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कोरोना के अंधेरे में उम्मीद की किरण है प्लाज्मा थेरेपी - प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है

प्लाज्मा थेरेपी कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए आशा की एक किरण बन कर सामने आई है. प्लाज्मा थैरेपी की मदद से कोविड-19 रोगी के खून से एंटीबॉडी का उपयोग कर वायरस से गंभीर रूप से प्रभावित लोगों का इलाज किया जाता है. थेरेपी के जरिए संक्रमित के शरीर में प्लाज्मा को स्थानांतरित किया जाता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है.

Plasma therapy
प्लाज्मा थेरेपी
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Published : Aug 7, 2020, 2:51 PM IST

Updated : Aug 8, 2020, 9:41 AM IST

कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्लाज्मा थेरेपी एक वरदान की तरह है. प्लाज्मा थेरेपी की मदद से कई गंभीर कोरोना रोगी बिलकुल स्वस्थ होकर अपने घर लौटे है. आखिर क्या है यह प्लाज्मा थेरेपी और किस तरह से कोरोना पीड़ितों को जीवन दान दे सकती है. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने एमबीबीएस, डीसीएस तथा थेलेसिमिया व सिकल सेल सोसाइटी हैदराबाद की सीईओ डॉ. सुमन जैन से बात की.

क्या है प्लाज्मा थेरेपी और कैसे काम करती है

कोरोना के गंभीर रोगियों को दी जाने वाली प्लाज्मा थेरेपी में इस्तेमाल होने वाला प्लाज्मा दरअसल कोरोना के पूर्व रोगियों के शरीर से ही लिया जाता है. कोरोना से ठीक हो चुके रोगियों के शरीर में वांछित मात्रा में एंटीबॉडीज मौजूद रहते हैं, जो वायरस को दूर भगाने में मदद करते है. इस थेरेपी के उपरान्त शरीर में स्थानान्तरित किए गए प्लाज्मा से कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए रोगी के शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है.

डॉ. जैन बताती हैं कि दरअसल बीमार व्यक्ति के शरीर में कोरोना के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडीज बनने में मुश्किल होती है. जिससे उसकी हालत गंभीर हो जाती है. वहीं जो व्यक्ति संक्रमण से ठीक हो चुका होता है. उसके शरीर में कोरोना को हराने वाले एंटीबॉडीज पर्याप्त मात्रा में होते हैं. ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी की सहायता से ठीक हो चुके व्यक्ति के शरीर में कोरोना का वायरस कमजोर होने लगता है और मरीज के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है.

डॉ. जैन बताती हैं कि आम तौर पर 90 प्रतिशत संक्रमितों को इस थेरेपी की जरूरत नहीं होती है. यह थेरेपी सिर्फ उन लोगों के लिए जरूरी मानी जा रही है, जोकि कोरोना के चलते विभिन्न श्वसन तथा अन्य गंभीर बीमारियों की अवस्था को झेल रहे हैं और आईसीयू में भर्ती है.

कब तक और कौन कर सकता है प्लाज्मा का दान

ऐसे व्यक्ति जिन्हें कोरोना से ठीक हुए लगभग 15 दिन हो चुके हैं, प्लाज्मा दान कर सकते है. लेकिन दानकर्ता के लिए जरूरी है कि उसकी उम्र 17 साल या उससे ज्यादा हो. वह स्वस्थ हो तथा उसके शरीर में खून की कमी नहीं होनी चाहिए. वहीं ऐसे व्यक्ति जो कोरोना से तो ठीक हो गए हो, लेकिन वह एचआईवी या फिर एचटीएलवी पीड़ित हो, हेपेटाइटिस बी तथा सी के वाहक हो, सायफिलीस का इलाज करा चुके हो या कभी भी किसी तरह के नशे या शरीर सौष्ठव को बढ़ाने के लिए किसी तरह की दवाई का इंजेक्शन ले चुके हो, प्लाज्मा का दान नहीं कर सकते हैं.

कितनी बार कर सकते हैं और कहां कर सकते है प्लाज्मा दान

कोरोना पर जीत हासिल करने वाले पूर्व रोगियों के शरीर में तीन महीने तक भरपूर मात्रा में एंटीबॉडीज का निर्माण होता है. इन तीन महीनों में लगभग हर 15 दिन के बाद व्यक्ति प्लाज्मा का दान कर सकता है. बशर्ते उसने चिकित्सक द्वारा अपने शरीर की पूरी जांच करवाने की अनुमति ले ली हो.

डॉ. जैन बताती हैं कि चूंकि प्लाज्मा दान करने की प्रक्रिया बहुत सरल होती है. साथ ही साथ प्रक्रिया में बहुत सावधानी बरती जाती है. इसलिए दानकर्ता की जान को कोई नुकसान नहीं होता है. प्लाज्मा दान करने को इच्छुक व्यक्ति किसी भी एफडीए से प्रमाणित ब्लड बैंक या सरकारी अस्पताल में जाकर अपना प्लाज्मा दान कर सकता है. इस प्रक्रिया में 60 से 90 मिनट का समय लगता है, जिसमें कोई दर्द नहीं होता है.

कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्लाज्मा थेरेपी एक वरदान की तरह है. प्लाज्मा थेरेपी की मदद से कई गंभीर कोरोना रोगी बिलकुल स्वस्थ होकर अपने घर लौटे है. आखिर क्या है यह प्लाज्मा थेरेपी और किस तरह से कोरोना पीड़ितों को जीवन दान दे सकती है. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने एमबीबीएस, डीसीएस तथा थेलेसिमिया व सिकल सेल सोसाइटी हैदराबाद की सीईओ डॉ. सुमन जैन से बात की.

क्या है प्लाज्मा थेरेपी और कैसे काम करती है

कोरोना के गंभीर रोगियों को दी जाने वाली प्लाज्मा थेरेपी में इस्तेमाल होने वाला प्लाज्मा दरअसल कोरोना के पूर्व रोगियों के शरीर से ही लिया जाता है. कोरोना से ठीक हो चुके रोगियों के शरीर में वांछित मात्रा में एंटीबॉडीज मौजूद रहते हैं, जो वायरस को दूर भगाने में मदद करते है. इस थेरेपी के उपरान्त शरीर में स्थानान्तरित किए गए प्लाज्मा से कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए रोगी के शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है.

डॉ. जैन बताती हैं कि दरअसल बीमार व्यक्ति के शरीर में कोरोना के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडीज बनने में मुश्किल होती है. जिससे उसकी हालत गंभीर हो जाती है. वहीं जो व्यक्ति संक्रमण से ठीक हो चुका होता है. उसके शरीर में कोरोना को हराने वाले एंटीबॉडीज पर्याप्त मात्रा में होते हैं. ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी की सहायता से ठीक हो चुके व्यक्ति के शरीर में कोरोना का वायरस कमजोर होने लगता है और मरीज के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है.

डॉ. जैन बताती हैं कि आम तौर पर 90 प्रतिशत संक्रमितों को इस थेरेपी की जरूरत नहीं होती है. यह थेरेपी सिर्फ उन लोगों के लिए जरूरी मानी जा रही है, जोकि कोरोना के चलते विभिन्न श्वसन तथा अन्य गंभीर बीमारियों की अवस्था को झेल रहे हैं और आईसीयू में भर्ती है.

कब तक और कौन कर सकता है प्लाज्मा का दान

ऐसे व्यक्ति जिन्हें कोरोना से ठीक हुए लगभग 15 दिन हो चुके हैं, प्लाज्मा दान कर सकते है. लेकिन दानकर्ता के लिए जरूरी है कि उसकी उम्र 17 साल या उससे ज्यादा हो. वह स्वस्थ हो तथा उसके शरीर में खून की कमी नहीं होनी चाहिए. वहीं ऐसे व्यक्ति जो कोरोना से तो ठीक हो गए हो, लेकिन वह एचआईवी या फिर एचटीएलवी पीड़ित हो, हेपेटाइटिस बी तथा सी के वाहक हो, सायफिलीस का इलाज करा चुके हो या कभी भी किसी तरह के नशे या शरीर सौष्ठव को बढ़ाने के लिए किसी तरह की दवाई का इंजेक्शन ले चुके हो, प्लाज्मा का दान नहीं कर सकते हैं.

कितनी बार कर सकते हैं और कहां कर सकते है प्लाज्मा दान

कोरोना पर जीत हासिल करने वाले पूर्व रोगियों के शरीर में तीन महीने तक भरपूर मात्रा में एंटीबॉडीज का निर्माण होता है. इन तीन महीनों में लगभग हर 15 दिन के बाद व्यक्ति प्लाज्मा का दान कर सकता है. बशर्ते उसने चिकित्सक द्वारा अपने शरीर की पूरी जांच करवाने की अनुमति ले ली हो.

डॉ. जैन बताती हैं कि चूंकि प्लाज्मा दान करने की प्रक्रिया बहुत सरल होती है. साथ ही साथ प्रक्रिया में बहुत सावधानी बरती जाती है. इसलिए दानकर्ता की जान को कोई नुकसान नहीं होता है. प्लाज्मा दान करने को इच्छुक व्यक्ति किसी भी एफडीए से प्रमाणित ब्लड बैंक या सरकारी अस्पताल में जाकर अपना प्लाज्मा दान कर सकता है. इस प्रक्रिया में 60 से 90 मिनट का समय लगता है, जिसमें कोई दर्द नहीं होता है.

Last Updated : Aug 8, 2020, 9:41 AM IST
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