संक्रमण के बहुत ही हल्के या मध्यम लक्षण तथा प्रभाव नज़र आते हैं.
यूरोपीयन रेस्पिरेट्री सोसायटी इंटरनेशनल कांग्रेस (European Respiratory Society (ERS) International Congress) में प्रस्तुत हुए इन दोनों शोधों में 1,124 प्रतिभागी शामिल हुये थे, जिसमें पाया गया कि बेहद कम प्रतिशत में बच्चे तथा युवाओं में कोविड-19 के गंभीर लक्षण नजर आए थे. इन दोनों शोधों के शोध लेखकों, डॉ. इडा मोगेन्सन और डॉ. ऐनी श्लेगटेन्डल ने वर्चुअल यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी (ERS) इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रस्तुत किया था.
गौरतलब है की डॉ. मोगेन्सन स्वीडन के स्टॉकहोम में करोलिंस्का संस्थान (Karolinska Institute) में पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं तथा डॉ. श्लेगटेंडल जर्मनी के रुहर यूनिवर्सिटी बोचुम ( Ruhr-University Bochum) के यूनिवर्सिटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल में बाल चिकित्सा और किशोर चिकित्सा और बाल चिकित्सा पल्मोनोलॉजी के विशेषज्ञ हैं.
पहला अध्ययन
इनमें से पहले अध्धयन में डॉ. इडा मोगेन्सन ने यह जानने का प्रयास किया था की कोरोना संक्रमण फेफड़ों के कैसे प्रभावित करता है. डॉ. मोगेन्सन ने इस अध्ययन में यह निर्धारित करने का प्रयास किया कि क्या कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी की मौजूदगी के बावजूद इस संक्रमण का फेफड़ों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और क्या अस्थमा, टाइप 2 सूजन, या इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (आईसीएस/ICS) इस संबंध को संशोधित करते हैं?.
इस अध्ययन में डॉ. मोगेन्सन और उनकी टीम ने 661 व्यक्तियों से डेटा एकत्र किया, जिनकी औसत आयु 22 वर्ष थी. 1994 और 1996 के बीच पैदा हुए इन स्वीडिश युवा वयस्कों ने अध्ययन के तहत बीएएमएसई (BMSE) प्रोजेक्ट में भाग लिया. इस समूह में से 27 फीसदी प्रतिभागियों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी पाई गई थी. शोधकर्ताओं ने शोध में प्रतिभागियों के फेफड़ों के कार्य माप और सूजन मार्करों सहित ईसिनोफिल (Eosinophil) की संख्या का विश्लेषण किया, जोकि एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका होती है जो फेफड़ों के कार्य को प्रभावित करती है.
डॉ. मोगेन्सन बताती हैं कि निरीक्षण में रक्त ईोसिनोफिल्स, फ्रैक्शनल एक्सहेल्ड नाइट्रिक ऑक्साइड (Fractional Exhaled Nitric Oxide), एलर्जी संवेदीकरण (allergic sensitization), या आईसीएस उपयोग के कारण फेफड़ों के कार्य में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं पाया गया. वहीं अस्थमा से पीड़ित प्रतिभागियों के फेफड़ों के कार्य में उल्लेखनीय गिरावट नहीं दिखाई दी. हालांकि, उनकी श्वसन वायुमात्रा के माप में थोड़ी कमी अवश्य देखी गई.
दूसरा अध्धयन
वहीं दूसरे अध्धयन में डॉ. श्लेगटेंडल ने अगस्त 2020 और मार्च 2021 के बीच कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक होने के बाद युवाओं में फेफड़ों के कार्य और उसकी स्तिथि पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.
अपने अध्धयन के सार में, डॉ. श्लेगटेंडल बताती हैं कि कोरोना संक्रमण से पीड़ितों में संक्रमण के उपरांत वयस्कों में पल्मोनरी फंक्शन (pulmonary function) में संक्रमण के दीर्घकालिक प्रभाव (हानि) नजर आ सकते हैं. गौरतलब है की डॉ. श्लेगटेंडल और उनकी टीम ने सकारात्मक कोरोना वायरस परीक्षण के बाद 2 सप्ताह से 6 महीने के बीच 5-18 वर्ष की आयु के 73 व्यक्तियों से डेटा एकत्र किया.
जिनमें शोधकर्ताओं ने मल्टीपल-ब्रीथ वॉशआउट, डिफ्यूजन कैपेसिटी टेस्टिंग (Diffusion capacity testing) और बॉडी प्लेथिस्मोग्राफी (Plethysmography) सहित कई निरीक्षण तथा उनके विश्लेषण किए. शोध में इन प्रतिभागियों तथा 45 ऐसे सदस्यों वाले नियंत्रण समूह, जिन्हें कोरोना संक्रमण नहीं था, लेकिन वे किसी अन्य संक्रमण को लेकर संवेदनशील थे. इन लोगों का तुलनात्मक निरीक्षण किया गया. शोध में अस्पताल में भर्ती 10% वयस्कों में स्पिरोमेट्री मूल्यों में कमी तथा 24% में प्रसार क्षमता में कमी पाई गई. वहीं 19 प्रतिभागियों (27.1%) ने अपने कोविड-19 संक्रमण के निदान के बाद भी लगातार नजर आते लक्षणों की सूचना दी, और आठ (11.4%) लोगों ने श्वसन संबंधी लक्षणों की सूचना दी.
लेकिन निरीक्षण में पीड़ित बच्चों और युवा वयस्कों में नियंत्रण समूह के बच्चों की तुलना में, 'असामान्य फेफड़े कार्य की आवृत्ति में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं पाया गया.'
डॉ. श्लेगटेंडल के इस शोध का भी यही निष्कर्ष निकला कि कोरोना संक्रमण के उपरांत भी बच्चों और किशोरों में फेफड़ों के स्वास्थ्य पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है.
अपनी शोध रिपोर्ट में दोनों शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष प्रस्तुत किया. हालांकि, यह अध्ययन संक्रमण के चलते बच्चों के फेफड़ों पर प्रभाव को देखते हुए आश्चर्यजनक हैं, लेकिन चूंकि अध्ययन छोटे स्तर पर किए गए थे, ऐसे में युवाओं के फेफड़ों पर दीर्घकालिक प्रभाव की स्पष्ट तस्वीर उभरने से पहले अधिक डेटा एकत्र करना आवश्यक है.
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