बच्चों की आदत होती है कि वे आमतौर पर ऐसी गतिविधियां ज्यादा पसंद करते हैं जिनमें वे शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय होते हैं। कई बार शरीर की अति सक्रियता शरीर के तापमान को बढ़ा देती है। ऐसी परिस्थितियों में कई बार माता-पिता इस बात को लेकर भ्रमित हो जाते हैं कि कहीं बच्चे को बुखार तो नहीं है?
बच्चों में सामान्य बुखार के क्या कारण हो सकते हैं तथा शरीर की गर्माहट कब बुखार की श्रेणी में आती है, इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने रेनबो चिल्ड्रन अस्पताल हैदराबाद के नैनो नैटोलॉजिस्टिक तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विजयानंद जमालपुरी से बात की।
कब होता है बुखार
डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि बुखार शरीर की बाहरी गर्माहट नहीं बल्कि शरीर के अंदर बढ़ने वाले तापमान को कहते हैं। आमतौर पर फेरेनहाइट में देखा जाए तो 97.5 से लेकर 99.5 तथा डिग्री सेल्सियस में देखा जाए तो 36.5 से लेकर 37.5 तापमान को सामान्य माना जाता है। यदि व्यक्ति के शरीर का तापमान थर्मामीटर से जांचने पर इन निर्धारित मानकों से ज्यादा आता है तभी वह बुखार की श्रेणी में आता है।
बच्चों में बुखार के कुछ आम कारण होते हैं जो इस प्रकार हैं।
- सर्दी जैसे सामान्य वायरल संक्रमण
- यूटीआई यानी पेशाब की नली में संक्रमण
- गले में संक्रमण
- कान में संक्रमण
आमतौर पर बुखार का कारण सामान्य जीवाणु होते हैं लेकिन कई बार फ्लू, डेंगू बुखार, कोविड-19 संक्रमण तथा मलेरिया जैसे संक्रमण के शरीर पर गंभीर प्रभाव होने की अवस्था में बच्चे को तेज बुखार हो सकता है। जिसका इलाज सामान्य बुखार की दवाई से संभव नहीं है। ऐसी अवस्था में लक्षणों के आधार पर रोग की जांच करने के उपरांत, उसी के अनुरूप दवाई दिए जाने के बाद ही स्थिति में सुधार संभव होता है।
गौरतलब है की बच्चों में इस प्रकार के संक्रमण, विशेषकर फ्लू से सुरक्षा बनाए रखने के लिए उन्हें बचपन में ही फ्लू का वैक्सीन दिया जाता है । फ्लू एक ऐसा वायरल संक्रमण है जो इनफ्लुएंजा जीवाणु के कारण होता है। इस प्रकार के संक्रमण के लक्षण सामान्य सर्दी जुखाम के लक्षणों से ज्यादा तीव्र होते हैं, यही नहीं इस संक्रमण में बच्चों को तेज बुखार, तथा शरीर में दर्द की समस्या होती है , इसके साथ ही उनकी भूख भी ना के बराबर हो जाती है।
इन परिस्थितियों से बचाने के लिए ना सिर्फ बच्चों बल्कि संक्रमण को लेकर संवेदनशील बड़ों को भी यह टीका लगवाने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी यह टीका लगवाने के लिए कहा जाता है जिससे गर्भावस्था के दौरान उन्हें या उनके गर्भस्थ शिशु को फ़्लू के कारण होने वाली जटिल समस्याओं से बचाया जा सके।
बुखार कब बनता है खतरे की घंटी
- जब बुखार 102 या 103 फेरनहाइट से ज्यादा हो।
- यदि बच्चा हर समय आलस का शिकार हो रहा हो या अधिकांश समय सोता रहता हो।
- बच्चे को भूख ना लग रही हो या फिर वह खाना खाने में ज्यादा आनाकानी कर रहा हो।
- सांस लेने में तकलीफ हो रही हो।
- शरीर में असामान्य लक्षण नजर आना जैसे दौरे पड़ना।
- तीव्र बुखार के साथ ही शरीर की त्वचा पर रैश नजर आना
त्वचा पर रैश के रूप में प्रभाव दिखाने वाले गंभीर बुखार
डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि कई प्रकार के संक्रमणों और बीमारियों में बुखार के साथ-साथ त्वचा पर रैश या दानों के रूप में असर नजर आने लगता है जो कई बार गंभीर भी हो सकते हैं। लेकिन तसल्ली की बात यह है कि आमतौर पर बच्चे को उसके जन्म के उपरांत इस प्रकार के संक्रमणो से बचाने के लिए नियमित समय अंतराल पर टीके लगाए जाते है। जिसके चलते यदि इस प्रकार के संक्रमण शरीर पर असर डालते भी हैं तो उनका प्रभाव शरीर पर ज्यादा तीव्र नहीं होता है।
त्वचा पर अपना प्रभाव दिखाने वाली कुछ विशेष संक्रमण इस प्रकार हैं
मीजल्स: यह मीजल्स नामक वायरस के कारण होता है। हमारे देश में यह खसरे के नाम से भी प्रचलित है।
चिकन पॉक्स: इस संक्रमण को हमारे देश में छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। यह संक्रमण होने पर पूरे शरीर में फुंसियों तथा चक्तियाँ विकसित हो जाती हैं।
हेड एंड फूट माउथ डिजीज: यह बीमारी आम तौर पर सिर्फ नवजात और नन्हे बच्चों को ही निशाना बनाती है। इसमें बच्चों को तेज बुखार के साथ हाथों व पैरों में फोड़े हो जाते हैं।
डेंगू : इस प्रकार के बुखार में भी शरीर पर रैश नजर आने लगते हैं। यह संक्रमण मच्छर के काटने से फैलता है।
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फेब्राइल फिट्स
गौरतलब है की बच्चे के जन्म के उपरांत उसे 6 महीने से 5 साल के बीच में संक्रमण से संबंधित विभिन्न प्रकार के टीके लग जाते हैं। टीका लगवाने के बाद बच्चों में बुखार का आना सामान्य बात है। लेकिन ऐसा भी होता है कि टीका लगवाने के बाद कई बार बच्चों को बुखार के साथ दौरे भी आए। ऐसी अवस्था को फेब्राइल फिट्स कहते हैं।
ऐसी अवस्था में यदि बच्चे का बुखार बहुत तेज हो तो दवाई के साथ-साथ उसके माथे पर पानी की गीली पट्टी रखने तथा शरीर को गीले रुमाल से पौछने पर भी बुखार में राहत मिलती है। हालांकि यदि टीका लगाने के बाद किसी बच्चे में इस प्रकार के फिट के लक्षण नजर आए हो तो जरूरी नहीं है कि भविष्य में भी ऐसा हो और न ही आमतौर पर इस प्रकार की अवस्था में दौरों के लिए किसी भी प्रकार की लंबे समय तक चलने वाली दवाइयों की जरूरत होती है। समय के साथ साथ बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह पर बच्चे की जांच और देखभाल करने पर यह समस्या पूरी तरह ठीक हो जाती है।
भूख न लगने पर क्या करें
डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि बुखार के दौरान आमतौर पर बच्चों की भूख समाप्त हो जाती है या काफी कम हो जाती है, जिसका असर उनके वजन पर भी नजर आता है। माता-पिता के लिए यह जानना जरूरी है यदि बच्चा बुखार के दौरान ज्यादा मात्रा में भोजन ना कर रहा हो लेकिन उसने पूरे दिन में पेय पदार्थों आवश्यक मात्रा में लिए हों तो ज्यादा चिंता करने की बात नहीं होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार ऐसी परिस्थितियों में बच्चे को चावल और दाल का पानी , कांजी तथा जीवन रक्षक घोल ओ.आर.एस दिया जा सकता है जिससे उसके शरीर में कमजोरी ना आए। ऐसा करने से किसी भी प्रकार की परिस्थिति में बच्चे के शरीर में कुपोषण के लक्षण नजर नहीं आएंगे साथ ही उसके शरीर के ठीक होने की रफ्तार भी अपेक्षाकृत ज्यादा रहेगी।
कब करे चिकित्सक से संपर्क
यदि बच्चे में खासी तथा सर्दी जैसे संक्रमण के लक्षण 2 से 3 दिन रहे तो माता-पिता को उसे चिकित्सक को दिखा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि बच्चा ज्यादा समय सोता रहे और उसके बुखार में किसी भी दवाई का ज्यादा असर ना दिखाई दे तो यह खतरे की घंटी हो सकता है इसलिए जरूरी है कि ऐसी अवस्था में तत्काल चिकित्सक से संपर्क किया जाए।
टीकाकरण कराने के उपरांत बुखार
टीका लगवाने के बाद ज्यादातर बच्चों को बुखार आता ही है । लेकिन बुखार की तीव्रता पूरी तरह से बच्चे के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है। लेकिन यदि बच्चे का बुखार 48 घंटे से ज्यादा समय के बाद भी कम ना हो तो बहुत जरूरी है कि तुरंत चिकित्सक से उसकी जांच करवानी चाहिए।