नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370, 35A हटाए जाने का विरोध कई संगठन कर रहे हैं. उनका कहना है कि अनुच्छेद 370, 35A हटाने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात और बिगड़े हैं, वहां के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए आज जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में तमाम वामदलों ने प्रेस वार्ता बुलाई. जिसमें फेमस वकील प्रशांत भूषण समेत तमाम एक्टिविस्ट शामिल हुए, जिन्होंने 370 हटाए जाने पर अपने विचार रखें.
हालात सुधरे तो बंदिश क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सरकार से सवाल करते हुए इस प्रेस वार्ता में कहा कि सरकार दावा कर रही है कि अनुच्छेद 370 और 35A से हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में हालात सुधर गए हैं. अगर हालात सुधर गए हैं तो वहां किसी को जाने क्यों नहीं दिया जा रहा. जिस प्रकार जम्मू कश्मीर के गवर्नर ने राहुल गांधी को जम्मू-कश्मीर आने का न्योता दिया और जब उन्होंने यह न्योता स्वीकार कर लिया तो उन्हें वहां पर आने नहीं दिया गया.
यूरोपीय सांसदों के जम्मू कश्मीर जाने पर सवाल
इसके अलावा हाल ही में जम्मू कश्मीर में गए 23 यूरोपिय सांसदों के दल को लेकर भी प्रशांत भूषण ने निशाना साधा और कहा कि सरकार खुद ही अपनी मर्जी से लोगों को सिलेक्ट कर जम्मू कश्मीर भेज रही है, जबकि यूएस कांग्रेस ह्यूमन राइट्स कमेटी के मेंबरो को कश्मीर जाने नहीं दिया गया. भारत से किसी भी राजनीतिक पार्टी के मेंबर को वहां जाने नहीं दिया जा रहा, लेकिन सरकार यूरोपिय सांसदों को कश्मीर भेज रही है,क्यों? उनका कहना था कि यह सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक हथकंडा सरकार की ओर से अपनाया जा रहा है ,और झूठी वाहवाही लपेटने की कोशिश की जा रही है.
छात्र नहीं कर पा रहे जम्मू कश्मीर में संपर्क
इस प्रेस वार्ता में जेएनयू छात्र संगठन के प्रतिनिधि और यूनिवर्सिटी के छात्र भी शामिल हुए जिन्होंने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने पर अपने विचार रखे. छात्र संगठन की अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि जब से जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A हटाया गया है, तब से जेएनयू में जो जम्मू कश्मीर के छात्र हैं वह अपने परिवार से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें नहीं पता है कि उनके परिवार वाले जम्मू कश्मीर में किस हालात में है.
सरकार ने लिया जल्दबाजी में फैसला
जेएनयू में आर्ट एंड एथिक्स के छात्र ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा की सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने का फैसला बेहद ही जल्दी बाजी में लिया. ना तो वहां के आम लोगों से और ना ही वहां के इलेक्टेड मेंबर से इसके बारे में कोई चर्चा की गई.