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ऑटिस्टिक बच्चों में खानपान संबंधी आदतों की समस्याएं

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Published : Apr 1, 2021, 12:44 PM IST

Updated : Apr 1, 2021, 2:37 PM IST

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक विकासपरक विकार यानी डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 1 मिलियन से ज्यादा बच्चों में ऑटिज्म होने की पुष्टि होती है। वहीं जानकारों की मानें तो बड़ी संख्या में ऑटिस्टिक बच्चों में भोजन ग्रहण करने की आदतों से संबंधित व्यवहारपरक तथा शारीरिक समस्याएं देखने में आती हैं।

World autism awareness week
विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों को आमतौर पर चिकित्सक उनकी भाषा या अन्य माध्यमों से दूसरों से संपर्क बनाने की क्षमताओं, सामाजिक मेलजोल से जुड़ी समस्याओं, व्यवहार की पुनरावृति तथा जुनून के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। लेकिन एक अन्य मानक हैं, जिसके आधार पर चिकित्सक पीड़ित की स्थिति को जानने का प्रयास करते हैं, वह है उसकी खान-पान से जुड़ी आदतें। जानकारों की मानें तो लगभग 46 से 89 प्रतिशत ऑटिस्टिक बच्चों में आम तौर पर खानपान की आदतों संबंधी समस्याएं तथा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं देखने में आतीं है। ETV भारत सुखीभवा को इस संबंध में अधिक जानकारी देते हुए वैकल्पिक चिकित्सक आरती ग्वात्रे बताती है कि कई शोध के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं की सामान्य बच्चों की अपेक्षा ऑटिस्टिक बच्चों में खानपान संबंधी समस्याएं होने की आशंका 5 गुना ज्यादा होती हैं।

किस प्रकृति की होती है खान-पान संबंधी समस्याएं

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि चिकित्सक ऑटिस्टिक बच्चों की खाने पीने से जुड़ी समस्याओं को इस आधार पर वर्गीकरत करते हैं की बच्चा क्या-क्या चीजें खाना पसंद कर रहा है तथा किन चीजों को उनके रंग, स्वाद, प्रकृति तथा उन्हें छूने पर उसकी अनुभूति के आधार पर खाने से मना कर रहा हैं। खाने पीने को लेकर उनकी पसंद का दायरा काफी सीमित होता है, जिसके चलते आम तौर पर उनके आहार को पूर्णतया संतुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता है। उदारहण के तौर पर कई बार कुछ बच्चे जंक फूड को अपने खाने में प्राथमिकता देते हैं और उस पर माता-पिता भी सिर्फ इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बच्चा कम से कम खाना तो खा रहा है, उसे उसकी पसंद का भोजन देते रहते हैं। ऑटिस्टिक बच्चों में खान पान से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं का असर उनके पाचन तंत्र पर असर पड़ता है।

चिकिसक बताते हैं की ऑटिस्टिक बच्चों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं जैसे पेट का फूलना, कब्ज, आंतों में समस्या, भोजन संबंधी एलर्जी तथा डायरिया जैसी समस्याएं आम होती हैं। जिसके नतीजतन आमतौर पर उनमें नींद ना आना तथा हमेशा चिड़चिड़ापन रहने जैसी व्यवहारपरक समस्याएं भी पनपने लगती हैं।

मस्तिष्क की गतिविधियों को प्रभावित करती हैं पेट की समस्याएं

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि इस तथ्य से लगभग सभी लोग वाकिफ हैं की हमारे पेट के स्वास्थ्य तथा भोजन संबंधी आदतों का सीधा असर हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। उदाहरण के लिए आमतौर पर सिर्फ अपने पसंदीदा खाने के बारे में सोचने भर से हमारे शरीर में पाचन संबंधी रसों का स्राव होने लगता है, जिससे भूख लगना शुरू हो जाती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं की हमारी आंतों का स्वास्थ्य भी ना सिर्फ हमारे मस्तिष्क की गतिविधियों तथा हमारे मूड को प्रभावित करता हैं, साथ ही हमारे शरीर की संज्ञानात्मक गतिविधियों पर असर डालता है।

हमारी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में माना गया है कि हमारा पाचन तंत्र शरीर को सिर्फ ऊर्जा ही नहीं देता है, बल्कि कई बीमारियों का कारण भी बनता है। इस संबंध में इंस्टिट्यूट पेस्टर द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है कि हमारी आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव हमारी मस्तिष्क की गतिविधियों तथा मूड को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी तथ्य को आधार मानते हुए शोधकर्ता अब ऑटिज्म के कारण तथा लक्षणों में आंतों के स्वास्थ्य की भूमिका को लेकर शोध कर रहे हैं।

आंतों में पाये जाने वाली सूक्ष्मजीवों के छोटे बच्चों के शरीर पर पड़ने वाले असर

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि एक शोधपत्र में व्यान वन्देप्लास तथा उनकी टीम द्वारा बच्चों के जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के उपरांत आंतों के माइक्रोबायोम यानी सूक्ष्मजीवों के छोटे बच्चों के शरीर पर असर को लेकर जानकारी दी गई है। इस शोध के अनुसार माइक्रोबायोम के चलते नवजातों के स्वास्थ्य पर असर डालने वाले कुछ कारक इस प्रकार हैं;

  1. अनुवांशिक पृष्ठभूमि।
  2. माता पिता से संबंधित तथ्य जैसे बच्चे के जन्म के समय या जन्म से पूर्व माता की खुराक, उनमें मोटापा या धूम्रपान जैसी आदतें, तथा गर्भावस्था के दौरान ज्यादा मात्रा में एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन किया जाना।
  3. डिलीवरी का प्रकार भी बच्चों के आंतों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए योनि से होने वाले सामान्य प्रसव में बच्चा माता के आंतों के स्वास्थ्य तथा उनमें मौजूद सूक्ष्मजीवों से संक्रमित हो सकता है। वहीं ऑपरेशन से होने वाले बच्चों में यह संभावनाएं कम होती हैं।
  4. इसके अतिरिक्त स्तनपान भी बच्चों के शरीर में माइक्रोबायोम के विकास को नियंत्रित करता है।

स्वस्थ और संतुलित माइक्रोबायोम के विकास के लिए क्या करें

आरती ग्वात्रे बताती है कि बच्चों में स्वस्थ और संतुलित माइक्रोबायोम के विकास के लिए उनके परिजनों को विशेष ध्यान देना चाहिए। तथा बच्चों में इन विशेष आदतों के विकास के लिए प्रयास करना चाहिए;

  • स्वस्थ और संतुलित भोजन ग्रहण करें
  • अच्छी नींद लें
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहे
  • मल त्याग संबंधित सही आदतों का पालन करें

सुनने में सामान्य लगने वाली यह आदतें ऑटिस्टिक बच्चों के लिए आसान नहीं होती हैं। ज्यादातर मामलों में बच्चों में इन आदतों के विकास के लिए परिजनों को व्यवसायिक मदद की जरूरत पड़ती है।

पढ़े: न्यूरोलॉजिकल अवस्था है ऑटिज्म : विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह

किस प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा कर सकती है मदद

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां बच्चों की इंद्रियों से संबंधित समस्याओं को देखते हुए, उसके इलाज या थेरेपी की नीति बनाने में मदद कर सकती है। जिससे ऑटिस्टिक बच्चों को खाना खाने के लिए प्रेरित किया जा सके;

  1. इन नीतियों के चलते बच्चों की दिनचर्या में चरणबद्ध तरीके से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भोजन को ग्रहण करने की क्रिया को शामिल किया जाता है। इस संबंध में किए गए विभिन्न शोध के नतीजे बताते हैं कि किसी भी नए प्रकार के भोजन का बच्चे से परिचय कराने के लिए कम से कम 11 से 15 बार तक प्रयास करने के बाद बच्चे का रुख उस भोजन को ग्रहण करने को लेकर सकारात्मक होने लगता है।
  2. खाना खाते समय बच्चे के बैठने की अवस्था भी सही होनी चाहिए, जैसे खाना खाते समय वह हमेशा मेज और कुर्सी पर बैठकर खाना खाए और उसके पांव हमेशा जमीन से लगे होने चाहिए। इस प्रक्रिया के नियमित पालन से खाना खाते समय बच्चों में आत्मविश्वास आने लगता है।
    eating habits related Problems in autistic children
    ऑटिस्टिक बच्चों में खानपान की आदतों संबंधी समस्याएं
  3. ऑटिस्टिक बच्चों में मल त्यागने की सही आदतों पर भी परिजनों को ध्यान देना चाहिए। ज्यादातर मामलों में जानकार, ऑटिस्टिक बच्चों को कब्ज तथा आंतों से संबंधित समस्याओं से बचाव के लिए दूध, दही जैसे डेयरी उत्पाद लेने से परहेज करने की सलाह देते हैं।
  4. इसके साथ ही बच्चों को टॉयलेट सीट पर सही तरीके से बैठना सिखाने के लिए दिशानिर्देश दिखाते चित्रों तथा स्टिकर का भी उपयोग किया जा सकता है। ऐसा करने से बच्चे मल त्याग के समय सही अवस्था में बैठना तो सीखेंगे ही, साथ ही उनका कपड़ों को गंदा करने जैसी घटनाओं में भी कमी आएगी।
  5. बच्चों को स्वयं अपना भोजन ग्रहण करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अलग-अलग प्रकार के ऐसे बर्तनों की मदद ली जा सकती है, जो ना सिर्फ इस्तेमाल करने में सरल हो, बल्कि देखने में भी आकर्षक लगते हो।
  6. ऑटिस्टिक बच्चों के लिए बहुत जरूरी है कि उनको नियमित तौर पर दिए जाने वाले भोजन के लिए नियम निर्धारित किए जाएं। जिसमें उन्हें क्या खाना है, किस समय खाना है और किस तरह से खाना है, को लेकर नियम बनाए जाएं और उनका पालन किया जाए। इसके अतिरिक्त बच्चों के खान-पान से जुड़ी आदतों और उनकी पसंद नापसंद को लेकर एक डायरी बनाना भी काफी मददगार हो सकता है।
  7. ऑटिस्टिक बच्चों के मील प्लान के लिए बहुत जरूरी है कि उनको खाने के बीच नियमित अंतराल दिए जाएं। साथ ही इस बीच में उन्हें स्नैक्स या जूस बिल्कुल भी ना दिया जाए।
  8. बच्चों को खेल-खेल में खाने के प्रकार, उनकी बनावट तथा खुशबू से परिचित कराना चाहिए।

इसके अतिरिक्त भोजन के समय बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जाए, वहीं खाना खाते समय उन्हें किसी भी प्रकार का कोई गैजेट ना दिया जाए। इसके साथ ही सुनिश्चित करें कि बच्चा पूरे दिन में भरपूर मात्रा में पानी पिये तथा दूध या जूस का सेवन कम करें। यही नहीं सोने संबंधी आदतों के विकास के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए ताकि उनका नींद की दिनचर्या बना रहे।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों को आमतौर पर चिकित्सक उनकी भाषा या अन्य माध्यमों से दूसरों से संपर्क बनाने की क्षमताओं, सामाजिक मेलजोल से जुड़ी समस्याओं, व्यवहार की पुनरावृति तथा जुनून के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। लेकिन एक अन्य मानक हैं, जिसके आधार पर चिकित्सक पीड़ित की स्थिति को जानने का प्रयास करते हैं, वह है उसकी खान-पान से जुड़ी आदतें। जानकारों की मानें तो लगभग 46 से 89 प्रतिशत ऑटिस्टिक बच्चों में आम तौर पर खानपान की आदतों संबंधी समस्याएं तथा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं देखने में आतीं है। ETV भारत सुखीभवा को इस संबंध में अधिक जानकारी देते हुए वैकल्पिक चिकित्सक आरती ग्वात्रे बताती है कि कई शोध के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं की सामान्य बच्चों की अपेक्षा ऑटिस्टिक बच्चों में खानपान संबंधी समस्याएं होने की आशंका 5 गुना ज्यादा होती हैं।

किस प्रकृति की होती है खान-पान संबंधी समस्याएं

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि चिकित्सक ऑटिस्टिक बच्चों की खाने पीने से जुड़ी समस्याओं को इस आधार पर वर्गीकरत करते हैं की बच्चा क्या-क्या चीजें खाना पसंद कर रहा है तथा किन चीजों को उनके रंग, स्वाद, प्रकृति तथा उन्हें छूने पर उसकी अनुभूति के आधार पर खाने से मना कर रहा हैं। खाने पीने को लेकर उनकी पसंद का दायरा काफी सीमित होता है, जिसके चलते आम तौर पर उनके आहार को पूर्णतया संतुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता है। उदारहण के तौर पर कई बार कुछ बच्चे जंक फूड को अपने खाने में प्राथमिकता देते हैं और उस पर माता-पिता भी सिर्फ इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बच्चा कम से कम खाना तो खा रहा है, उसे उसकी पसंद का भोजन देते रहते हैं। ऑटिस्टिक बच्चों में खान पान से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं का असर उनके पाचन तंत्र पर असर पड़ता है।

चिकिसक बताते हैं की ऑटिस्टिक बच्चों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं जैसे पेट का फूलना, कब्ज, आंतों में समस्या, भोजन संबंधी एलर्जी तथा डायरिया जैसी समस्याएं आम होती हैं। जिसके नतीजतन आमतौर पर उनमें नींद ना आना तथा हमेशा चिड़चिड़ापन रहने जैसी व्यवहारपरक समस्याएं भी पनपने लगती हैं।

मस्तिष्क की गतिविधियों को प्रभावित करती हैं पेट की समस्याएं

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि इस तथ्य से लगभग सभी लोग वाकिफ हैं की हमारे पेट के स्वास्थ्य तथा भोजन संबंधी आदतों का सीधा असर हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। उदाहरण के लिए आमतौर पर सिर्फ अपने पसंदीदा खाने के बारे में सोचने भर से हमारे शरीर में पाचन संबंधी रसों का स्राव होने लगता है, जिससे भूख लगना शुरू हो जाती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं की हमारी आंतों का स्वास्थ्य भी ना सिर्फ हमारे मस्तिष्क की गतिविधियों तथा हमारे मूड को प्रभावित करता हैं, साथ ही हमारे शरीर की संज्ञानात्मक गतिविधियों पर असर डालता है।

हमारी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में माना गया है कि हमारा पाचन तंत्र शरीर को सिर्फ ऊर्जा ही नहीं देता है, बल्कि कई बीमारियों का कारण भी बनता है। इस संबंध में इंस्टिट्यूट पेस्टर द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है कि हमारी आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव हमारी मस्तिष्क की गतिविधियों तथा मूड को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी तथ्य को आधार मानते हुए शोधकर्ता अब ऑटिज्म के कारण तथा लक्षणों में आंतों के स्वास्थ्य की भूमिका को लेकर शोध कर रहे हैं।

आंतों में पाये जाने वाली सूक्ष्मजीवों के छोटे बच्चों के शरीर पर पड़ने वाले असर

आरती ग्वात्रे बताती हैं कि एक शोधपत्र में व्यान वन्देप्लास तथा उनकी टीम द्वारा बच्चों के जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के उपरांत आंतों के माइक्रोबायोम यानी सूक्ष्मजीवों के छोटे बच्चों के शरीर पर असर को लेकर जानकारी दी गई है। इस शोध के अनुसार माइक्रोबायोम के चलते नवजातों के स्वास्थ्य पर असर डालने वाले कुछ कारक इस प्रकार हैं;

  1. अनुवांशिक पृष्ठभूमि।
  2. माता पिता से संबंधित तथ्य जैसे बच्चे के जन्म के समय या जन्म से पूर्व माता की खुराक, उनमें मोटापा या धूम्रपान जैसी आदतें, तथा गर्भावस्था के दौरान ज्यादा मात्रा में एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन किया जाना।
  3. डिलीवरी का प्रकार भी बच्चों के आंतों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए योनि से होने वाले सामान्य प्रसव में बच्चा माता के आंतों के स्वास्थ्य तथा उनमें मौजूद सूक्ष्मजीवों से संक्रमित हो सकता है। वहीं ऑपरेशन से होने वाले बच्चों में यह संभावनाएं कम होती हैं।
  4. इसके अतिरिक्त स्तनपान भी बच्चों के शरीर में माइक्रोबायोम के विकास को नियंत्रित करता है।

स्वस्थ और संतुलित माइक्रोबायोम के विकास के लिए क्या करें

आरती ग्वात्रे बताती है कि बच्चों में स्वस्थ और संतुलित माइक्रोबायोम के विकास के लिए उनके परिजनों को विशेष ध्यान देना चाहिए। तथा बच्चों में इन विशेष आदतों के विकास के लिए प्रयास करना चाहिए;

  • स्वस्थ और संतुलित भोजन ग्रहण करें
  • अच्छी नींद लें
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहे
  • मल त्याग संबंधित सही आदतों का पालन करें

सुनने में सामान्य लगने वाली यह आदतें ऑटिस्टिक बच्चों के लिए आसान नहीं होती हैं। ज्यादातर मामलों में बच्चों में इन आदतों के विकास के लिए परिजनों को व्यवसायिक मदद की जरूरत पड़ती है।

पढ़े: न्यूरोलॉजिकल अवस्था है ऑटिज्म : विश्व ऑटिज्म जागरूकता सप्ताह

किस प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा कर सकती है मदद

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां बच्चों की इंद्रियों से संबंधित समस्याओं को देखते हुए, उसके इलाज या थेरेपी की नीति बनाने में मदद कर सकती है। जिससे ऑटिस्टिक बच्चों को खाना खाने के लिए प्रेरित किया जा सके;

  1. इन नीतियों के चलते बच्चों की दिनचर्या में चरणबद्ध तरीके से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भोजन को ग्रहण करने की क्रिया को शामिल किया जाता है। इस संबंध में किए गए विभिन्न शोध के नतीजे बताते हैं कि किसी भी नए प्रकार के भोजन का बच्चे से परिचय कराने के लिए कम से कम 11 से 15 बार तक प्रयास करने के बाद बच्चे का रुख उस भोजन को ग्रहण करने को लेकर सकारात्मक होने लगता है।
  2. खाना खाते समय बच्चे के बैठने की अवस्था भी सही होनी चाहिए, जैसे खाना खाते समय वह हमेशा मेज और कुर्सी पर बैठकर खाना खाए और उसके पांव हमेशा जमीन से लगे होने चाहिए। इस प्रक्रिया के नियमित पालन से खाना खाते समय बच्चों में आत्मविश्वास आने लगता है।
    eating habits related Problems in autistic children
    ऑटिस्टिक बच्चों में खानपान की आदतों संबंधी समस्याएं
  3. ऑटिस्टिक बच्चों में मल त्यागने की सही आदतों पर भी परिजनों को ध्यान देना चाहिए। ज्यादातर मामलों में जानकार, ऑटिस्टिक बच्चों को कब्ज तथा आंतों से संबंधित समस्याओं से बचाव के लिए दूध, दही जैसे डेयरी उत्पाद लेने से परहेज करने की सलाह देते हैं।
  4. इसके साथ ही बच्चों को टॉयलेट सीट पर सही तरीके से बैठना सिखाने के लिए दिशानिर्देश दिखाते चित्रों तथा स्टिकर का भी उपयोग किया जा सकता है। ऐसा करने से बच्चे मल त्याग के समय सही अवस्था में बैठना तो सीखेंगे ही, साथ ही उनका कपड़ों को गंदा करने जैसी घटनाओं में भी कमी आएगी।
  5. बच्चों को स्वयं अपना भोजन ग्रहण करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अलग-अलग प्रकार के ऐसे बर्तनों की मदद ली जा सकती है, जो ना सिर्फ इस्तेमाल करने में सरल हो, बल्कि देखने में भी आकर्षक लगते हो।
  6. ऑटिस्टिक बच्चों के लिए बहुत जरूरी है कि उनको नियमित तौर पर दिए जाने वाले भोजन के लिए नियम निर्धारित किए जाएं। जिसमें उन्हें क्या खाना है, किस समय खाना है और किस तरह से खाना है, को लेकर नियम बनाए जाएं और उनका पालन किया जाए। इसके अतिरिक्त बच्चों के खान-पान से जुड़ी आदतों और उनकी पसंद नापसंद को लेकर एक डायरी बनाना भी काफी मददगार हो सकता है।
  7. ऑटिस्टिक बच्चों के मील प्लान के लिए बहुत जरूरी है कि उनको खाने के बीच नियमित अंतराल दिए जाएं। साथ ही इस बीच में उन्हें स्नैक्स या जूस बिल्कुल भी ना दिया जाए।
  8. बच्चों को खेल-खेल में खाने के प्रकार, उनकी बनावट तथा खुशबू से परिचित कराना चाहिए।

इसके अतिरिक्त भोजन के समय बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जाए, वहीं खाना खाते समय उन्हें किसी भी प्रकार का कोई गैजेट ना दिया जाए। इसके साथ ही सुनिश्चित करें कि बच्चा पूरे दिन में भरपूर मात्रा में पानी पिये तथा दूध या जूस का सेवन कम करें। यही नहीं सोने संबंधी आदतों के विकास के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए ताकि उनका नींद की दिनचर्या बना रहे।

Last Updated : Apr 1, 2021, 2:37 PM IST
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