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Asthma Attack Research : वायु में मौजूद उच्च प्रदूषक तत्व बढ़ा रहें हैं बच्चों में अस्थमा अटैक का खतरा : शोध

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Published : Mar 4, 2023, 1:02 PM IST

हाल ही में Lancet Planetary Health ( लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल ) में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में वायु में मौजूद प्रदूषकों की उच्च मात्रा, बच्चों को अस्थमा के दौरों को लेकर ज्यादा संवेदनशील बना रही है. इस अध्ययन में वायरल तथा गैर वायरल कारणों से होने वाले अस्थमा के दौरों के बढ़ने में वायु में मौजूद प्रदूषक तत्वों की भूमिका को लेकर शोध किया गया था .

Increasing levels of pollutants cause asthma attack risks in children: Lancet study
बच्चों में अस्थमा अटैक

शहरी क्षेत्र में रहने वाले बच्चों में वायु में बढ़ते प्रदूषकों के उच्च स्तर के चलते अस्थमा या उसके दौरे पड़ने का खतरा बढ़ रहा है. गौरतलब है कि अस्थमा के लिए ज्यादातर वायरल श्वसन संक्रमण को जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में सामने आया है कि शहरी क्षेत्रों में वायु में गैर-वायरल कारक जैसे प्रदूषक तत्व विशेषकर ओजोन और अन्य महीन कण बच्चों में अस्थमा के दौरे के ट्रिगर होने के खतरे को बढ़ा रहे हैं. इस अध्ययन में वायु प्रदूषण और सभी कारणों से होने वाले अस्थमा व Asthma attacks (अस्थमा के दौरों ) के बीच संबंधों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया गया था.

Lancet Planetary Health जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में बताया गया है कि हवा में मौजूद उच्च प्रदूषण स्तर विशेष रूप से ओजोन व अन्य सूक्ष्म कण, Asthma attacks को ट्रिगर कर सकते हैं और विशेषकर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में फेफड़ों के कार्य में गिरावट का कारण भी बन सकते हैं, फिर भले ही वायु में उनकी सांद्रता या मात्रा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता ( National air quality standards ) मानकों से कम हो. इस शोध में इस विषय पर विशेष रूप से अध्ययन किया गया है कि उच्च प्रदूषण स्तर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में अस्थमा के हमलों के जोखिम को कैसे बढ़ा सकते हैं.

Increasing levels of pollutants cause asthma attack risks in children: Lancet study
बच्चों में अस्थमा अटैक

शोध के बारें में ज्यादा जानकारी देते हुए इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक , बाल रोग के प्रोफेसर और न्यूयॉर्क मेडिकल कॉलेज में पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ एलन डोजर ने मेडिकल न्यूज टुडे में बताया है कि "बच्चों में वायरल संक्रमण बहुत आम हैं और अस्थमा की सबसे गंभीर घटनाओं के लिए भी ज्यादातर ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण ( URIs ) या जुकाम ( colds ) को कारण माना जाता है. वह बताते हैं कि आमतौर पर हर साल सर्दी के मौसम में वायरल संक्रमण तथा उसके कारण अस्थमा के मामलों की संख्या बढ़ जाती है. लेकिन विशेष रूप से वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों में, इस मौसम में गंभीर अस्थमा के दौरों के मामले ज्यादा देखने में आते हैं. वह बताते हैं कि इस शोध में सामने आया है कि वायु प्रदूषण का उच्च स्तर वायरल और गैर-वायरल से जुड़े अस्थमा के हमलों, दोनों को ही खराब करता है. हालांकि शोध में यह भी सामने आया कि एक ही स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों के लिए भी वायु प्रदूषकों का व्यक्तिगत जोखिम भिन्न हो सकता है.

कैसे हुआ अध्ययन
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने शुरुआत में अमेरिका के कुछ शहरी इलाकों में रहने वाले बच्चों और किशोरों में अस्थमा की तीव्रता तथा उनके शहरों में वायु प्रदूषक स्तर की तीव्रता के बीच संबंध की जांच की. इसके अलावा उन्होंने कुछ पुराने पर्यवेक्षणीय अध्ययन के डेटा तथा प्रतिभागियों के जीन अभिव्यक्ति प्रोफ़ाइल का विश्लेषण भी किया. जिससे वायरल और गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना के अंतर्निहित आणविक तंत्र तथा आणविक आधार को समझा जा सके.

इस अध्ययन के लिए लेखकों ने MUPPITS1 के प्रतिभागियों तथा उनके डेटा का इस्तेमाल किया. गौरतलब है कि MUPPITS1 ( Mechanisms Underlying Asthma Exacerbations Prevented and Persistent With Immune-Based Therapy ) में संयुक्त राज्य अमेरिका के नौ शहरों में कम आय वाले इलाकों में रहने वाले 6 से 17 वर्ष की आयु के 208 बच्चों का डेटा शामिल था , जिन्हें तीव्र-प्रवण अस्थमा था. इस अध्ययन में इन प्रतिभागियों में सामान्य अध्ययन तथा जीन अभिव्यक्ति में अंतर की जांच के लिए सांस की बीमारी के लक्षणों की शुरुआत के बाद से लेकर उनके फेफड़े के कार्य और नाक के नमूनों का डाटा एकत्रित किया गया था. शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने के लिए भी नाक के नमूनों का उपयोग किया कि श्वसन संबंधी बीमारी का कारण वायरल संक्रमण है या गैर-वायरल कारक. इस शोध में प्रतिभागियों को इस आधार पर वर्गीकृत भी किया था कि संक्रमण के दौरान उनमें अस्थमा का प्रकोप था या नहीं.

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अध्ययन में प्रतिभागियों के भौगोलिक क्षेत्र में प्रदूषण की मात्रा जांचने के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक और पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) द्वारा एकत्र किए गए व्यक्तिगत प्रदूषकों के सांद्रता के डेटा का भी उपयोग किया. इस शोध में MUPPITS-1 के अलावा आठ प्रमुख अमेरिकी शहरों में कम आय वाले घरों में रहने वाले 6 से 20 वर्ष की आयु के 419 व्यक्तियों पर किए गए एक अन्य अध्ययन के डेटा का भी उपयोग किया गया था.

निष्कर्ष
अध्ययन में MUPPITS1 के प्रतिभागियों पर हुए डेटा आधारित शोध में पाया गया था कि गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले प्रतिभागियों में लक्षणों की शुरुआत के नौ दिन पहले और बाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक का मान, वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले लोगों की तुलना में अधिक था. इसके अलावा शोध में गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले प्रतिभागियों में वायु गुणवत्ता सूचकांक मूल्यों को फेफड़ों के कार्य के साथ नकारात्मक रूप से सहसंबंधित किया गया था.

शोध में वायरल तथा गैर वायरल कारणों से होने वाले अस्थमा, दोनों में जीन अभिव्यक्ति देखी गई थी. वहीं दूसरे शोध के नतीजों में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक और गैर-वायरल अस्थमा के प्रसार के बीच एक समान संबंध देखा गया था. इन दोनों ही अध्ययनों के डेटा में सामने आया कि गैर-वायरल अस्थमा के दौरों के शिकार बच्चों के रहने वाले स्थान पर ओजोन और सूक्ष्म कण पदार्थ की सांद्रता अधिक (PM 2.5) थी.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि इस विषय पर अभी ज्यादा तथा गहन जांच की जरूरत है. चूंकि इस अध्ययन में विषयों की संख्या कम थी और मॉनिटर से वायु प्रदूषण से जुड़े डेटा का इस्तेमाल किया गया था. इसलिए आगे के अध्ययनों में ज्यादा सटीक व स्पष्ट जानकारी के लिए अधिक डेटा और बेहतर स्थानिक वायु प्रदूषण संकल्प के साथ इस विषय पर अधिक अध्ययन किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें : Ayurvedic precautions for asthma : अस्थमा से बचना है तो औषधि व सही आहार के साथ सावधानियां भी है जरूरी

शहरी क्षेत्र में रहने वाले बच्चों में वायु में बढ़ते प्रदूषकों के उच्च स्तर के चलते अस्थमा या उसके दौरे पड़ने का खतरा बढ़ रहा है. गौरतलब है कि अस्थमा के लिए ज्यादातर वायरल श्वसन संक्रमण को जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में सामने आया है कि शहरी क्षेत्रों में वायु में गैर-वायरल कारक जैसे प्रदूषक तत्व विशेषकर ओजोन और अन्य महीन कण बच्चों में अस्थमा के दौरे के ट्रिगर होने के खतरे को बढ़ा रहे हैं. इस अध्ययन में वायु प्रदूषण और सभी कारणों से होने वाले अस्थमा व Asthma attacks (अस्थमा के दौरों ) के बीच संबंधों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया गया था.

Lancet Planetary Health जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में बताया गया है कि हवा में मौजूद उच्च प्रदूषण स्तर विशेष रूप से ओजोन व अन्य सूक्ष्म कण, Asthma attacks को ट्रिगर कर सकते हैं और विशेषकर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में फेफड़ों के कार्य में गिरावट का कारण भी बन सकते हैं, फिर भले ही वायु में उनकी सांद्रता या मात्रा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता ( National air quality standards ) मानकों से कम हो. इस शोध में इस विषय पर विशेष रूप से अध्ययन किया गया है कि उच्च प्रदूषण स्तर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में अस्थमा के हमलों के जोखिम को कैसे बढ़ा सकते हैं.

Increasing levels of pollutants cause asthma attack risks in children: Lancet study
बच्चों में अस्थमा अटैक

शोध के बारें में ज्यादा जानकारी देते हुए इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक , बाल रोग के प्रोफेसर और न्यूयॉर्क मेडिकल कॉलेज में पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ एलन डोजर ने मेडिकल न्यूज टुडे में बताया है कि "बच्चों में वायरल संक्रमण बहुत आम हैं और अस्थमा की सबसे गंभीर घटनाओं के लिए भी ज्यादातर ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण ( URIs ) या जुकाम ( colds ) को कारण माना जाता है. वह बताते हैं कि आमतौर पर हर साल सर्दी के मौसम में वायरल संक्रमण तथा उसके कारण अस्थमा के मामलों की संख्या बढ़ जाती है. लेकिन विशेष रूप से वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों में, इस मौसम में गंभीर अस्थमा के दौरों के मामले ज्यादा देखने में आते हैं. वह बताते हैं कि इस शोध में सामने आया है कि वायु प्रदूषण का उच्च स्तर वायरल और गैर-वायरल से जुड़े अस्थमा के हमलों, दोनों को ही खराब करता है. हालांकि शोध में यह भी सामने आया कि एक ही स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों के लिए भी वायु प्रदूषकों का व्यक्तिगत जोखिम भिन्न हो सकता है.

कैसे हुआ अध्ययन
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने शुरुआत में अमेरिका के कुछ शहरी इलाकों में रहने वाले बच्चों और किशोरों में अस्थमा की तीव्रता तथा उनके शहरों में वायु प्रदूषक स्तर की तीव्रता के बीच संबंध की जांच की. इसके अलावा उन्होंने कुछ पुराने पर्यवेक्षणीय अध्ययन के डेटा तथा प्रतिभागियों के जीन अभिव्यक्ति प्रोफ़ाइल का विश्लेषण भी किया. जिससे वायरल और गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना के अंतर्निहित आणविक तंत्र तथा आणविक आधार को समझा जा सके.

इस अध्ययन के लिए लेखकों ने MUPPITS1 के प्रतिभागियों तथा उनके डेटा का इस्तेमाल किया. गौरतलब है कि MUPPITS1 ( Mechanisms Underlying Asthma Exacerbations Prevented and Persistent With Immune-Based Therapy ) में संयुक्त राज्य अमेरिका के नौ शहरों में कम आय वाले इलाकों में रहने वाले 6 से 17 वर्ष की आयु के 208 बच्चों का डेटा शामिल था , जिन्हें तीव्र-प्रवण अस्थमा था. इस अध्ययन में इन प्रतिभागियों में सामान्य अध्ययन तथा जीन अभिव्यक्ति में अंतर की जांच के लिए सांस की बीमारी के लक्षणों की शुरुआत के बाद से लेकर उनके फेफड़े के कार्य और नाक के नमूनों का डाटा एकत्रित किया गया था. शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने के लिए भी नाक के नमूनों का उपयोग किया कि श्वसन संबंधी बीमारी का कारण वायरल संक्रमण है या गैर-वायरल कारक. इस शोध में प्रतिभागियों को इस आधार पर वर्गीकृत भी किया था कि संक्रमण के दौरान उनमें अस्थमा का प्रकोप था या नहीं.

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अध्ययन में प्रतिभागियों के भौगोलिक क्षेत्र में प्रदूषण की मात्रा जांचने के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक और पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) द्वारा एकत्र किए गए व्यक्तिगत प्रदूषकों के सांद्रता के डेटा का भी उपयोग किया. इस शोध में MUPPITS-1 के अलावा आठ प्रमुख अमेरिकी शहरों में कम आय वाले घरों में रहने वाले 6 से 20 वर्ष की आयु के 419 व्यक्तियों पर किए गए एक अन्य अध्ययन के डेटा का भी उपयोग किया गया था.

निष्कर्ष
अध्ययन में MUPPITS1 के प्रतिभागियों पर हुए डेटा आधारित शोध में पाया गया था कि गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले प्रतिभागियों में लक्षणों की शुरुआत के नौ दिन पहले और बाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक का मान, वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले लोगों की तुलना में अधिक था. इसके अलावा शोध में गैर-वायरल अस्थमा उत्तेजना वाले प्रतिभागियों में वायु गुणवत्ता सूचकांक मूल्यों को फेफड़ों के कार्य के साथ नकारात्मक रूप से सहसंबंधित किया गया था.

शोध में वायरल तथा गैर वायरल कारणों से होने वाले अस्थमा, दोनों में जीन अभिव्यक्ति देखी गई थी. वहीं दूसरे शोध के नतीजों में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक और गैर-वायरल अस्थमा के प्रसार के बीच एक समान संबंध देखा गया था. इन दोनों ही अध्ययनों के डेटा में सामने आया कि गैर-वायरल अस्थमा के दौरों के शिकार बच्चों के रहने वाले स्थान पर ओजोन और सूक्ष्म कण पदार्थ की सांद्रता अधिक (PM 2.5) थी.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि इस विषय पर अभी ज्यादा तथा गहन जांच की जरूरत है. चूंकि इस अध्ययन में विषयों की संख्या कम थी और मॉनिटर से वायु प्रदूषण से जुड़े डेटा का इस्तेमाल किया गया था. इसलिए आगे के अध्ययनों में ज्यादा सटीक व स्पष्ट जानकारी के लिए अधिक डेटा और बेहतर स्थानिक वायु प्रदूषण संकल्प के साथ इस विषय पर अधिक अध्ययन किया जाना चाहिए.

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