मिडवाइव्स यानी दाइयों के काम को मान्यता देने और तथा नई माताओं और उनके नवजात शिशुओं को प्रदान की जाने वाली आवश्यक देखभाल में दाइयों को भूमिका को लेकर ज्यादा जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल इंटरनेशनल मिडवाइफ डे मनाया जाता है। 1992 से हर साल 5 मई को मनाए जाने वाले इस दिवस का एक उद्देश्य यह भी है की किस तरह से हर साल बड़ी संख्या में प्रसव के दौरान होने वाली महिलाओं की मृत्यु, जन्म से पूर्व गर्भ में होने वाले बच्चों की मृत्यु तथा बच्चे के जन्म के एक माह के भीतर होने वाली नवजातों की मृत्यु दर में प्रशिक्षित दाइयों की मदद से कमी लायी जा सके। इस वर्ष यह विशेष दिवस 'फॉलो द डेटा, इन्वेस्ट इन मिड्वाइफ' यानी आंकड़ों की माने और दाइयों को प्रशिक्षित और ज्यादा समर्थ बनाने का प्रयास करें, विषय पर मनाया जा रहा है।
क्या होती है मिडवाइफ यानी दाई
वैश्विक स्तर पर दाइयों की भूमिका को हमेशा से ही सम्मानित भाव से देखा जाता है। गौरतलब है की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2020 को नर्सिंग पायनियर फ्लोरवे नाइटिंगेल की 200 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 'ईयर ऑफ नर्स एंड मिडवाइफ' के रूप में मनाया गया था। इस वर्ष भी इस विशेष दिवस को लेकर जारी आधिकारिक सूचना में जच्चा और बच्चा की सुरक्षा तथा उसके बेहतर स्वास्थ्य के लिए दाइयों को जरूरी प्रशिक्षण दिए जाने पर जोर दिया गया है।
दरअसल दाई वह व्यक्ति है, जो किसी भी महिला के गर्भधारण करने के उपरांत, प्रसव से पहले तथा उसके उपरांत भी मां तथा बच्चे की सुरक्षा तथा उसके स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मदद करती है। गर्भधारण के उपरांत महिला को किसी भी प्रकार की चिकित्सा समस्या होने पर उसे सही सलाह देना, चिकित्सीय मदद उपलब्ध कराना, बच्चे के जन्म के दौरान तथा उस के तत्काल बाद सभी जरूरी जानकारियां तथा सुविधाएं मुहैया कराना दाई की जिम्मेदारी होती है।
द इंटरनेशनल कनफेडरेशन ऑफ मिडवाइफ (आईसीएम) के अनुसार दाई को उस स्वास्थ्य कर्मी के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसने अपने देश के नियमों के अनुसार तथा आईसीएम ग्लोबल के मानकों के आधार पर जरूरी शिक्षा प्राप्त की हो तथा जो इस कार्य को करने के लिए पंजीकृत हो।
दाइयों की भूमिका
दुनिया भर में मिडवाइफ यानी दाई का प्रचलन सदियों से रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में लगभग 83 प्रतिशत गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान होने वाली महिलाओं की मृत्यु, माता के गर्भ में होने वाली शिशु मृत्यु, तथा जन्म के एक माह में होने वाली नवजात मृत्यु दर में प्रशिक्षित दाई की सही भूमिका तथा उसकी मदद से कमी लाई जा सकती है। हमारे देश भारत में हर साल प्रसव के दौरान होने वाली लगभग 35,000 महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं। आंकड़ों के अनुसार हर साल लगभग 2,72,000 जन्म से पूर्व गर्भ में ही होने वाली मृत्यु तथा 5,62,000 नवजात बच्चों की जन्म के प्रथम माह में होने वाली मृत्यु दर को प्रशिक्षित दाईयों की मदद से कम किया जा सकता है।
मिडवाइफ तथा कोविड-19
वैसे तो कोविड-19 के इस दौर में लगभग सभी चिकित्सक तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मी आगे आकर लोगों की मदद कर रहे हैं तथा मरीजों की देखभाल कर रहे हैं। लेकिन कोरोना के चलते अस्पतालों को संक्रमण फैलने के लिहाज से काफी ज्यादा संवेदनशील माना जा रहा है। ऐसे में सामान्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर लोग अस्पताल जाने में घबराने लगे है। कुछ ऐसी ही स्थिति का सामना गर्भवती महिलाएं भी कर रहीं है और अपनी जांच तथा प्रसव के लिए अस्पताल जाने में घबरा रही हैं। फ्लैमिश प्रोफेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ मिडवाइफ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में बड़ी संख्या में महिलाएं अपने घर में बच्चे को जन्म देने को प्रमुखता दे रहे हैं। ऐसी अवस्था में मिडवाइफ यानी दाई एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। प्रशिक्षित दाइयां ऐसी अवस्था में ना सिर्फ शारीरिक समस्याओं में जरूरी सलाह देकर तथा अन्य माध्यमों से गर्भवती महिलाओं की मदद कर रहीं है, बल्कि उन्हें भावनात्मक तथा मानसिक संबल देने का भी प्रयास कर रही हैं, जो इस कठिन समय में उनके लिए बहुत जरूरी है।