नई दिल्ली: दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा में हुए अग्नि त्रासदी को 26 साल बीत चुके हैं. इस मामले की नीलम कृष्णमूर्ति की किताब ट्रायल बाई फायर पर आधारित एक वेब सीरीज नेटफ्लिक्स पर 13 जनवरी को रिलीज हुई है. इस मौके पर ईटीवी भारत के संवाददाता गौरव बाजपेई ने बात की इस वेब सीरीज के मुख्य चरित्र और इस अग्निकांड में अपने बेटे और बेटी खोने वाली नीलम कृष्णमूर्ति से. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश -
वेब सीरीज बनाने का प्रस्ताव कब आया?
मैंने और मेरे पति शेखर ने यह सोचा कि हम पर जो बीती है उस पर एक किताब लिखी जानी चाहिए. वर्ष 2016 में अंग्रेजी में हमारी किताब ट्रायल बाई फायर और उसका हिंदी अनुवाद अग्नि परीक्षा रिलीज हुई. इसके बाद सिद्धार्थ जैन ने हमसे संपर्क किया और मूवी बनाने का प्रस्ताव दिया. फिल्म के लिए राजी होने का निर्णय इतना आसान नहीं था क्योंकि इस हादसे में मैंने अपने दोनों बच्चों को खोया है. मेरे पति ने मुझे इस बात के लिए राजी किया. हमने सिद्धार्थ से केवल एक ही शर्त रखी कि यह एक बेहद इमोशनल और सीरियस इश्यू है, ऐसे में हम किसी तरह का मेलोड्रामा मूवी में नहीं चाहते. बिना मिर्च मसाले के इस मूवी को रिलीज किया जाना चाहिए. उन्होंने बेहद जीवटता के साथ इस वेब सीरीज को तैयार किया है.
क्या किताब की रिलीज के समय भी सुशील अंसल की तरफ से कोई रोक-टोक की गई थी
हम अब वर्ष 2023 में आ चुके हैं. मैंने अपनी किताब 2016 में लिखी थी. उस समय सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटिशन भी पेंडिंग थी. उस दौरान भी किताब पर कोई रोक नहीं लगाई थी. लेकिन अलग-अलग मामलों में मुझे कोर्ट के दांव-पेच झेलने पड़े. उस मामले में भी दिल्ली हाईकोर्ट ने सुशील अंसल की याचिका खारिज करते हुए किताब को हरी झंडी दिखाई थी. आज वेब सीरीज भी रिलीज हो चुकी है.
न्याय पाने की राह में कोर्ट के अनुभव को किस तरह देखती हैं
मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि जब मैं कोर्ट जाऊंगी तो मुझे ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा. एक बड़ी कंपनी का मालिक जिसके पास वकीलों की लंबी फौज हो, पैसा हो और प्रभावित करने की सामर्थ हो, उसके खिलाफ खड़ा होना था. मुझे कई बार कोर्ट रूम के अंदर ही धमकियां मिलीं. न्यायालय के बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट, 30 वकीलों के साथ आकर मुझे कोर्टरूम ना आने की धमकी दे रहे थे, लेकिन अपने बच्चों को खोने के बाद हमें किसी चीज का डर नहीं था. हम अडिग रहे और आरोपियों के खिलाफ पीड़ितों को इकट्ठा किया. यह दुनिया में पहली बार था जब पीड़ित, परिवार की तरह इकट्ठे रहे और 26 वर्षों तक एकजुट होकर दोषियों के खिलाफ लड़ते रहे.
वेब सीरीज देखने के बाद आपका क्या रिव्यू है
बिना किसी मेलोड्रामा और मिर्च-मसाले के यह वेब सीरीज तैयार की गई है. अभिनेताओं ने अपने चरित्र को बखूबी निभाया है. हालांकि कोई भी अभिनेता कोविड-19 के चलते मुझसे और मेरे परिवार से मिल नहीं पाया था, इसके बावजूद उन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार अच्छा अभिनय किया है. वेब सीरीज नई पीढ़ी को दो दशक पहले घटित हुए अग्नि त्रासदी से रूबरू कराएगी. साथ ही दर्शक देश की न्याय व्यवस्था और उसके दांवपेच भी लोगों के सामने रखेगी.
यह था मामला
राजधानी दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा हाल में 13 जून 1997 को भीषण अग्निकांड हुआ था. इस सिनेमाहाल में 'बॉर्डर' फिल्म का शो चलने के दौरान आग लग गई थी. भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे. इस भीषण अग्निकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.
दरअसल शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गई, जो तेजी से अन्य हिस्सों में फैली। आग की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे. घटना की जांच के दौरान पता चला था कि सिनेमाघर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे. उपहार सिनेमा अग्निकांड में जिन लोगों की मौत हुई थी, उनमें नीलम की 17 वर्षीय बेटी उन्नति और 13 वर्षीय बेटा उज्जवल भी शामिल थे. आज उनके दोनों बच्चे जिंदा होते तो उनकी उम्र क्रमशः 39 और 35 होती. केआरएस राही का दर्द तो आज भी हरा है दरअसल, उनका 22 साल का बेटा सुदीप राही 13 जून को बर्थडे मनाने गया था. इस दौरान दोस्तों के साथ सिनेमा देखने गया, लेकिन वह फिर कभी लौट कर नहीं आया. जिस दिन उनके बेटे का बर्थ डे था उसी दिन वह दुनिया से विदा हो गया. राही की यह कहते हुए आंखें नम हो जाती हैं कि हमें तो यह समझ में नहीं आता कि अपने बेटे का 13 जून को बर्थ डे मनाएं या डेथ एनवर्सरी. यह बेहद दुखद था और अगर बेटा जिंदा होता तो 44 साल का होता.
13 जून 1997- उपहार सिनेमा में बार्डर फिल्म के प्रसारण के दौरान आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई.
22 जुलाई 1997- पुलिस ने उपहार सिनेमा मालिक सुशील अंसल व उसके बेटे प्रणव अंसल को मुंबई से गिरफ्तार किया.
24 जुलाई 1997- मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआइ को सौंपी गई.
15 नवंबर 1997- सीबीआइ ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल सहित 16 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की.
10 मार्च 1999- सेशन कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हुआ.
27 फरवरी 2001- अदालत ने सभी आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या, लापरवाही व अन्य मामलों के तहत आरोप तय किए.
24 अप्रैल 2003- हाईकोर्ट ने 18 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ितों के परिवार वालों को दिए जाने का आदेश जारी किया.
20 नवंबर 2007- अदालत ने सुशील व गोपाल अंसल सहित 12 आरोपियों को दोषी करार दिया। सभी को दो साल कैद की सजा सुनाई.
5 मार्च 2014- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा.
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