नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली ही नहीं, देश में भी लोग पेड़ों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. हर साल लाखों पेड़ लकड़ियों के नाम पर काटे जाते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. उसी पर्यावरण को बचाने के लिए दिल्ली के अलीपुर इलाके के मुखमेल गांव में रहने वाले एक शख्स ने एक अनूठी पहल की है. जिसके जरिए पर्यावरण को बचाया जा सकेगा. साथ ही गायों का संरक्षण भी किया जा सकेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
हवन से लेकर अंतिम संस्कार के लिए बनाई लकड़ियां
ईटीवी भारत की टीम ने मुखमेल गांव में गाय के गोबर से हवन सामग्री से लेकर व्यक्ति के अंतिम संस्कार तक में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियों को बनाने वाले शख्स विकास भारद्वाज से बात की. उन्होंने बताया कि वह लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हो गए थे. दिल्ली के एक निजी स्कूल में शारीरिक शिक्षक के तौर पर काम कर रहे थे. लॉकडाउन के चलते उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. बेरोजगारी की समस्या के चलते उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया. जिससे निजात पाने के लिए विकास ने गाय के गोबर से मशीन द्वारा लकड़ियां बनाने का छोटा सा काम शुरू किया, लेकिन आज इस काम को काफी हद तक बढ़ाने में सफल रहे हैं. गाय के गोबर से बनी लकड़ियों को दुकान से लेकर श्मशान घाट तक पहुंचा रहे हैं, जिससे लोग लड़कियों की जगह गाय के गोबर से बनी इन लकड़ियों को प्रयोग करें.
पेड़ों के संरक्षण के लिए कर रहे जागरूक
आमतौर पर गाय के गोबर से उपले बनाए जाते हैं, लेकिन इस शख्स ने मशीन के द्वारा गाय के गोबर से लकड़ी के आकार में नया रूप देने का काम शुरू किया. इसकी लंबाई करीब छह इंच से तीन फीट तक होती है, जिसे धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलापों में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है. घर में होने वाले हवन से लेकर अंतिम संस्कार में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियों के लिए पेड़ों की कटाई रोकने का सबसे बढ़िया तरीका बताया है, गाय के गोबर का लोग ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करेंगे. जिससे गायों का संरक्षण तो होगा ही साथ ही पेड़ों की कटाई भी रुकेगी, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. पेड़ों की कटाई के नाम पर हर साल देश में लाखों पेड़ काटे जाते हैं, जिससे प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है ओर हरियाली लगातार खत्म हो रही है. इन सब चीजों को रोकने के लिए दिल्ली के छोटे से गांव में रहने वाले एक शख्स ने बड़ी पहल की है.
गाय का गोबर और गाय दोनों का संरक्षण
विकास का कहना है कि एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार में कम से कम तीन से चार क्विंटल लकड़ियों का प्रयोग होता हैं, अगर लोग गाय के गोबर से बनी इन लकड़ियों का प्रयोग करेंगे तो यह भी उतनी ही लगेगी और वैसे ही काम करें कि जिस प्रकार लकड़िया काम करती हैं. इन सब के प्रयोग से पेड़ों की कटाई तो रुकेगी और साथ ही दूसरे लोगों को रोजगार मिलेगा और गायों का संरक्षण भी किया जाएगा. गाय सड़कों पर आवारा घूमती हैं, उन्हें भी लोग रोजगार के चलते पालेंगे और गाय के गोबर को बेचेंगे. फिलहाल वह खुद भी गौशाला से गोबर खरीद कर लाते हैं और मशीन के द्वारा इन्हें बनाते हैं. फिर सूखने के बाद दुकानों से लेकर श्मशान घाट तक जरूरत के हिसाब से पहुंचाते हैं.
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पेड़ों का काटना चिंता का विषय
आने वाले समय में जब लकड़ियां काटने के चक्कर में पेड़ खत्म हो जाएंगे तो लोगों के सामने बहुत बड़ी समस्या आएगी. उसी समस्या को देखते हुए यह खुद एक छोटे से काम के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं. साथ ही बेरोजगार लोगों को इससे रोजगार भी मिलेगा, जिससे लोग गायों के तो संरक्षण करेंगे ही साथ ही गोबर को भी प्रयोग में ला सकते हैं.