नई दिल्ली: किसी ने ठीक ही कहा है 'जहां चाह, वहां राह'. इस कहावत को सच कर दिखाया है विजय ने. असम के रहने वाले विजय कुछ मजबूरियों के चलते 9 साल की उम्र में घर छोड़कर आ गए थे, लेकिन अब विजय ने डीयू से पढ़ाई पूरी की है.
9 साल की उम्र में छोड़ा था घर
विजय ने ईटीवी भारत से बातचीत करने के दौरान बताया की कुछ कारणों से वह 9 साल की उम्र में अपना घर छोड़कर दिल्ली आ गए थे. कुछ पता नहीं था कहां जाना है कहां रहना है लेकिन तब उन्हें एक व्यक्ति ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी में छोड़ा.
दरअसल जब वह अपना घर छोड़ कर आ गए थे तो वह सड़कों पर भटक रहे थे तभी एक व्यक्ति ने उनसे उनके बारे में पूछा और उन्हें एक अनाथालय पहुंचाया जहां वह कुछ सालों तक रहे फिर बाल सहयोग केंद्र में रहे जहां उनकी शिक्षा पूरी हुई और धीरे-धीरे उन्होंने अपनी स्कूल की शिक्षा पूरी की.
बिना सहारे के पूरी की शिक्षा
हम अक्सर देखते हैं परिवार में बच्चों को प्रेरित करने के लिए माता-पिता होते हैं, बुजुर्ग होते हैं, बड़े भाई बहन होते हैं. लेकिन विजय के पास कोई नहीं था उन्होंने बचपन से ही खुद को बड़ा बनाया और अपने आप को उस काबिल बनाया आज वह दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हो चुके हैं.
ईटीवी से बात करते हुए भावुक हुए विजय
जब हमने विजय से उनके घर छोड़ने के कारणों के बारे में पूछा तो उन्होंने भावुक होकर इसके पीछे का कारण बताने से इनकार कर दिया. साथ ही कहा की शुरुआत में बहुत मुश्किल हुई क्योंकि बचपन में की गई गलती का एहसास तब नहीं होता लेकिन बाद में बहुत होता है.
हालांकि बाद में उनसे उनके माता-पिता किसी ने कोई संपर्क नहीं किया ऐसे में वह यह समझ गए कि शायद वह इस दुनिया में अकेले ही हैं
12वीं में अच्छे नंबर लाकर लिया DU में दाखिला
विजय का कहना था कि अगर मन में सच्ची लगन हो और कुछ करने का जज्बा हो तो हमें कोई नहीं रोक सकता हमेशा अच्छी सोच के साथ अगर मेहनत की जाए तो हमें परिणाम जरूर मिलता है.
ठीक इसी चीज को ध्यान में रखते हुए वह बचपन से ही मेहनत करते रहे और 12वीं में अच्छे नंबर लाकर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज में दाखिला लिया जहां से उन्होंने BA पॉलीटिकल साइंस ऑनर्स में अपनी शिक्षा पूरी की.
आगे बनना चाहते हैं टीचर
विजय ने बताया कि वह आगे और पढ़ना चाहते हैं और ऐसे ही बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, जिससे कि वो अपनी इस शिक्षा के जरिए अन्य बच्चों को उनके मुकाम तक पहुंचा सके. साथ ही अपने जैसे बच्चों की ही मदद के लिए आगे आना चाहते हैं.