कोविड काल में ब्रेन फॉग की समस्या ने लोगों का ध्यान काफी ज्यादा खींचा है. दरअसल भूलने की समस्या या किसी काम में ध्यान ना लगा पाने की समस्या को आमतौर पर लोग या तो लापरवाह रवैये से जोड़ कर देखते हैं यह फिर सीधे उसे भूलने की बीमारी की संज्ञा दे देते हैं. जो सही नहीं है. कई बार किसी शारीरिक या मानसिक परेशानी या अवस्था, शारीरिक रोग व कमजोरी या परिस्थितिजन्य कारणों से लोगों में अस्थाई रूप से बातों को भूलने, एकाग्रता में कमी तथा अन्य संबंधित लक्षण नजर आ सकते हैं. ऐसे लक्षणों को ब्रेन फॉगिंग होना भी कहा जाता है.गंभीर रूप में कोरोना संक्रमण का सामना करने वाले लोगों में पार्श्व प्रभाव के रूप में ब्रेन फॉगिंग की समस्या काफी ज्यादा देखने में आई है. लेकिन कोरोना संक्रमण ब्रेन फॉगिंग की समस्या होने के कई कारणों से सिर्फ एक है.
क्या है ब्रेन फॉग
“ब्रेन फॉग” दरअसल एक चिकित्सीय रोग नहीं बल्कि एक ऐसी स्थिति हैं जिसमें अलग अलग कारणों से मस्तिष्क की सोचने व कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है. इसके अलावा इस समस्या के चलते व्यक्ति में संज्ञानात्मक शिथिलता तथा उसके कारण होने वाली समस्याएं जैसे याददाश्त संबंधी समस्या, ध्यान केंद्रित करने में समस्या, सोचने में कठिनाई व कार्य करने या उसे समय पर पूरा करने में समस्या आदि नजर आने लगती हैं.
चिकित्सों की माने तो कोविड 19के मामले में ब्रेन फॉग इसलिए पार्श्वप्रभाव के रूप में ज्यादा नजर आया क्योंकि कोरोना के वायरस के प्रभाव के चलते शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हुई थी जिसके चलते मस्तिष्क में न्यूरोलॉजिकल अवस्थाएं देखने में भी आई थी. यहां तक इसके चलते न्यूरोट्रांसमीटर के कार्यक्षमता के प्रभावित होने के मामले भी देखे गए थे. इस बात की पुष्टि कई शोधों में हो चुकी है. दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ आशीष सिंह बताते हैं भले ही ब्रेन फॉग अवस्था के बारें में कोविड 19 के दौरान लोगों को ज्यादा पता चला है लेकिन यह एक आम समस्या है. जिसके लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं. यहां तक की वर्तमान दौरान में खराब व असंतुलित जीवन शैली का पालन करने वाले लोगों में भी यह कई बार नजर आती है.
वह बताते हैं कि ब्रेन फॉगिंग के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं जिनमें से जरूरत से ज्यादा स्ट्रेस जैसे ऑफिस का तनाव, घर का तनाव, मल्टी टास्किंग की कोशिश आदि. यहां तक की कई बार पढ़ाई, भविष्य की चिंता तथा और भी कई कारणों से यह समस्या ट्रिगर हो सकती हैं. इसके अलावा कई बार कुछ शारीरिक या मानसिक रोग के चलते या उनके इलाज के दौरान इस्तेमाल होने वाली थेरेपी या दवाओं के चलते हमारे शरीर कि प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव पड़ने लगता है जिसका असर मस्तिष्क कि कार्य करने कि क्षमता पर भी पड़ता है.
वह बताते हैं कि चिकित्सकीय भाषा में ब्रेन फॉग उस अवस्था को कहते हैं जब मस्तिष्क की सोचने, याद करने या याद रखने तथा ध्यान एकत्रित करने की क्षमता प्रभावित होने लगती हैं. वैसे तो यह कोई गंभीर रोग नहीं हैं लेकिन कई लोगों को लगता है कि इस समस्या के चलते पीड़ित के मानसिक संतुलन पर असर पड़ सकता है या वह अन्य मानसिक समस्याओं का शिकार हो सकता है. जो सही नहीं है. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस समस्या के चलते व्यक्ति की आम दिनचर्या प्रभावित हो सकती है. यही नहीं जब व्यक्ति कि कार्य करने या याद रखने की क्षमता पर असर पड़ता है तो उनमें अवसाद, चिंता या कई बार आत्म सम्मान में कमी जैसी भावनाएं जरूर विकसित हो सकती हैं.
कारण
वह बताते हैं कि आमतौर पर ब्रेन फॉगिंग को डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसी बीमारियों, जिनमें व्यक्ति भूलने लगता है, के शुरुआती लक्षणों में से माना जाता है. लेकिन इनके अलावा चिंता विकार, अवसाद तथा कुछ अन्य मानसिक समस्याओं में भी यह समस्या एक लक्षण मानी जाती है. ब्रेन फॉग की समस्या कई बार कुछ शारीरिक रोग या समस्याओं के कारण भी हो सकती है जैसे मेनिन्जाइटिस, स्ट्रोक, रक्त में शर्करा कम होना या मधुमेह , इन्सेफेलाइटिस, माइग्रेन तथा शरीर में ऑक्सीजन की कमी आदि. इसके अलावा कभी-कभी कुछ गंभीर रोग के इलाज के लिए होने वाली थेरेपी या इस दौरान दी जाने वाली दवा के प्रभाव के कारण भी यह समस्या हो सकती है. वह बताते हैं कि कई बार महिलाओं में गर्भावस्था या मेनोपॉज के दौरान जब शरीर में ज्यादा हार्मोनल परिवर्तन होते हैं तब भी उनमें यह समस्या नजर आ सकती है.इनके अलावा भी कुछ अन्य कारण हो सकते हैं जो ब्रेन फॉग का कारण बन सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- अवसाद या बहुत ज्यादा तनाव
- एक समय में एक साथ बहुत सारे काम करने की कोशिश करना
- हार्मोन में असंतुलन
- सही मात्रा में तथा अच्छी गुणवत्ता वाली नींद की कमी
- शरीर में विटामिन बी12 व अन्य पोषक तत्वों की कमी
- खून की कमी
- बहुत ज्यादा समय मोबाइल,कंप्यूटर तथा टीवी पर बिताना
लक्षण तथा प्रभाव
डॉ आशीष बताते हैं कि ब्रेन फॉग होने पर सिर्फ बातों को भूलना या ध्यान लगाने में कमी जैसे लक्षण ही नजर नहीं आते हैं. इनके अलावा भी इस अवस्था में पीड़ित में अलग-अलग प्रकार के लक्षण या प्रभाव नजर आ सकते हैं.
इसके अलावा जरूरी नहीं है कि सभी पीड़ितों में एक जैसे लक्षण ही नजर आए. शारीरिक व मानसिक अवस्था के आधार पर पीड़ित में एक या एक से ज्यादा लक्षण अलग-अलग तीव्रता में नजर आ सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- बातों को याद ना रख पाना यहां तक की कभी-कभी लोगों या चीजों के नाम भी याद ना रख पाना
- किसी भी प्रकार के कार्य को करते समय ध्यान एकाग्र करने में समस्या
- सोचने में परेशानी होना
- ज्यादा नींद आना और कुछ भी करने में थकान महसूस करना
- स्कूल या कार्यस्थल पर प्रदर्शन खराब होना
- निराश तथा उदास महसूस करना
- कार्य करने की गति धीमी हो जाना
- भ्रम होना
डॉ आशीष बताते हैं कि वैसे तो उम्र बढ़ने के साथ बुजुर्ग लोगों में यह समस्या नजर आना आम बात है, लेकिन यदि कम आयु में या किसी बीमारी के बाद लोगों में यह समस्या नजर आने लगे तो और इसके लक्षणों की तीव्रता ज्यादा बढ़ने लगती है, तो उन्हे बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बल्कि चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए.
क्या करें
डॉ आशीष बताते हैं कि यदि व्यक्ति ब्रेन फॉगिंग की समस्या तीव्र लक्षणों के साथ महसूस कर रहा है तो सबसे पहले जरूरी है कि अपनी समस्या को समझे और स्वीकारे. इसके साथ ही अपनी जीवनशैली व आहार शैली को दुरुस्त करें. साथ ही रोजमर्रा के व्यवहार को अनुशासित करने से भी काफी लाभ मिल सकता है जैसे अपने दिनभर के कार्यों को सूचीबद्ध करना. इससे भूलने के कारण कोई काम रह जाने या उसके गलत ढंग से होने की आशंका कम हो जाएगी. इसके अलावा और भी कई आदतें हैं जिन्हें अपनाने से ब्रेन फॉग के कारण होने वाली परेशानियों को काफी हद तक कम किया जा सकेगा. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- दिनभर में आराम के लिए अंतराल नियत करें.
- भोजन में पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ाएं.
- नियमित व्यायाम विशेषकर योग व ध्यान करें.
- एक समय में एक काम ही करें.
- दिन में कुछ समय अपनी पसंद के कार्य करने के लिए निकले जिससे मन शांत व प्रसन्न हो.
- किसी भी काम में दूसरों से मदद व सलाह लेने से हिचकिचाएं नहीं.
- दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ समय बिताएं.