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गर्भावस्था में बहुत जरूरी है सावधानी - pregnancy care

गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है कि महिलाएं अपने आहार, नियमित दिनचर्या तथा जीवनशैली का विशेष ध्यान रखें. थोड़ी सी सावधानियों के साथ महिलायें अपने जीवन के इस खूबसूरत समय को आसानी से बिता सकती हैं.

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गर्भावस्था
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Published : Oct 30, 2021, 1:00 PM IST

गर्भावस्था किसी भी स्त्री के जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता है. गर्भधारण के उपरांत शरीर में बच्चे के विकास का हर चरण माता के लिए बहुत खूबसूरत अहसास होता है. हालांकि इस दौरान उसे कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है इसके लिए उसे कई बातों तथा सावधानियों का ध्यान भी रखना पड़ता है.

उत्तराखंड की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को जीवन शैली तथा खानपान को लेकर विशेष सावधानियाँ बरतने के जरूरत होती है. सभी जानते हैं कि गर्भावस्था की तीनों तिमाहियों में स्वस्थ आहार के सेवन के साथ और भी कई बातें होती हैं जिनका महिला को ध्यान रखना पड़ता हैं. सुरक्षित गर्भावस्था के लिए जरूरी है कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखा जाय, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

नियमित जांच और स्वस्थ आहार जरूरी

गर्भवती महिला का भोजन पोषण से भरपूर होना चाहिए क्योंकि गर्भस्थ शिशु का पोषण भी उसी के पोषण पर आधारित होता है. उसका आहार हल्का, सुपाच्य, फलों और सब्जियों से भरपूर भोजन होना चाहिए. ऐसी अवस्था में महिला को जंक फूड या तेज मिर्च मसाले वाले भोजन से जहां तक हो सके परहेज करना चाहिये. नियमित दूध तथा अन्य डेयरी पदार्थों का सेवन भी उसके लिए जरूरी होता है, लेकिन गर्भावस्था में कुछ विशेष आहार नुकसानदायक हो सकते हैं. ऐसे में गर्भधारण करने की सूचना मिलते ही चिकित्सक से जांच करानी चाहिए तथा उनसे आहार तथा अन्य सावधानियों संबंधी सूचना जैसे क्या करना है क्या नही. इसके साथ-साथ क्या खाना है क्या नहीं के बारे में पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए. इसके अलावा गर्भावस्था की पूरी नौ माह की अवधि के दौरान चिकित्सक या ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ता से जांच करवाते रहना चाहिए तथा नियमित समय पर अल्ट्रासाउंड तथा सोनोग्राफी करानी चाहिए, जिससे माता तथा गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती रहे साथ ही यह भी पता चलता रहे की गर्भ में शिशु का विकास सही ढंग से हो रहा है या नही.

सक्रिय हो दिनचर्या

गर्भावस्था के दौरान पहली तिमाही के बाद महिलाओं को शारीरिक रूप से सक्रिय रहना चाहिए. पहली तिमाही के दौरान चूंकि गर्भावस्था अपने पहले चरण में होती है और जरा सी असावधानी गर्भपात का कारण बन सकती है ऐसे में उठने बैठने या किसी भी कार्य में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि पहली तिमाही में इसलिए शारीरिक संबंधों से परहेज भी बताया जाता है, लेकिन इसके बाद महिलायें जरूरी सावधानी बरतते हुए घर तथा दफ्तर के सभी कार्य कर सकती है. नियमित वॉक तथा चिकित्सक से जानकारी लेने के बाद हल्के-फुल्के व्यायाम या योगा भी कर सकती हैं. लेकिन उन्हें इस पूरी अवधि के दौरान ज्यादा भारी सामान उठाने व ज्यादा जटिल व्यायाम करने से बचना चाहिए तथा जरा सी भी असुविधा महसूस होने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. इसके साथ ही नियमित अंतराल पर आराम भी उनके लिए जरूरी होता है.

धूम्रपान, किसी प्रकार के नशे तथा शराब का सेवन न करें

गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म के समय वजन कम होने तथा लर्निंग डिसेबिलिटी होने का ज्यादा जोखिम होता है. इसके मौजूद निकोटिन बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घातक नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं, जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन करती हैं, वे फेटल अल्कोहल सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को जन्म दे सकती हैं. इस सिंड्रोम में बच्चे में जन्म के समय कम वजन तथा उसमें लर्निंग डिसेबिलिटी व व्यवहार संबंधी समस्याएं होने जैसे समस्याएं हो सकती हैं.

कच्चे मांस से परहेज करें

यूं तो इस दौरान महिलाओं को कम मात्रा मांसाहार खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि ज्यादा तेल व मिर्च मसालों में बने मांसाहारी व्यंजनों का पाचन सरलता से नहीं होता है जिससे महिला को गैस, एसिडिटी तथा अपच जैसी समस्या हो सकती है. जो उसके और बच्चे दोनों की सेहत के लिए ठीक नही होती है. यदि महिलाएं मांसाहारी आहार ले रही हैं तो ध्यान दें कि वह कम घी-तेल तथा कम मिर्च मसालों में बना हो. साथ ही यह ध्यान रखना जरूरी है कि मांस पूरी तरह से पका हुआ हो. कच्चा और अधपका मांस और कच्चे अंडे खाने से लिस्टेरियोसिस और टोक्सोप्लाजमोसिज का जोखिम हो सकता है, साथ ही फूड पॉइजनिंग का भी खतरा बढ़ जाता है, जिससे माता तथा गर्भस्थ शिशु दोनों की जान की खतरा हो सकता है.

ज्यादा कैफीन के सेवन से बचे

कैफीन का ज्यादा मात्रा में सेवन गर्भस्थ शिशु की हृदय की गति को बढ़ा सकता है. साथ ही महिला के रक्तचाप को भी प्रभावित कर सकता है. ऐसे में महिलाओं को हर दिन एक या दो कप कॉफी के ज्यादा के सेवन से बचना चाहिए.

कच्चे दूध के सेवन से बचें

कच्चे मांस की तरह ही गर्भवतियों को कच्चा दूध पीने से भी बचना चाहिए. दरअसल दूध को उबलने के बाद उसमें ऐसे जीवाणु समाप्त हो जाते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं. अनपसचुरेटेड यानी कच्चे दूध में लिस्टेरिया नामक बैक्टीरिया हो सकता है जो कई बीमारियों के साथ ही, गर्भपात का कारण भी बन सकता है. इसलिए गर्भवतियों को प्रतिदिन दूध जरूर पीना चाहिए, लेकिन अच्छे से उबला हुआ.

पर्याप्त मात्रा में नींद जरूरी

डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भवतियों के लिए कार्य के दौरान नियमित अंतराल पर आराम तथा सोने की सही आदतों को अपनाना जरूरी है. जैसे समय पर सोना और समय पर जागना. आमतौर पर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बाद वजन बढ़ने तथा अन्य कारणों के महिलाओं के पैरों में ज्यादा सूजन आने लगती है या वे जल्दी थकान महसूस करने लगती हैं, ऐसे में कार्य के बीच में कुछ देर आराम तथा रात की पूरी नींद उन्हें काफी आराम दिल सकती है.

पढ़ें: सामान्य गर्भनिरोधक नहीं होती हैं इमर्जेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स

गर्भावस्था किसी भी स्त्री के जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता है. गर्भधारण के उपरांत शरीर में बच्चे के विकास का हर चरण माता के लिए बहुत खूबसूरत अहसास होता है. हालांकि इस दौरान उसे कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है इसके लिए उसे कई बातों तथा सावधानियों का ध्यान भी रखना पड़ता है.

उत्तराखंड की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को जीवन शैली तथा खानपान को लेकर विशेष सावधानियाँ बरतने के जरूरत होती है. सभी जानते हैं कि गर्भावस्था की तीनों तिमाहियों में स्वस्थ आहार के सेवन के साथ और भी कई बातें होती हैं जिनका महिला को ध्यान रखना पड़ता हैं. सुरक्षित गर्भावस्था के लिए जरूरी है कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखा जाय, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

नियमित जांच और स्वस्थ आहार जरूरी

गर्भवती महिला का भोजन पोषण से भरपूर होना चाहिए क्योंकि गर्भस्थ शिशु का पोषण भी उसी के पोषण पर आधारित होता है. उसका आहार हल्का, सुपाच्य, फलों और सब्जियों से भरपूर भोजन होना चाहिए. ऐसी अवस्था में महिला को जंक फूड या तेज मिर्च मसाले वाले भोजन से जहां तक हो सके परहेज करना चाहिये. नियमित दूध तथा अन्य डेयरी पदार्थों का सेवन भी उसके लिए जरूरी होता है, लेकिन गर्भावस्था में कुछ विशेष आहार नुकसानदायक हो सकते हैं. ऐसे में गर्भधारण करने की सूचना मिलते ही चिकित्सक से जांच करानी चाहिए तथा उनसे आहार तथा अन्य सावधानियों संबंधी सूचना जैसे क्या करना है क्या नही. इसके साथ-साथ क्या खाना है क्या नहीं के बारे में पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए. इसके अलावा गर्भावस्था की पूरी नौ माह की अवधि के दौरान चिकित्सक या ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ता से जांच करवाते रहना चाहिए तथा नियमित समय पर अल्ट्रासाउंड तथा सोनोग्राफी करानी चाहिए, जिससे माता तथा गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती रहे साथ ही यह भी पता चलता रहे की गर्भ में शिशु का विकास सही ढंग से हो रहा है या नही.

सक्रिय हो दिनचर्या

गर्भावस्था के दौरान पहली तिमाही के बाद महिलाओं को शारीरिक रूप से सक्रिय रहना चाहिए. पहली तिमाही के दौरान चूंकि गर्भावस्था अपने पहले चरण में होती है और जरा सी असावधानी गर्भपात का कारण बन सकती है ऐसे में उठने बैठने या किसी भी कार्य में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि पहली तिमाही में इसलिए शारीरिक संबंधों से परहेज भी बताया जाता है, लेकिन इसके बाद महिलायें जरूरी सावधानी बरतते हुए घर तथा दफ्तर के सभी कार्य कर सकती है. नियमित वॉक तथा चिकित्सक से जानकारी लेने के बाद हल्के-फुल्के व्यायाम या योगा भी कर सकती हैं. लेकिन उन्हें इस पूरी अवधि के दौरान ज्यादा भारी सामान उठाने व ज्यादा जटिल व्यायाम करने से बचना चाहिए तथा जरा सी भी असुविधा महसूस होने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. इसके साथ ही नियमित अंतराल पर आराम भी उनके लिए जरूरी होता है.

धूम्रपान, किसी प्रकार के नशे तथा शराब का सेवन न करें

गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म के समय वजन कम होने तथा लर्निंग डिसेबिलिटी होने का ज्यादा जोखिम होता है. इसके मौजूद निकोटिन बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घातक नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं, जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन करती हैं, वे फेटल अल्कोहल सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को जन्म दे सकती हैं. इस सिंड्रोम में बच्चे में जन्म के समय कम वजन तथा उसमें लर्निंग डिसेबिलिटी व व्यवहार संबंधी समस्याएं होने जैसे समस्याएं हो सकती हैं.

कच्चे मांस से परहेज करें

यूं तो इस दौरान महिलाओं को कम मात्रा मांसाहार खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि ज्यादा तेल व मिर्च मसालों में बने मांसाहारी व्यंजनों का पाचन सरलता से नहीं होता है जिससे महिला को गैस, एसिडिटी तथा अपच जैसी समस्या हो सकती है. जो उसके और बच्चे दोनों की सेहत के लिए ठीक नही होती है. यदि महिलाएं मांसाहारी आहार ले रही हैं तो ध्यान दें कि वह कम घी-तेल तथा कम मिर्च मसालों में बना हो. साथ ही यह ध्यान रखना जरूरी है कि मांस पूरी तरह से पका हुआ हो. कच्चा और अधपका मांस और कच्चे अंडे खाने से लिस्टेरियोसिस और टोक्सोप्लाजमोसिज का जोखिम हो सकता है, साथ ही फूड पॉइजनिंग का भी खतरा बढ़ जाता है, जिससे माता तथा गर्भस्थ शिशु दोनों की जान की खतरा हो सकता है.

ज्यादा कैफीन के सेवन से बचे

कैफीन का ज्यादा मात्रा में सेवन गर्भस्थ शिशु की हृदय की गति को बढ़ा सकता है. साथ ही महिला के रक्तचाप को भी प्रभावित कर सकता है. ऐसे में महिलाओं को हर दिन एक या दो कप कॉफी के ज्यादा के सेवन से बचना चाहिए.

कच्चे दूध के सेवन से बचें

कच्चे मांस की तरह ही गर्भवतियों को कच्चा दूध पीने से भी बचना चाहिए. दरअसल दूध को उबलने के बाद उसमें ऐसे जीवाणु समाप्त हो जाते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं. अनपसचुरेटेड यानी कच्चे दूध में लिस्टेरिया नामक बैक्टीरिया हो सकता है जो कई बीमारियों के साथ ही, गर्भपात का कारण भी बन सकता है. इसलिए गर्भवतियों को प्रतिदिन दूध जरूर पीना चाहिए, लेकिन अच्छे से उबला हुआ.

पर्याप्त मात्रा में नींद जरूरी

डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि गर्भवतियों के लिए कार्य के दौरान नियमित अंतराल पर आराम तथा सोने की सही आदतों को अपनाना जरूरी है. जैसे समय पर सोना और समय पर जागना. आमतौर पर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बाद वजन बढ़ने तथा अन्य कारणों के महिलाओं के पैरों में ज्यादा सूजन आने लगती है या वे जल्दी थकान महसूस करने लगती हैं, ऐसे में कार्य के बीच में कुछ देर आराम तथा रात की पूरी नींद उन्हें काफी आराम दिल सकती है.

पढ़ें: सामान्य गर्भनिरोधक नहीं होती हैं इमर्जेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स

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