नई दिल्ली: बाहरी दिल्ली के टटेसर गांव में सांगोपांग वेद आर्ष गुरुकुल आजादी से पहले का बना है. इसकी स्थापना 1940 में हुई थी. उससे पहले यह गुरुकुल वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर में चलाया जा रहा था. भारत को आजादी दिलाने के लिए दिल्ली और उसके आसपास के क्रांतकारी यहां पर मीटिंग किया करते थे.
अब यह पूरी तरह खंडर में बदल चुका है, लेकिन प्राचीनता के कुछ अवशेष अब भी यहां मौजूद है. फिलहाल अब यहां पर छात्राओं को वैदिक शिक्षा दी जाती है.
क्रांतिकारी करते थे मीटिंग
साल 1940 से 1947 तक यह गुरुकुल क्रांतिकारियों के अड्डा था. यहां पर दिल्ली देहात के क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए रूपरेखा तैयार करते थे, महत्वपूर्ण मीटिंग होती थी. यहां का इतिहास भी गौरवशाली बताया जाता है.
पहले लाहौर में चलता था गुरुकुल
पहले यह गुरुकुल वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर में चलाया जाता था. बाद में इसे दिल्ली-हरयाणा बॉर्डर पर टटेसर गांव में शिफ्ट कर दिया गया. आजादी के बाद से लगातार यहां पर गुरुकुल चलाया जा रहा है. इसमें वेदों की शिक्षा दी जाती है. फिलहाल यह गुरुकुल खंडहर बन चुका है लेकिन अभी भी पुरानी इमारत के कुछ अवशेष यहां मौजूद हैं. जरूरत के अनुसार यहां पर नई इमारत बना दी गई और जल्द ही उन बचे हुए अवशेषों को हटाकर यहां पर वैदिक संस्कृति मंत्रालय और संस्था की तरफ से गुरुकुल के लिए भव्य इमारत बना दी जाएगी.
गुरुकुल का है गौरवशाली इतिहास
गुरुकुल के संरक्षक और प्राचार्य ने बताया कि टटेसर गांव में बने इस गुरुकुल का इतिहास काफी गौरवशाली है. आसपास के लोग बताते हैं कि टटेसर गांव दिल्ली के पुराने गांवों में से एक है.