नई दिल्ली: देश में कमजोर स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से अव्वल तो अधिकांश मरीजों को पता ही नहीं होता कि उन्हें हिप की परेशानी है. वे या तो रीढ़ की या फिर न्यूरो के डॉक्टर्स का चक्कर लगाते रहते हैं. जब तक सही जगह पहुंचते हैं, तब तक परेशानी इतनी बढ़ जाती है कि मामला हिप रिप्लेसमेंट तक आ जाता है, लेकिन ऑपरेशन के बाद जमीन पर नहीं बैठ पाने या चौकड़ी मार कर नहीं बैठ सकने की वजह से मरीज रिप्लेसमेंट नहीं करवाता है.
मिनिमल इनवेसिव टेक्नीक से संभव
अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ अश्विनी बताते हैं कि मिनिमल इनवेसिव टेक्नीक से अब एक छोटे चीरे से ऑपरेशन किया जाता है और इससे कम उम्र वाले मरीज जल्द ही ये सब कुछ कर सकते हैं.
डॉ अश्विनी बताते हैं कि इस बीमारी में मरीज के हिप में ब्लड सप्लाई रुक जाती है, जिसका एकमात्र इलाज हिप रिप्लेसमेंट ही है. उनके पास हर महीने इस बीमारी के 50 से 60 मरीज आते हैं. उनका ये भी दावा है कि एम् आई एस तकनीक की सफलता 99 प्रतिशत तक की है.
हर महीने आते हैं 50 से 60 मरीज
डॉ अश्विनी बताते हैं कि इस बीमारी में मरीज के हिप में ब्लड सप्लाई रुक जाती है, जिसका एकमात्र इलाज हिप रिप्लेसमेंट ही है. उनके पास हर महीने इस बीमारी के 50 से 60 मरीज आते हैं. उनका ये भी दावा है कि एम् आई एस तकनीक की सफलता 99 प्रतिशत तक की है.