नई दिल्ली: एम्स के मेडिकल सोशल वेलफेयर विभाग और गैर सरकारी संगठन 'मेक व विश इंडिया' के संयुक्त पहल पर गुरुवार को विभिन्न वार्डों में गंभीर बीमारियों से पीड़ित 76 बच्चों की इच्छा पूरी की गई. यह कार्यक्रम एम्स के जवाहरलाल नेहरू ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया, जिसमें वे बच्चे अपने अभिभावक के साथ शामिल हुए, जिनका एम्स में इलाज चल रहा है. इस दौरान बच्चों को मोबाइल फोन, टैब, लैपटॉप, स्मार्ट वॉच, क्रिकेट किट आदि उपहार मिले, जिनसे उनके चेहरे खिल उठे.
बच्चों के लिए एक प्रयास: मेडिकल सोशल वेलफेयर विभाग के चीफ मेडिकल सोशल वेलफेयर अधिकारी बीआर शेखर ने बताया कि भारत की स्वतंत्रता के 76 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एम्स में गंभीर बीमारियों का इलाज करा रहे 76 बच्चों को उनके पसंद की चीजें उपहार के रूप में दी गई. यह कार्यक्रम एनजीओ मेक व विश इंडिया और उनके विभाग द्वारा आयोजित किया गया. उन्होंने बताया कि एम्स में बेहतरीन इलाज तो मिलता ही है, साथ ही हम चाहते हैं कि खास बच्चों के लिए कुछ ऐसा किया जाए, जिससे उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ सके और कुछ समय के लिए वे अपनी बिमारी को भूलकर खुश हो सकें.
यह है चयन की प्रक्रिया: उन्होंने बताया कि डॉक्टर, बच्चों को मेक व विश इंडिया एनजीओ के साइकलॉजिस्ट के पास रेफर करते हैं जो उनसे बातचीत कर उनकी इच्छाएं जानते हैं. इसके बाद जो संभव हो, वह उन्हें दिलाने का प्रयास किया जाता है. इसबार उपहार पाने वालों में ब्लड कैंसर से पीड़ित 50, पीडियाट्रिक सर्जरी के दो बच्चे, बर्न एंड प्लास्टिक डिपार्टमेंट सात बच्चे और अन्य बीमारियों से पीड़ित 17 बच्चे शामिल थे.
अब तक 85 हजार बच्चों की इच्छाएं की गई पूरी: वहीं मेक व विश इंडिया के सीईओ दीपक भाटिया ने कहा कि एम्स के डायरेक्टर प्रो. एम श्रीनिवास और चीफ एमएसएसओ ने उन्हें गंभीर बीमारियों का इलाज करा रहे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का अवसर प्रदान किया. पिछले 28 वर्षों में उन्होंने लगभग 85 हजार बच्चों की इच्छाएं पूरी की है. उन्होंने कहा कि 2025 में जब हम अपना 30वां स्थापना दिवस मनाएंगे, तब तक हम करीब एक लाख बच्चों की इच्छाएं पूरी कर चुके होंगे.
इसलिए दिया जाता है उपहार: उन्होंने बताया कि अस्पताल के उबाऊ माहौल के कारण बच्चे यहां रुकना नहीं चाहते हैं, लेकिन डॉक्टर बताते हैं कि जब उनसे बात कर उनके पसंदीदा चीजों के बारे में पता कर उन्हें उपहार दिया जाता है तो वे बहुत खुश होते हैं और अपना पूरा इलाज कराते हैं. आमतौर पर गंभीर बीमारियों का काफी लंबा इलाज चलता है, जिसमें कैंसर और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों का इलाज तो तीन-पांच साल तक चलता है. इसके चलते बच्चे ऊब जाते हैं और अस्पताल से जाने की जिद करने लगते हैं.
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उपहार का होता है 'असर': उन्होंने कहा, विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों के अच्छे-बुरे मूड का उनके इलाज पर भी पड़ता है. अपने पसंद की चीजें पाकर जब वह खुश होते हैं तो उनपर इलाज का सकारात्मक असर पड़ता है. इससे पहले टाटा मेमोरियल अस्पताल में कैंसर का इलाज करा रहे एक बच्चे की ख्वाहिश पूरी की गई थी, जिसके बाद उसके शरीर में आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले. बच्चा जल्दी स्वस्थ हुआ और आआईटी से पास होकर आज बतौर इंजीनियर काम कर रहा है. जिन बच्चों की इच्छाएं पूरी की गई हैं, उनमें से अधिकतर बच्चे बेहद गरीब परिवार से हैं. ये बच्चे बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनना चाहते हैं. इनमें से 15 बच्चों को मोबाइल फोन और 25 बच्चों को साइकिल दी गई.
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