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Delhi University: अब अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ेंगे छात्र!

डीयू के स्नातक पाठ्यक्रम में संभवतः गांधी और अंबेडकर को अर्थशास्त्री के तौर पर शामिल किया जाएगा. वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा कि बीआर अंबेडकर एक महान अर्थशास्त्री थे. इसलिए हमें लगता है कि इस पर एक पेपर विकसित करना चाहिए. वहीं महात्मा गांधी के भी अर्थव्यवस्था पर कुछ विचार हैं, जिन्हें हमें जोड़ना चाहिए.

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Published : Jun 12, 2023, 1:50 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) बीते दिनों लिए गए कुछ फैसलों की वजह से चर्चा में है. अब नई चर्चा स्नातक पाठ्यक्रम में अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ाने को लेकर है. डीयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा कि बीआर अंबेडकर एक महान अर्थशास्त्री थे. वह अर्थशास्त्र के छात्र भी थे और अर्थशास्त्र के बारे में उनके कुछ विचार हैं. इसलिए हमें लगता है कि इस पर एक पेपर विकसित करना चाहिए. वहीं महात्मा गांधी के भी अर्थव्यवस्था पर कुछ विचार हैं जिन्हें हमें जोड़ना चाहिए. हालांकि अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम में इन दोनों महापुरुष को जोड़ना चाहिए या नहीं, इस पर डीयू की स्टेंडिंग कमिटी की बैठक में चर्चा होगी. इसके बाद एकेडमिक काउंसिल की बैठक में प्रस्ताव को ले जाया जाएगा. आखिर इस विचार के पीछे तर्क क्या है?

तीन पेपर को हटाने का विरोध
वीसी ने बताया कि बीते दिनों पहले अकादमिक परिषद (एसी) की बैठक हुई, जिसमें अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम में तीन वैकल्पिक पेपर- 'अर्थव्यवस्था, राज्य और समाज', 'उत्पादन संबंध और वैश्वीकरण', और 'भेदभाव का अर्थशास्त्र' को हटाने को लेकर विचार रखा गया. कुछ का तर्क था कि इन पेपर में कई समानता है. वहीं कुछ इसके पक्ष में नहीं थे. वह इन तीनों पेपर के महत्व पर अडिग थे. हमें कुछ कॉलेज के अर्थशास्त्र के संकाय द्वारा लेटर मिला है जिसमें कुछ ने कहा है कि इसे न हटाया जाए.

उन्होंने कहा कि यह मामला अकादमिक परिषद में चर्चा के लिए आया था. चूंकि अकादमिक परिषद में 110 सदस्य हैं, इसलिए मैंने पूरे मामले को देखने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफारिश की. इसलिए यह तीनों पेपर वास्तव में महत्वपूर्ण हैं या नहीं यह तो मुझे नहीं पता, लेकिन समिति पूरे विषय पर गौर करेगी. कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार करते हैं और फिर उस रिपोर्ट को 14 जून को अकादमिक मामलों की स्थायी समिति की बैठक में रखा जाएगा और उस मामले की सिफारिश के बाद विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद में रखा जाएगा.

नई विचार प्रक्रियाओं को सक्रिय करना होगा
वीसी ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद हमें अर्थव्यवस्था में नई विचार प्रक्रियाओं को सक्रिय करना होगा. क्योंकि 2047 तक हमें एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमें अगले 20-25 वर्षों के लिए 8-9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि की आवश्यकता है. हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. हमारे पास चार अच्छे उदाहरण हैं. हमें अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी जैसी उन अर्थव्यवस्थाओं की अच्छी प्रथाओं का अध्ययन करना चाहिए. उन अर्थव्यवस्थाओं के बारे में भी हम वहां से तुलना करने और अच्छी चीजें खोजने में सक्षम होंगे, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को देने में मदद करेंगी.

डीयू की तरफ से हाल ही में उठाए गए कदमः

  1. 26 मई को 110 लोगों की सदस्य वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक हुई.
  2. इस बैठक में तय हुआ वीर सावरकर को राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा.
  3. 9 जून को एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई.
  4. एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में पाकिस्तान के कवि मोहम्मद इकबाल को राजनीति विज्ञान के चैप्टर से हटाया गया.
  5. 14 जून को डीयू की स्टेंडिंग कमिटी की बैठक में अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ाने के संबंध में रिपोर्ट पेश की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः Degree Fair Canceled: डीयू के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में डिग्री मेला हुआ रद्द, मची भगदड़

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) बीते दिनों लिए गए कुछ फैसलों की वजह से चर्चा में है. अब नई चर्चा स्नातक पाठ्यक्रम में अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ाने को लेकर है. डीयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा कि बीआर अंबेडकर एक महान अर्थशास्त्री थे. वह अर्थशास्त्र के छात्र भी थे और अर्थशास्त्र के बारे में उनके कुछ विचार हैं. इसलिए हमें लगता है कि इस पर एक पेपर विकसित करना चाहिए. वहीं महात्मा गांधी के भी अर्थव्यवस्था पर कुछ विचार हैं जिन्हें हमें जोड़ना चाहिए. हालांकि अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम में इन दोनों महापुरुष को जोड़ना चाहिए या नहीं, इस पर डीयू की स्टेंडिंग कमिटी की बैठक में चर्चा होगी. इसके बाद एकेडमिक काउंसिल की बैठक में प्रस्ताव को ले जाया जाएगा. आखिर इस विचार के पीछे तर्क क्या है?

तीन पेपर को हटाने का विरोध
वीसी ने बताया कि बीते दिनों पहले अकादमिक परिषद (एसी) की बैठक हुई, जिसमें अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम में तीन वैकल्पिक पेपर- 'अर्थव्यवस्था, राज्य और समाज', 'उत्पादन संबंध और वैश्वीकरण', और 'भेदभाव का अर्थशास्त्र' को हटाने को लेकर विचार रखा गया. कुछ का तर्क था कि इन पेपर में कई समानता है. वहीं कुछ इसके पक्ष में नहीं थे. वह इन तीनों पेपर के महत्व पर अडिग थे. हमें कुछ कॉलेज के अर्थशास्त्र के संकाय द्वारा लेटर मिला है जिसमें कुछ ने कहा है कि इसे न हटाया जाए.

उन्होंने कहा कि यह मामला अकादमिक परिषद में चर्चा के लिए आया था. चूंकि अकादमिक परिषद में 110 सदस्य हैं, इसलिए मैंने पूरे मामले को देखने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफारिश की. इसलिए यह तीनों पेपर वास्तव में महत्वपूर्ण हैं या नहीं यह तो मुझे नहीं पता, लेकिन समिति पूरे विषय पर गौर करेगी. कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार करते हैं और फिर उस रिपोर्ट को 14 जून को अकादमिक मामलों की स्थायी समिति की बैठक में रखा जाएगा और उस मामले की सिफारिश के बाद विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद में रखा जाएगा.

नई विचार प्रक्रियाओं को सक्रिय करना होगा
वीसी ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद हमें अर्थव्यवस्था में नई विचार प्रक्रियाओं को सक्रिय करना होगा. क्योंकि 2047 तक हमें एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमें अगले 20-25 वर्षों के लिए 8-9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि की आवश्यकता है. हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. हमारे पास चार अच्छे उदाहरण हैं. हमें अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी जैसी उन अर्थव्यवस्थाओं की अच्छी प्रथाओं का अध्ययन करना चाहिए. उन अर्थव्यवस्थाओं के बारे में भी हम वहां से तुलना करने और अच्छी चीजें खोजने में सक्षम होंगे, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को देने में मदद करेंगी.

डीयू की तरफ से हाल ही में उठाए गए कदमः

  1. 26 मई को 110 लोगों की सदस्य वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक हुई.
  2. इस बैठक में तय हुआ वीर सावरकर को राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा.
  3. 9 जून को एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई.
  4. एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में पाकिस्तान के कवि मोहम्मद इकबाल को राजनीति विज्ञान के चैप्टर से हटाया गया.
  5. 14 जून को डीयू की स्टेंडिंग कमिटी की बैठक में अंबेडकर और गांधी को अर्थशास्त्री के तौर पर पढ़ाने के संबंध में रिपोर्ट पेश की जाएगी.

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