नई दिल्ली: सोसायटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (एसआईएलएफ) और एसआईएलएफ लेडीज ग्रुप द्वारा शनिवार को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि कानूनी पेशे में लैंगिक प्रतिनिधित्व में भारी असमानता को देखकर बहुत अफसोस होता है. हमारे लॉ स्कूलों में 50% से अधिक महिला छात्र होने के बावजूद प्रैक्टिस करने वाले वकीलों में केवल 15% महिलाएं ही हैं.
उन्होंने इसके लिए घर में महिलाओं के द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने बताया कि कैसे कई सक्षम महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में स्वीकार्यता पाने के लिए संघर्ष कर रही हैंप्रतिभा एम सिंह ने कहा कि महिला वकीलों को प्रमुख महानगरों को छोड़कर अन्य अदालतों में प्रैक्टिस करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. अदालतों में महिलाओं के लिए अपर्याप्त सुविधाएं हैं और मुकदमेबाजी क्षेत्र में महिलाओं को आज भी नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है.
उन्होंने आगे कहा कि कानूनी क्षेत्र में महिलाओं को खुद को साबित करने के लिए अपना 120% देना पड़ता है. उच्च पदों पर रहने के लिए अभी उन्हें और अधिक से अधिक सक्षम बनना होगा. हालांकि महिलाओं को 'रूढ़िवादी' बनाना आसान है लेकिन कानूनी पेशे में सफलता हासिल करने के लिए योग्यता और ईमानदारी बाकी सभी चीजों को मात दे देती है.
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महिला अधिवक्ता दिवस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा, मेरा मानना है कि एक महिला के लिए एक कानूनी पेशेवर के रूप में सफल करियर के लिए योग्यता हर चीज से ऊपर है. यदि आप सक्षम हैं और ईमानदारी दिखाते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको सफल होने से नही रोक सकती. हमें उन सभी महान पुरुषों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने महिलाओं के लिए कानून के क्षेत्र में प्रवेश को संभव बनाया. प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि कानून में महिलाओं को समय प्रबंधन, धैर्य और दृढ़ता जैसे कौशल अपनाने चाहिए ताकि वे तरक्की कर सके. महिलाएं अपनी लड़ाई बुद्धिमानी से चुनें और कभी भी सहानुभूति या दया की तलाश न करें. साथ ही उन्हें घर के कामों में घरेलू मदद लेने से भी कतराना नहीं चाहिए.
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