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महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर विशेष - women problem

आमतौर पर हम खतना को सिर्फ पुरुषों से जोड़ कर देखते है, ज्यादातर लोग नहीं जानते की एक धर्म विशेष में महिलाओं में भी खतना प्रथा का पालन किया जाता है। हालांकि हमारे देश में यह बहुत प्रचलित प्रथा नहीं है लेकिन वैश्विक तौर पर इस प्रथा के चलते बड़ी संख्या में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस प्रथा के विरोध में हर साल दुनिया भर में 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।

FEMALE GENITAL MUTATION
महिलाओं में खतना प्रथा
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Published : Feb 6, 2021, 11:07 AM IST

बर्बरता का प्रतीक है महिलाओं में खतना प्रथा

फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफ.जी.एम) यानि महिला जननांग विकृति जिसे साधारण भाषा में खतना भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रथा है जो महिलाओं के प्रति बर्बर व्यवहार को दर्शाती है। विश्व भर में इस प्रथा के चलते महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य तथा इस प्रथा के विरोध में, महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। 6 फरवरी को मनाए जाने वाले इस विशेष दिवस एक खास उद्देश्य यह भी है की दुनिया भर के लोग धर्म और परंपराओं के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली इस प्रथा को समाप्त करने के लिए एकजुट हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में महिलाए जननांग विकृति यानी खतना का शिकार बनती है। इसी के चलते डब्ल्यूएचओ तथा सहयोगी संगठनों द्वारा वर्ष 2030 तक महिला जननांग विकृति यानी नारी खतना को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस का इतिहास

सर्वप्रथम 1997 में इस प्रथा को विरोध करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूनिसेफ तथा यूएनएफपीए के साथ संयुक्त रूप से एक बयान जारी किया था। जिसके बाद साल दर साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई छोटे बड़े प्रयास किए जाते रहे है। वर्ष 2007 में यूएनएफपीए तथा यूनिसेफ द्वारा इस प्रथा के विरोध में एक संयुक्त कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। जिसके उपरांत 2012 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया और 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में रूप में नामित किया। इस अवसर पर हर साल यूएनएफपीए द्वारा महिला जननांग विकृति को समाप्त करने के लिए 'ए पीस ऑफ मी' नामक अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खतना के कारण महिलाओं और बच्चियों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के इलाज के लिए दुनिया भर में हर साल लगभग 1.4 अरब डॉलर खर्च होते है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाओं और बच्चियों को सांस्कृतिक और नॉन-मेडिकल कारणों से खतने का सामना करना पड़ता है। यूनिसेफ के अनुसार खतने से पीड़ित करीब एक चौथाई यानि लगभग 5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को विभिन्न कारणों से स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती है। गौरतलब है की इस प्रथा का पालन करने वालों में ज्यादातर अफ्रीका, मिडिल ईस्ट देशों, एशिया के कुछ देशों तथा लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा नॉर्थ अमेरिका में बाहरी देशों से आकार बसे एक धर्म विशेष का पालन करने वाल लोग शामिल है।

क्या है फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन और क्या होते है उससे नुकसान

खतना की इस प्रक्रिया में महिलाओं की योनी के क्लिटोरिस नाम के हिस्से को ब्लेड से हटा दिया जाता है। वहीं, कई बार इस खतना में योनी को सिल दिया जाता है या फिर पूरी क्लिटोरिस को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। खतना की पूरी प्रक्रिया बहुत दर्दनाक होती है। लेकिन ज्यादातर इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बच्चियों को पूरे होश में रखा जाता है और उन्हें किसी भी प्रकार का एनेस्थीसिया या बेहोश करने वाली दवा नहीं दी जाती। यह प्रक्रिया ज्यादातर जन्म से 15 वर्ष की उम्र के बीच की जाती है।

खतना के बाद आमतौर पर बच्चियों और महिलाओं को अंडाशय में गांठ, पेशाब करने में दर्द और बाद में संक्रमण, मासिक में समस्या, योनी में सूजन, दर्द और खुजली की समस्या तथा शारीरिक संबंधों के दौरान तकलीफ रहती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार जेनिटल म्यूटिलेशन से महिलाओं को दो तरह के दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है। एक तुरंत होने वाले नुकसान और दूसरा लंबे समय तक बने रहने वाला नुकसान। एक ही रेजर से कई महिलाओं का खतना होने से उन्हें योनी संक्रमण के अलावा बांझपन और एचआइवी एड्स जैसी बीमारियों का खतरा होता है। खतने के दौरान ज्यादा खून बहने से कई बार बच्ची की मौत भी हो जाती है। दर्द सहन न कर पाने और शॉक के कारण कई बच्चियां कोमा में भी चली जाती हैं। सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य पर यह प्रक्रिया काफी ज्यादा असर डालती है। इसके चलते वह पोस्ट ट्रॉमेंटिक डिसऑर्डर, डिप्रेशन आदि की शिकार भी हो सकती है।

खतना को लेकर कानून

डब्लूएचओ की वैज्ञानिक डॉ क्रिस्टीना पेलिटो के अनुसार दुनिया भर के कई देशों में इस विकृति को समाप्‍त करने के लिए कानून भी बनाया है। 1997 में अफ्रीका और मध्‍य पूर्व के 26 देशों ने इस प्रथा कानूनी रूप से प्रति‍बंधित किया। लेकिन अभी भी लगभग 33 देशों में यह प्रथा खुलेआम चल रही है। यूनिसेफ का कहना है कि यह चिंताजनक है कि पिछले दो दशकों में खतना की संख्‍या में बेहद इजाफा हुआ है। यह करीब-करीब दोगुना हो गया है। हमारे देश भारत में भी एक समुदाय विशेष की महिलाओं में खतना प्रथा का पालन किया जाता है जिसके विरोध में न सिर्फ महिलाओं बल्कि कई सामाजिक संगठनों द्वारा कानून पारित करने के लिए मुहिम चलाई जा रही है।

कोरोना तथा फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन

वर्ष 2020 में महामारी के दौर में दुनिया भर में महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थ्य पर तो नकारात्मक असर डाला ही बल्कि कई देशों इस दौरान फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के मामलों में भी काफी बढ़ोत्तरी नजर आई। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में तालाबंदी के दौरान खतना के मामलों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। डब्ल्यूएचओ तथा एचआरपी की ओर से वर्तमान समय तथा भविष्य में भी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर दुनिया भर, विशेषकर ऐसे देशों जहां इस प्रथा का ज्यादा पालन होता है, विशेष प्रबंध किए गए है। साथ ही इन देशों में जागरूकता फैलाने के साथ ही नर्सों तथा दाइयों को विशेष प्रशिक्षण भी दिए जा रहे है। कोरोना काल क दौरान खतना के कारण बीमार हुई लड़कियों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए भी डब्ल्यूएचओ तथा एचआरपी की ओर से विशेष प्रयास किए जा रहे है।

बर्बरता का प्रतीक है महिलाओं में खतना प्रथा

फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफ.जी.एम) यानि महिला जननांग विकृति जिसे साधारण भाषा में खतना भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रथा है जो महिलाओं के प्रति बर्बर व्यवहार को दर्शाती है। विश्व भर में इस प्रथा के चलते महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य तथा इस प्रथा के विरोध में, महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। 6 फरवरी को मनाए जाने वाले इस विशेष दिवस एक खास उद्देश्य यह भी है की दुनिया भर के लोग धर्म और परंपराओं के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली इस प्रथा को समाप्त करने के लिए एकजुट हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में महिलाए जननांग विकृति यानी खतना का शिकार बनती है। इसी के चलते डब्ल्यूएचओ तथा सहयोगी संगठनों द्वारा वर्ष 2030 तक महिला जननांग विकृति यानी नारी खतना को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस का इतिहास

सर्वप्रथम 1997 में इस प्रथा को विरोध करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूनिसेफ तथा यूएनएफपीए के साथ संयुक्त रूप से एक बयान जारी किया था। जिसके बाद साल दर साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई छोटे बड़े प्रयास किए जाते रहे है। वर्ष 2007 में यूएनएफपीए तथा यूनिसेफ द्वारा इस प्रथा के विरोध में एक संयुक्त कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। जिसके उपरांत 2012 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया और 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहिष्णुता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में रूप में नामित किया। इस अवसर पर हर साल यूएनएफपीए द्वारा महिला जननांग विकृति को समाप्त करने के लिए 'ए पीस ऑफ मी' नामक अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खतना के कारण महिलाओं और बच्चियों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के इलाज के लिए दुनिया भर में हर साल लगभग 1.4 अरब डॉलर खर्च होते है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाओं और बच्चियों को सांस्कृतिक और नॉन-मेडिकल कारणों से खतने का सामना करना पड़ता है। यूनिसेफ के अनुसार खतने से पीड़ित करीब एक चौथाई यानि लगभग 5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को विभिन्न कारणों से स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती है। गौरतलब है की इस प्रथा का पालन करने वालों में ज्यादातर अफ्रीका, मिडिल ईस्ट देशों, एशिया के कुछ देशों तथा लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा नॉर्थ अमेरिका में बाहरी देशों से आकार बसे एक धर्म विशेष का पालन करने वाल लोग शामिल है।

क्या है फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन और क्या होते है उससे नुकसान

खतना की इस प्रक्रिया में महिलाओं की योनी के क्लिटोरिस नाम के हिस्से को ब्लेड से हटा दिया जाता है। वहीं, कई बार इस खतना में योनी को सिल दिया जाता है या फिर पूरी क्लिटोरिस को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। खतना की पूरी प्रक्रिया बहुत दर्दनाक होती है। लेकिन ज्यादातर इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बच्चियों को पूरे होश में रखा जाता है और उन्हें किसी भी प्रकार का एनेस्थीसिया या बेहोश करने वाली दवा नहीं दी जाती। यह प्रक्रिया ज्यादातर जन्म से 15 वर्ष की उम्र के बीच की जाती है।

खतना के बाद आमतौर पर बच्चियों और महिलाओं को अंडाशय में गांठ, पेशाब करने में दर्द और बाद में संक्रमण, मासिक में समस्या, योनी में सूजन, दर्द और खुजली की समस्या तथा शारीरिक संबंधों के दौरान तकलीफ रहती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार जेनिटल म्यूटिलेशन से महिलाओं को दो तरह के दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है। एक तुरंत होने वाले नुकसान और दूसरा लंबे समय तक बने रहने वाला नुकसान। एक ही रेजर से कई महिलाओं का खतना होने से उन्हें योनी संक्रमण के अलावा बांझपन और एचआइवी एड्स जैसी बीमारियों का खतरा होता है। खतने के दौरान ज्यादा खून बहने से कई बार बच्ची की मौत भी हो जाती है। दर्द सहन न कर पाने और शॉक के कारण कई बच्चियां कोमा में भी चली जाती हैं। सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य पर यह प्रक्रिया काफी ज्यादा असर डालती है। इसके चलते वह पोस्ट ट्रॉमेंटिक डिसऑर्डर, डिप्रेशन आदि की शिकार भी हो सकती है।

खतना को लेकर कानून

डब्लूएचओ की वैज्ञानिक डॉ क्रिस्टीना पेलिटो के अनुसार दुनिया भर के कई देशों में इस विकृति को समाप्‍त करने के लिए कानून भी बनाया है। 1997 में अफ्रीका और मध्‍य पूर्व के 26 देशों ने इस प्रथा कानूनी रूप से प्रति‍बंधित किया। लेकिन अभी भी लगभग 33 देशों में यह प्रथा खुलेआम चल रही है। यूनिसेफ का कहना है कि यह चिंताजनक है कि पिछले दो दशकों में खतना की संख्‍या में बेहद इजाफा हुआ है। यह करीब-करीब दोगुना हो गया है। हमारे देश भारत में भी एक समुदाय विशेष की महिलाओं में खतना प्रथा का पालन किया जाता है जिसके विरोध में न सिर्फ महिलाओं बल्कि कई सामाजिक संगठनों द्वारा कानून पारित करने के लिए मुहिम चलाई जा रही है।

कोरोना तथा फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन

वर्ष 2020 में महामारी के दौर में दुनिया भर में महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थ्य पर तो नकारात्मक असर डाला ही बल्कि कई देशों इस दौरान फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के मामलों में भी काफी बढ़ोत्तरी नजर आई। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में तालाबंदी के दौरान खतना के मामलों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। डब्ल्यूएचओ तथा एचआरपी की ओर से वर्तमान समय तथा भविष्य में भी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर दुनिया भर, विशेषकर ऐसे देशों जहां इस प्रथा का ज्यादा पालन होता है, विशेष प्रबंध किए गए है। साथ ही इन देशों में जागरूकता फैलाने के साथ ही नर्सों तथा दाइयों को विशेष प्रशिक्षण भी दिए जा रहे है। कोरोना काल क दौरान खतना के कारण बीमार हुई लड़कियों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए भी डब्ल्यूएचओ तथा एचआरपी की ओर से विशेष प्रयास किए जा रहे है।

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