यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजी कांग्रेस, में प्रकाशित एक अध्धयन पाया गया है की मोटापे से पीड़ित ऐसे लोग जिन्हे प्रोस्टेट कैंसर की समस्या हो , वह सामान्य वजन वाले व्यक्तियों के मुकाबले ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं। आमतौर मोटापे को कैंसर और कई अन्य गंभीर रोगों में मृत्यु के जोखिम को बढ़ाने वाला कारक माना जाता है। लेकिन शोध में सामने आया है की चूंकि ज्यादा वजन वाले व्यक्तियों का बॉडी मास इंडेक्स ज्यादा होता है इसलिए उनके कम बॉडी मास इंडेक्स वाले रोगियों की तुलना में जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है इसे ‘मोटापा विरोधाभास’ के रूप में भी जाना जाता है।
गौरतलब है की इस शोध के माध्यम से शोधकर्ता निकोला फोसाती, अल्बर्टो मार्टिनी और इटली में सैन रैफेल विश्वविद्यालय के सहयोगी परीक्षण करना चाहते थे कि क्या ‘मोटापा विरोधाभास’ मेटास्टैटिक कैस्ट्रेशन प्रतिरोधी प्रोस्टेट कैंसर वाले मरीजों के लिए काम करता है और क्या यह बीमारी के एक एडवांस स्टेज में टेस्टोस्टेरोन कम करने वाले उपचारों में प्रभावशाली होता है?
शोधकर्ताओं ने इस शोध में तीन अलग-अलग नैदानिक परीक्षणों में शामिल 69 वर्ष की औसत आयु वाले ऐसे 1,577 रोगियों में जीवित रहने की दर को परखा जिनकी औसत बीएमआई 28 थी। जिसके नतीजों में सामने आया की न सिर्फ कैंसर के मामलों में बल्कि सम्पूर्ण रूप में बीएमआई एक प्रोएक्टिव व सुरक्षात्मक कारक होता है जिससे रोगी के किसी भी रोग में जीवित रहने की संभावना 4% तक तथा कैंसर में 29% तक बढ़ जाती है।
शोध में रोगियों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी की उच्च खुराक को भी समायोजित किया गया था जिसमें पाया गया की मोटापे से पीड़ित लोगों पर सुरक्षात्मक प्रभाव बना हुआ है। जिसके चलते अधिक वजन और सामान्य वजन वाले 20 प्रतिशत व्यक्तियों की तुलना में 36 महीनों में लगभग 30 प्रतिशत मोटे रोगी जीवित रहे।
इस अध्धयन में सैन रैफेल विश्वविद्यालय के एक मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ निकोला फोसाती बताते हैं की “प्रोस्टेट कैंसर के मेटास्टेसिस वाले रोगियों की जांच में पाया गया कि मोटे रोगी लंबे समय तक जीवित रहते हैं। इसका मतलब है कि बीएमआई का उपयोग इन रोगियों में जीवित रहने की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है।
वह बताते हैं की “यह मोटापा विरोधाभास कुछ अन्य कैंसर में भी देखा गया है। संभवतः ऊतकों, वसा और कैंसर जीनोम के बीच संबंधों के कारणों को जानने के लिए इस क्षेत्र में और अधिक शोध की आवश्यकता है। वह कहते हैं की हम इस या किसी अन्य बीमारी में किसी को भी वजन बढ़ाने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि मोटापा कई प्रकार के कैंसर और अन्य बीमारियों के लिए एक जोखिम कारक है। उनके अनुसार रोगियों को हमेशा 18 से 24 के स्वस्थ बीएमआई का लक्ष्य रखना चाहिए।
इस अध्धयन में ईएयू वैज्ञानिक कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले डसेलडोर्फ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर अल्बर्स कहते हैं की ““मेटास्टेटिक कैंसर में सकारात्मक परिणाम के साथ शरीर के वजन के संबंध के लिए कई संभावित स्पष्टीकरण हैं। यह हो सकता है कि उच्च बीएमआई वाले रोगी उपचार की विषाक्तता और उनके दुष्प्रभावों को बेहतर ढंग से सहन करने में सक्षम हों। विशेषतौर पर प्रोस्टेट कैंसर में, यह ऊतक वसा में पाए जाने वाले हार्मोन के सुरक्षात्मक प्रभाव के कारण हो सकता है। शोध में यह ज्ञात हो चुका है की है कि थोड़े अधिक बीएमआई वाले स्वस्थ पुरुषों की जीवन प्रत्याशा, पतले लोगों की तुलना में ज्यादा होती है।
साथ ही वह इस बात पर भी जोर देते हैं की फिलहाल, ये केवल परिकल्पनाएं ही हैं। इन विभिन्न परिणामों के पीछे जैविक तंत्र की पहचान करने के लिए और और ज्यादा शोध की आवश्यकता है, और जब तक इस तथ्य की पुष्टि नही हो जाती है तब तक वे एडवांस प्रोस्टेट कैंसर वाले मरीजों के इलाज में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं करते हैं।