Frontotemporal Dementia : डिमेंशिया या मनोभ्रंश को ज्यादातर भूलने की बीमारी ही माना जाता है. क्योंकि इसके ज्यादातर प्रकारों में पीड़ित की यारदाश्त प्रभावित होती है. वहीं इसके लिए आमतौर पर बढ़ती या ज्यादा उम्र को जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन डिमेंशिया के लिए बढ़ती उम्र के अलावा कई अन्य शारीरिक रोग, मानसिक विकार या अवस्थाएं भी जिम्मेदार हो सकती है. और यह रोग सिर्फ बुढ़ापे ही नहीं बल्कि युवा या अधेड़ अवस्था में भी प्रभावित कर सकता हैं. डिमेंशिया के एक से ज्यादा प्रकार होते हैं, जिनके लक्षण तथा प्रभाव अलग-अलग भी हो सकते हैं.
हाल ही में हॉलीवुड अभिनेता ब्रूस विलिस में डिमेंशिया के एक प्रकार “फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया” के होने की खबर ने इस रोग को लेकर लोगों की उत्सुकता काफी बढ़ाई है. दरअसल फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया या एफटीडी को डिमेंशिया के मुख्य प्रकारों में से एक माना जाता है. यह एक जटिल तथा लाइलाज रोग है जो मस्तिष्क के कुछ खंडों में हानि से संबंधित है. इस रोग की गंभीरता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस रोग के प्रभाव में आने पर धीरे-धीरे पीड़ित को ना सिर्फ बोलने , सोचने, समझने तथा आम दिनचर्या का पालन करने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है बल्कि समस्या ज्यादा बढ़ जाने पर उसके दूसरों पर आश्रित होने की नौबत भी आ सकती है.
क्या है फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया
एसोसिएशन फॉर फ्रंटो-टेम्पोरल डिजनरेशन ( AFTD ) के अनुसार फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया , मनोभ्रंश या डिमेंशिया का एक प्रमुख प्रकार है, जिसका आमतौर पर समय पर पता नहीं चलता है. क्योंकि इस रोग के शुरुआती दौर में आमतौर पर डिमेंशिया के आम लक्षण नजर नहीं आते हैं, जैसे विशेषतौर पर भूलने की या याददाश्त संबंधी समस्या.
इस रोग में शुरुआत में पीड़ित में व्यवहार, बोलचाल या भाषा संबंधी लक्षण नजर आते है लेकिन ज्यादातर मामलों में वे इतने आम होते हैं कि अधिकांश लोग उन्हे किसी बड़ी समस्या से जोड़कर नहीं देखते हैं. ऐसे में जब तक फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया या एफटीडी के होने की पुष्टि होती है तब तक रोग काफी ज्यादा प्रभावित कर चुका होता है.
जानकार मानते हैं कि डिमेंशिया के अन्य प्रकारों के मुकाबले फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया में देखभाल ज्यादा चुनौतीपूर्ण, मुश्किल और तनावपूर्ण हो सकती है.
संगठन की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार फ्रंटो-टेम्पोरल डिजनरेशन या डिमेंशिया (एफटीडी) एक विशिष्ट रोग नहीं है बल्कि एक श्रेणी है जिसमें ऐसे रोग शामिल होते हैं जिनमें मस्तिष्क के फ्रंटल लोब और टेम्पोरल लोब को हानि पहुंचती है और जो डिमेंशिया का कारण बनते हैं.
गौरतलब है कि हमारे मस्तिष्क का फ्रंटल लोब यानी मस्तिष्क का सामने वाला हिस्सा हमारे निर्णय लेने की, चयन करने की तथा सोचने की क्षमता से संबंधित होता है. इसके अलावा उचित व्यवहार का चयन, ध्यान देना या ध्यान केंद्रित करना , योजना बनाना, भावनाओं पर नियंत्रण आदि, हमारे मस्तिष्क के फ्रंटल लोब से संचालित होते हैं. वहीं टेम्पोरल लोब भाषा को समझने, उसके इस्तेमाल, इन्द्रिओं के निर्देशों या संकेतों को समझने तथा उन्हे आगे पहुंचाने की क्षमता से जुड़ा होता है.
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया, रोग- मनोविकार या किसी भी कारण से मस्तिष्क के इन दोनों खंडों में या दोनों में से किसी एक में भी क्षति पहुंचने का कारण होता है. दरअसल प्रभावित खंडों में क्षति या नुकसान पहुंचने की अवस्था में कई बार उनमें कुछ असामान्य प्रोटीन एकत्रित होने लगते हैं तथा कुछ अन्य रासायनिक प्रतिक्रिया भी होने लगती हैं. जिनके कारण कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने लगता हैं और प्रभावित लोब सिकुड़ने लगते हैं. जिससे उस लोब से संबंधित कार्यों में समस्या होने लगती है. चिंता की बात यह है कि इस रोग के फैलने की रफ्तार काफी तेज होती है. ऐसे में यह मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करने लगता है.
AFTD के अनुसार इसके मामले ज्यादातर 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों में देखने में आते हैं, हालांकि 60 से ज्यादा उम्र के लोगों में भी यह रोग नजर आ सकता है लेकिन ऐसा अपेक्षाकृत कम होता है.
लक्षण
जब किसी व्यक्ति को फ्रंटो-टेम्पोरल किस्म का डिमेंशिया होता है, तो ज्यादातर मामलों में इसकी शुरुआत में पीड़ित को यारदाश्त संबंधी नही बल्कि भाषा-संबंधी तथा व्यवहार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जोकि फ्रंटल तथा टेम्पोरल लोब से संबंधित होते हैं. एफटीडी में जो लक्षण अलग-अलग चरण में नजर आ सकते हैं, वह इस प्रकार हैं.
- कार्य करने में असामान्यता या सही तरीके से काम ना कर पाना
- चाल, मुद्रा या शरीर के संतुलन में समस्या
- असामान्य या बाध्यकारी आदतों का विकार होना जैसे अश्लील व्यवहार या असामान्य व्यवहार
- भावनाओं को ना समझ पाना
- परेशान या बेचैन रहना
- उत्तेजित या आक्रामक होना
- बातों को दोहराना
- ध्यान केंद्रित ना कर पाना
- निर्णय लेने में व प्रतिक्रिया देने में परेशानी
- बोलने में समस्या, हकलाना
- पढ़ने व भाषा समझने में समस्या ,यहां तक की कभी-कभी सामान्य बातचीत में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का अर्थ ना समझ पाना
- आराम से सो ना पाना
- लोगों व वस्तुओं के नाम को पहचानने में समस्या होना, आदि .
FTD में नजर आने वाले लक्षणों के लिए आमतौर पर जो विकार या रोग जिम्मेदार होते हैं, या जिन्हें एफटीडी वर्ग में शामिल किया जाता है, उनमें से कुछ आम विकार या मनोभ्रंश संबंधित रोग इस प्रकार हैं.
- प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लीयर पाल्सी
- कोर्टिको-बैसल डिजेनरेशन
- बिहेवीयरल वेरिएन्ट ऑफ फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया
- लैंग्वेज वेरिएन्ट ऑफ फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया
- सिमेंटिक डिमेंशिया
- प्रोग्रेसिव नॉन फ्लूएंट अफाशिया
- ओवरलैपिंग मोटर डिसऑर्डर ,आदि.
निदान
एफटीडी पीड़ित व्यक्ति का सामान्य जीवन तथा दिनचर्या इस रोग के चलते काफी ज्यादा प्रभावित हो सकती है. दरअसल इस रोग के होने पर ना सिर्फ पीड़ित के पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर असर पड़ सकता है बल्कि उसका व्यवसायिक जीवन भी काफी ज्यादा प्रभावित हो सकता है. क्योंकि यह रोग उसके कार्य करने ,उसके सोचने, बोलने, उसके व्यवहार तथा उसकी शारीरिक सक्रियता को प्रभावित करता है.
संगठन की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई क्षति को दवाई से ठीक नहीं किया जा सकता है, और एक बार यह रोग होने के बाद मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है, इसीलिए इसे प्रोग्रेसिव डिमेंशिया भी माना जाता है. गौरतलब है कि एफटीडी के लिए कोई एक निश्चित उपचार या कोई इलाज नहीं है. सिर्फ इसके निदान ही नहीं बल्कि इसके रोग के बढ़ने की रफ्तार को कम करने के लिए भी अभी तक कोई दवा नहीं है. लेकिन लक्षणों के आधार पर कुछ वैकल्पिक दवाओं, व्यायाम तथा थेरपी विशेषकर स्पीच थेरपी की मदद से पीड़ित के लक्षणों में सुधार लाने के लिए प्रयास किया जाता है.
जैसे यदि पीड़ित में पार्किंसन जैसे लक्षण नजर आ रहें हो तो चिकित्सक पार्किसन की दवा के साथ शारीरिक और व्यावसायिक उपचार तथा व्यायाम की मदद से लक्षणों में आराम देने का प्रयास करते हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि व्यवहार में लगातार परिवर्तन के साथ यदि बोलने में परेशानी या कुछ अन्य व्यवहार संबंधी या शरीर की कार्य करने की क्षमता में कमी या परेशानी जैसे लक्षण नजर आ रहे हो तो उन्हे अनदेखा करने की बजाय चिकित्सक से संपर्क किया जाए. जिससे समय से इस रोग के कारण को जानकर उसके निदान के लिए प्रयास किया जा सके.
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