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कोरोना महामारी के कारण कम हुआ ऑर्गन ट्रांसप्लांट, एम्स ORBO ने शुरू की ये पहल

कोरोना के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं. और अब मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. इसी को लेकर एम्स के ओर्बो के मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी साइकिल यात्रा कर लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने के लिए जागरूक करेंगे.

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Published : Aug 26, 2020, 2:48 PM IST

aiims ORBO initiated cycling campaign to aware people for organ transplant
कोरोना के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ कम

नई दिल्ली: देशभर में हर साल पांच लाख लोग इसीलिए मर जाते हैं क्योंकि उनको प्रत्यारोपण के लिए समय पर अंग नहीं मिल पाते. वहीं अब कोविड-19 के संक्रमण ने हालत और बुरी कर दी है. साथ ही कोरोना के कारण ज्यादातर अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट रुक गए हैं. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन(ओर्बो) ने एक बार फिर साइकिल यात्रा के सहारे जिंदगी को रीसाइकल करने की मुहिम शुरू कर दी है.

कोरोना के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ कम

देश के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में अंगदान का एक अलग ही विभाग है, जिसे ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) कहते हैं. ओर्बो के मुताबिक, हमारे देश में ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की मांग और इसकी उपलब्धता के बीच काफी बड़ा गैप है. लाखों लोग इंतजार कर रहे हैं कि कोई उन्हें अंगदान करें तो उनकी जान बच सके, लेकिन अंगदान करने वाले 0.1 प्रतिशत लोग भी नहीं मौजूद हैं.



हमारे देश में हर साल डेढ़ से दो लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें मुश्किल से 8 हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है. लगभग 75 हजार से 80 हजार लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 1800 भाग्यशाली लोगों को ही यह मौका मिल पाता हैं. इसी तरह से एक लाख लोगों को हर साल कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन इनमें से सिर्फ 50 हजार लोगों का कॉर्निया ट्रांसप्लांट हो पाता है. हर साल 10 हजार लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 150 भाग्यशाली लोगों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो पाता है.

कोरोना ने ऑर्गन डोनेशन को रोका

जीटीबी हॉस्पिटल के फॉरेन्सिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एनके अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना की वजह से पिछले 5 महीने से ऑर्गन डोनेशन के लिए लोग सामने नहीं आ रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण लॉकडाउन के चलते लोगों के मूवमेंट का रिस्ट्रिक्टेड होना है. इस वजह से जिन लोगों का ऑर्गन ट्रांसप्लांट होना था, उनकी तारीखें आगे बढ़ा दी गई है. ऑर्गन डोनेशन को लेकर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि लोग बड़ी संख्या में स्वैच्छिक रूप से ऑर्गन डोनेशन के लिए सामने आ सके.

ट्रांसप्लांट करने से किया मना
हरियाणा के रोहतक में रहने वाले सनोज(32) की दोनों किडनी खराब हैं. उनका आरएमएल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. ऑपरेशन की तारीख मिलती इससे पहले ही कोरोना की वजह से आरएमएल हॉस्पिटल को कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल घोषित कर दिया गया. सनोज को किसी और अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कराने को कह दिया गया. सनोज के पास उतने पैसा नहीं है कि किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा सके. फिलहाल डायलिसिस पर है और स्थिति नॉर्मल होने का इंतजार कर रहे हैं. इसी तरह घनश्याम का एम्स में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना है, लेकिन कभी सूटेबल डोनर नहीं मिलने से तो अब कोरोना की वजह से अब तक चार बार ट्रांसप्लांट करने की तारीखें बदली जा चुकी है. उनके शरीर में खून नहीं बन पा रहा है. खून के लिए वे डोनर्स पर निर्भर है.

भारत में 0.1 फीसदी ऑर्गन डोनेशन
एम्स के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) के मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी बताते हैं कि अंगदान जिसमें हार्ट, किडनी, लीवर, कॉर्निया, टिश्यूज, बोन्स और स्कीन जैसी तमाम शारीरिक अंगों को मृत्यु उपरांत डोनेट किया जाता है. वहीं जिन मरीजों के इनमें से कोई भी अंग खराब हो जाते हैं उनको ऑर्गन डोनेशन कर नया जीवन दिया जाता है.

क्यों नहीं हो पाता अंगदान?

हमारे देश में अंगदान को लेकर कई सारी भ्रांतियां लोगों के मन में है. लोग इसे अपनी धार्मिक आस्थाओं से जोड़कर देखते हैं. जिसकी वजह से अंगदान नहीं हो पा रहा है. सामाजिक रूढ़िवादिता और धार्मिक कट्टर सोच की वजह से पूरी दुनिया में अंगदान करने के मामले में भारत काफी पीछे है. जबकि ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए लाखों लोग कतार में हैं. लेकिन अंगदान करने वाले 0.1 प्रतिशत लोग भी नहीं हैं.



अंगदान के प्रति जागरूक करने का प्रण
राजीव मैखुरी बताते हैं कि कोरोना काल में लोगों के अंदर निराशाजनक सोच और अवसाद घर कर रहा है. इसकी वजह से कई लोगों ने आत्महत्या जैसे कदम भी उठाया. ऐसे निराशाजनक माहौल में अंगदान के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा है. जबकि अंगदान के इंतजार में लाखों लोग मौत के दरवाजे पर खड़े हैं. इसे देखते हुए एम्स के ओर्बो डिपार्टमेंट की हेड डॉ. आरती विज ने अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ क्रिएटिव करने की सलाह दी. उसके बाद हमने स्वतंत्रता दिवस के दिन एक प्रण लिया कि एक महीने के अंदर दिल्ली-एनसीआर में हम 500 किलोमीटर की साइकिल से यात्रा कर लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करेंगे.

साइकिल यात्रा में बताएंगे प्रक्रिया

राजीव बताते हैं कि अपनी साइकल यात्रा के दौरान लोगों को इस बारे में पूरी प्रक्रिया बताएंगे कि कैसे मृत्यु के बाद अंगदान कर दूसरों को जिंदगी दे सकते हैं. इस दौरान राजीव अंगदान के लिए अपनाई जाने वाली पूरी प्रक्रिया को भी लोगों को समझा रहे हैं. लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें अंगदान के लिए प्रण लेने को कहा जाएगा.

कैसे कर सकते हैं डोनेट

आप ऑनलाइन ओर्बो की वेबसाइट www.orbo.org या एम्स की वेबसाईट www.aiims.edu में भी विजिट कर कोई भी ओर्बो का फार्म भर सकते हैं. जब आप इस फॉर्म को ऑनलाइन भरते हैं तो आपको एक ई-रजिस्ट्रेशन कार्ड मिल जाता है. इसके बारे में आप अपनी फैमिली मेंबर से डिस्कस करते हैं और उनसे कहते हैं कि आपने अंगदान का निर्णय लिया है. उनका क्या विचार है. उनकी मृत्यु के बाद जिस संस्थान से रजिस्ट्रेशन हुआ है, उस संस्थान के अधिकारी से संपर्क कर ऑर्गन रिसीव करने को कहा जाए.

परिवार की सहमति जरूरी
राजीव बताते हैं कि यह कोई कानूनी कागज नहीं है, बल्कि यह एक शख्स की स्वेच्छा है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मृत्यु के बाद परिवार का मन ना बदल जाए. क्योंकि कई बार देखने को मिला है कि शख्स ने मृत्यु के बाद अपना अंगदान करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया और बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार ने अंगदान करने से मना कर दिया. इसके लिए परिवार का फैसला बहुत अहम होता है.


500 किमी दूरी तय करने का लक्ष्य
मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी ने बताया कि हमारा लक्ष्य 500 किलोमीटर का है, जिसकी हमने शुरुआत वसुंधरा से कर दी है. बीते रविवार 23 अगस्त को हमने राजघाट, इंडिया गेट और गांधी मेमोरियल होते हुए 40 किलोमीटर की यात्रा की. कुल मिलाकर अभी तक मैंने 84 किलोमीटर की यात्रा कर ली है. अभी 406 किलोमीटर की यात्रा करना बाकी है. हमारे इस फैसले से हमें दोहरा लाभ हो रहा है. एक तो साइकिलिंग करने से स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है. क्योंकि हम स्वस्थ रहेंगे तभी हमारा भारत स्वस्थ रहेगा. राजीव लोगों से अपील कर रहे हैं कि वह पॉजिटिव एनर्जी के साथ आगे आएं और अपना अंगदान कर दूसरों की जिंदगी बचाएं.




नई दिल्ली: देशभर में हर साल पांच लाख लोग इसीलिए मर जाते हैं क्योंकि उनको प्रत्यारोपण के लिए समय पर अंग नहीं मिल पाते. वहीं अब कोविड-19 के संक्रमण ने हालत और बुरी कर दी है. साथ ही कोरोना के कारण ज्यादातर अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट रुक गए हैं. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन(ओर्बो) ने एक बार फिर साइकिल यात्रा के सहारे जिंदगी को रीसाइकल करने की मुहिम शुरू कर दी है.

कोरोना के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ कम

देश के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में अंगदान का एक अलग ही विभाग है, जिसे ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) कहते हैं. ओर्बो के मुताबिक, हमारे देश में ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की मांग और इसकी उपलब्धता के बीच काफी बड़ा गैप है. लाखों लोग इंतजार कर रहे हैं कि कोई उन्हें अंगदान करें तो उनकी जान बच सके, लेकिन अंगदान करने वाले 0.1 प्रतिशत लोग भी नहीं मौजूद हैं.



हमारे देश में हर साल डेढ़ से दो लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें मुश्किल से 8 हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है. लगभग 75 हजार से 80 हजार लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 1800 भाग्यशाली लोगों को ही यह मौका मिल पाता हैं. इसी तरह से एक लाख लोगों को हर साल कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन इनमें से सिर्फ 50 हजार लोगों का कॉर्निया ट्रांसप्लांट हो पाता है. हर साल 10 हजार लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 150 भाग्यशाली लोगों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो पाता है.

कोरोना ने ऑर्गन डोनेशन को रोका

जीटीबी हॉस्पिटल के फॉरेन्सिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एनके अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना की वजह से पिछले 5 महीने से ऑर्गन डोनेशन के लिए लोग सामने नहीं आ रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण लॉकडाउन के चलते लोगों के मूवमेंट का रिस्ट्रिक्टेड होना है. इस वजह से जिन लोगों का ऑर्गन ट्रांसप्लांट होना था, उनकी तारीखें आगे बढ़ा दी गई है. ऑर्गन डोनेशन को लेकर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि लोग बड़ी संख्या में स्वैच्छिक रूप से ऑर्गन डोनेशन के लिए सामने आ सके.

ट्रांसप्लांट करने से किया मना
हरियाणा के रोहतक में रहने वाले सनोज(32) की दोनों किडनी खराब हैं. उनका आरएमएल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. ऑपरेशन की तारीख मिलती इससे पहले ही कोरोना की वजह से आरएमएल हॉस्पिटल को कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल घोषित कर दिया गया. सनोज को किसी और अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कराने को कह दिया गया. सनोज के पास उतने पैसा नहीं है कि किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा सके. फिलहाल डायलिसिस पर है और स्थिति नॉर्मल होने का इंतजार कर रहे हैं. इसी तरह घनश्याम का एम्स में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना है, लेकिन कभी सूटेबल डोनर नहीं मिलने से तो अब कोरोना की वजह से अब तक चार बार ट्रांसप्लांट करने की तारीखें बदली जा चुकी है. उनके शरीर में खून नहीं बन पा रहा है. खून के लिए वे डोनर्स पर निर्भर है.

भारत में 0.1 फीसदी ऑर्गन डोनेशन
एम्स के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) के मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी बताते हैं कि अंगदान जिसमें हार्ट, किडनी, लीवर, कॉर्निया, टिश्यूज, बोन्स और स्कीन जैसी तमाम शारीरिक अंगों को मृत्यु उपरांत डोनेट किया जाता है. वहीं जिन मरीजों के इनमें से कोई भी अंग खराब हो जाते हैं उनको ऑर्गन डोनेशन कर नया जीवन दिया जाता है.

क्यों नहीं हो पाता अंगदान?

हमारे देश में अंगदान को लेकर कई सारी भ्रांतियां लोगों के मन में है. लोग इसे अपनी धार्मिक आस्थाओं से जोड़कर देखते हैं. जिसकी वजह से अंगदान नहीं हो पा रहा है. सामाजिक रूढ़िवादिता और धार्मिक कट्टर सोच की वजह से पूरी दुनिया में अंगदान करने के मामले में भारत काफी पीछे है. जबकि ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए लाखों लोग कतार में हैं. लेकिन अंगदान करने वाले 0.1 प्रतिशत लोग भी नहीं हैं.



अंगदान के प्रति जागरूक करने का प्रण
राजीव मैखुरी बताते हैं कि कोरोना काल में लोगों के अंदर निराशाजनक सोच और अवसाद घर कर रहा है. इसकी वजह से कई लोगों ने आत्महत्या जैसे कदम भी उठाया. ऐसे निराशाजनक माहौल में अंगदान के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा है. जबकि अंगदान के इंतजार में लाखों लोग मौत के दरवाजे पर खड़े हैं. इसे देखते हुए एम्स के ओर्बो डिपार्टमेंट की हेड डॉ. आरती विज ने अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ क्रिएटिव करने की सलाह दी. उसके बाद हमने स्वतंत्रता दिवस के दिन एक प्रण लिया कि एक महीने के अंदर दिल्ली-एनसीआर में हम 500 किलोमीटर की साइकिल से यात्रा कर लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करेंगे.

साइकिल यात्रा में बताएंगे प्रक्रिया

राजीव बताते हैं कि अपनी साइकल यात्रा के दौरान लोगों को इस बारे में पूरी प्रक्रिया बताएंगे कि कैसे मृत्यु के बाद अंगदान कर दूसरों को जिंदगी दे सकते हैं. इस दौरान राजीव अंगदान के लिए अपनाई जाने वाली पूरी प्रक्रिया को भी लोगों को समझा रहे हैं. लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें अंगदान के लिए प्रण लेने को कहा जाएगा.

कैसे कर सकते हैं डोनेट

आप ऑनलाइन ओर्बो की वेबसाइट www.orbo.org या एम्स की वेबसाईट www.aiims.edu में भी विजिट कर कोई भी ओर्बो का फार्म भर सकते हैं. जब आप इस फॉर्म को ऑनलाइन भरते हैं तो आपको एक ई-रजिस्ट्रेशन कार्ड मिल जाता है. इसके बारे में आप अपनी फैमिली मेंबर से डिस्कस करते हैं और उनसे कहते हैं कि आपने अंगदान का निर्णय लिया है. उनका क्या विचार है. उनकी मृत्यु के बाद जिस संस्थान से रजिस्ट्रेशन हुआ है, उस संस्थान के अधिकारी से संपर्क कर ऑर्गन रिसीव करने को कहा जाए.

परिवार की सहमति जरूरी
राजीव बताते हैं कि यह कोई कानूनी कागज नहीं है, बल्कि यह एक शख्स की स्वेच्छा है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मृत्यु के बाद परिवार का मन ना बदल जाए. क्योंकि कई बार देखने को मिला है कि शख्स ने मृत्यु के बाद अपना अंगदान करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया और बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार ने अंगदान करने से मना कर दिया. इसके लिए परिवार का फैसला बहुत अहम होता है.


500 किमी दूरी तय करने का लक्ष्य
मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी ने बताया कि हमारा लक्ष्य 500 किलोमीटर का है, जिसकी हमने शुरुआत वसुंधरा से कर दी है. बीते रविवार 23 अगस्त को हमने राजघाट, इंडिया गेट और गांधी मेमोरियल होते हुए 40 किलोमीटर की यात्रा की. कुल मिलाकर अभी तक मैंने 84 किलोमीटर की यात्रा कर ली है. अभी 406 किलोमीटर की यात्रा करना बाकी है. हमारे इस फैसले से हमें दोहरा लाभ हो रहा है. एक तो साइकिलिंग करने से स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है. क्योंकि हम स्वस्थ रहेंगे तभी हमारा भारत स्वस्थ रहेगा. राजीव लोगों से अपील कर रहे हैं कि वह पॉजिटिव एनर्जी के साथ आगे आएं और अपना अंगदान कर दूसरों की जिंदगी बचाएं.




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