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चिकित्‍सा गर्भपात अधिनियम संशोधन से यौन हिंसा पीड़ितों को मिल सकती है मदद - ETV Bharat Sukhibhava

भारत में कई बार ऐसे मामले संज्ञान में आते रहे हैं, जिनमें यौन हिंसा के शिकार बच्चियों को पांच महीने तक गर्भ धारण का पता ही नहीं चल पता था। चूंकि पहले गर्भपात की समयसीमा 20 सप्ताह थी, ऐसे में उन्हें गर्भपात कराने की अनुमति लेने के लिए हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा। जिसमें लंबा समय लगता था। लेकिन भारत सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने हाल ही में चिकित्‍सा गर्भपात अधिनियम, 1971 में संशोधन करने की मंजूरी दी है, जिसके चलते अब यौन हिंसा के पीड़ितों को 24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति मिल पाएगी। बलात्कार जैसी घटनाओं का शिकार कम उम्र की युवतियों और नाबालिकों को कानून में इस संशोधन से काफी मदद मिलेगी।

Medical abortion act amendment
चिकित्‍सा गर्भपात अधिनियम संशोधन
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Published : Mar 21, 2021, 12:44 PM IST

Updated : Mar 24, 2021, 10:57 AM IST

पिछले साल मध्य प्रदेश में घटित हुई एक यौन हिंसा की घटना की शिकार बच्ची की याचिका पर हाईकोर्ट ने गर्भपात का आदेश दिया था। जिसके उपरांत केंद्रीय कैबिनेट ने चिकित्‍सा गर्भपात अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के लिए चिकित्‍सा गर्भपात (एमटीपी) संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दी। चिकित्सा जगत से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह निर्णय ऐसे नाबालिग यौन पीड़ितों के लिए काफी मददगार होगा, जिनका रेप के कारण गर्भ ठहर जाता है और उन्हें या परिवार को बहुत देर से इसका पता चलता है। ऐसे मामलों में उन्हें गर्भपात कराने के लिए कोर्ट में अर्जी लगानी पड़ती है, जिसके लिए अब तक 20 हफ्ते की समयसीमा हुआ करती थी। संशोधित कानून के अनुसार अब गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए एक चिकित्सक की राय लेने की जरूरत और गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए दो चिकित्सकों की राय लेना जरूरी होगा।

लगभग पचास साल पुराने गर्भपात कानून में आए इस बदलाव को एमटीपी नियमों में संशोधन के जरिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएं जैसे विकलांग और नाबालिग महिलाएं भी शामिल होंगी।

इस नए संशोधन के चलते महिलाओं की सुरक्षा तथा सेहत के लिए कुछ विशेष नियम भी बनाए गए हैं, जिनके अनुसार जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है, उनका नाम और अन्य जानकारियां उस वक्त कानून के तहत तय किसी खास व्यक्ति के अलावा अन्य लोगों के लिए गुप्त रखी जाएंगी।

यौन हिंसा की शिकार नाबालिग पीड़ितों की होगी मदद

चिकित्सक बताते हैं की 'भ्रूण संबंधी खास विषमताओं की पहचान 20 हफ्ते के पहले मुमकिन नहीं है और 22 हफ्ते या 24 हफ्ते में भ्रूण का आकार बढ़ जाता है। ऐसे में अविकसित भ्रूण या भ्रूण में किसी गंभीर विषमता का पता लगाया जा सकता है। जाहिर तौर पर यह नया नियम यौन हिंसा की पीड़ितों के लिए मददगार साबित होगा।

दरअसल 1971 के कानून में संशोधन तथा गर्भपात की समयसीमा बढ़ाने की मांग भारत में कई संगठन लंबे अर्से से करते आ रहे हैं। इस आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना था की 1971 का कानून बहुत पुराना है और चिकित्सा प्रगति को नजरअंदाज करता है। अब कानून में इस नए संशोधन के चलते गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तक करने से नाबालिग पीड़ितों की सबसे ज्यादा मदद होगी, उन्हें नए कानून के तहत सरलता से गर्भपात का अधिकार मिल जाएगा।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं देने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग हितधारकों और मंत्रालयों के साथ विचार के बाद ही गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया था।

गौरतलब है की ग्रीस, फिनलैंड और ताइवान देशों में गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तय है। जबकि अमेरिका के कई राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध है। हालांकि विश्व भर में विपरीत पारिस्थितियों के चलते गर्भपात को लेकर अब पहले से उदार प्रवृत्ति अपनाई जा रही है.

क्या हैं गर्भपात से जुड़े कानून

हमारे देश में ज्यादातर महिलाओं को गर्भपात से जुड़े कानून पता ही नहीं है। भारत में गर्भपात, कानूनी रूप से वैध है, और इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 जिम्मेदार है। हालांकि अभी तक कानूनी तौर पर गर्भधारण के केवल 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) के तहत, गर्भधारण के उपरांत निर्धारित समय तक गर्भ को निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है;

  1. यदि गर्भावस्था के चलते गर्भवती महिला के जीवन पर संकट हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका हो।
  2. यदि गर्भावस्था, बलात्कार का परिणाम है।
  3. यदि यह सम्भावना है कि भ्रूण गंभीर शारीरिक या मानसिक दोष के साथ पैदा होगा
  4. यदि गर्भनिरोधक विफल रहा है।

पढे़: मां ही नहीं परिवार के लिए भी बड़ी हानि है जन्मे या अजन्मे बच्चे की मृत्यु : गर्भावस्था तथा शिशु हानि स्मरण माह

इसके अतिरिक्त नाबालिगों या मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला की गर्भावस्था के मामले में, गर्भपात के लिए माता-पिता से लिखित सहमति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा एक अविवाहित महिला, गर्भपात के कारण के रूप में गर्भनिरोधक की विफलता का हवाला नहीं दे सकती है।

पिछले साल मध्य प्रदेश में घटित हुई एक यौन हिंसा की घटना की शिकार बच्ची की याचिका पर हाईकोर्ट ने गर्भपात का आदेश दिया था। जिसके उपरांत केंद्रीय कैबिनेट ने चिकित्‍सा गर्भपात अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के लिए चिकित्‍सा गर्भपात (एमटीपी) संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दी। चिकित्सा जगत से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह निर्णय ऐसे नाबालिग यौन पीड़ितों के लिए काफी मददगार होगा, जिनका रेप के कारण गर्भ ठहर जाता है और उन्हें या परिवार को बहुत देर से इसका पता चलता है। ऐसे मामलों में उन्हें गर्भपात कराने के लिए कोर्ट में अर्जी लगानी पड़ती है, जिसके लिए अब तक 20 हफ्ते की समयसीमा हुआ करती थी। संशोधित कानून के अनुसार अब गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए एक चिकित्सक की राय लेने की जरूरत और गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने के लिए दो चिकित्सकों की राय लेना जरूरी होगा।

लगभग पचास साल पुराने गर्भपात कानून में आए इस बदलाव को एमटीपी नियमों में संशोधन के जरिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएं जैसे विकलांग और नाबालिग महिलाएं भी शामिल होंगी।

इस नए संशोधन के चलते महिलाओं की सुरक्षा तथा सेहत के लिए कुछ विशेष नियम भी बनाए गए हैं, जिनके अनुसार जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है, उनका नाम और अन्य जानकारियां उस वक्त कानून के तहत तय किसी खास व्यक्ति के अलावा अन्य लोगों के लिए गुप्त रखी जाएंगी।

यौन हिंसा की शिकार नाबालिग पीड़ितों की होगी मदद

चिकित्सक बताते हैं की 'भ्रूण संबंधी खास विषमताओं की पहचान 20 हफ्ते के पहले मुमकिन नहीं है और 22 हफ्ते या 24 हफ्ते में भ्रूण का आकार बढ़ जाता है। ऐसे में अविकसित भ्रूण या भ्रूण में किसी गंभीर विषमता का पता लगाया जा सकता है। जाहिर तौर पर यह नया नियम यौन हिंसा की पीड़ितों के लिए मददगार साबित होगा।

दरअसल 1971 के कानून में संशोधन तथा गर्भपात की समयसीमा बढ़ाने की मांग भारत में कई संगठन लंबे अर्से से करते आ रहे हैं। इस आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना था की 1971 का कानून बहुत पुराना है और चिकित्सा प्रगति को नजरअंदाज करता है। अब कानून में इस नए संशोधन के चलते गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तक करने से नाबालिग पीड़ितों की सबसे ज्यादा मदद होगी, उन्हें नए कानून के तहत सरलता से गर्भपात का अधिकार मिल जाएगा।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं देने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग हितधारकों और मंत्रालयों के साथ विचार के बाद ही गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया था।

गौरतलब है की ग्रीस, फिनलैंड और ताइवान देशों में गर्भपात की समयसीमा 24 हफ्ते तय है। जबकि अमेरिका के कई राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध है। हालांकि विश्व भर में विपरीत पारिस्थितियों के चलते गर्भपात को लेकर अब पहले से उदार प्रवृत्ति अपनाई जा रही है.

क्या हैं गर्भपात से जुड़े कानून

हमारे देश में ज्यादातर महिलाओं को गर्भपात से जुड़े कानून पता ही नहीं है। भारत में गर्भपात, कानूनी रूप से वैध है, और इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 जिम्मेदार है। हालांकि अभी तक कानूनी तौर पर गर्भधारण के केवल 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) के तहत, गर्भधारण के उपरांत निर्धारित समय तक गर्भ को निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है;

  1. यदि गर्भावस्था के चलते गर्भवती महिला के जीवन पर संकट हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका हो।
  2. यदि गर्भावस्था, बलात्कार का परिणाम है।
  3. यदि यह सम्भावना है कि भ्रूण गंभीर शारीरिक या मानसिक दोष के साथ पैदा होगा
  4. यदि गर्भनिरोधक विफल रहा है।

पढे़: मां ही नहीं परिवार के लिए भी बड़ी हानि है जन्मे या अजन्मे बच्चे की मृत्यु : गर्भावस्था तथा शिशु हानि स्मरण माह

इसके अतिरिक्त नाबालिगों या मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला की गर्भावस्था के मामले में, गर्भपात के लिए माता-पिता से लिखित सहमति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा एक अविवाहित महिला, गर्भपात के कारण के रूप में गर्भनिरोधक की विफलता का हवाला नहीं दे सकती है।

Last Updated : Mar 24, 2021, 10:57 AM IST
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