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Independence day 2023: आखिर प्रधानमंत्री लाल किले से ही क्यों फहराते हैं तिरंगा, जानें क्या है इतिहास - क्या कहते हैं जेएनयू के प्रोफेसर

देश की आजादी के बाद से ही लाल किले पर झंडा फहराने की परंपरा रही है और इसी किले के प्रचीर से प्रधानमंत्री हमेशा से संबोधन करते रहे हैं. इस परंपरा के साथ ही मन में एक सवाल जरूर कौंधता होगा कि आखिर लाल किले पर तिरंगा क्यों फहराया जाता है और आजादी के जश्न के लिए आखिर लाल किले को ही क्यों चुना गया? आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से...

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Published : Aug 8, 2023, 2:35 PM IST

नई दिल्ली: 15 अगस्त अब नजदीक है और लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल की तरह इस साल भी यहां के प्राचीर से तिरंगा फहराएंगे और देश को संबोधित करेंगे. वहीं, दूसरी तरफ देशभर के लोग हाथों में झंडा लिए स्वतंत्रता दिवस मनाते नजर आएंगे. जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, तब पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी लाल किले से तिरंगा फहराया था. इसके बाद लाल किला से ही अन्य प्रधानमंत्री 15 अगस्त के दिन झंडा फहराने लगे. आखिर झंडा फहराने के लिए लाला किला क्यों चुना गया? तो चलिए हम आपको इस स्टोरी के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि आखिर लाल किला ही क्यों

क्या कहते हैं डीयू के प्रोफेसर

डीयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ हम एकजुट हुए और एक आंदोलन शुरू हुआ. इसे हम क्रांति के तौर पर देखते हैं, वह 1857 है. इसी साल आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता सेनानी एकजुट हुए और एक मूवमेंट शुरू हुआ. इस पूरी लड़ाई को हम लाल किला से देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश की आजादी के समय यह एक ऐसा मोन्यूमेंट था, जहां हमें अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट होने में मदद मिली. उस दौरान लाल किला ही दिखा, जिसका इस्तेमाल किया गया. एक सिंबल के तौर पर सालों साल इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. उन्होंने बताया कि पंडित नेहरू ने लाल किला से 1947 से लेकर 1963 तक 17 बार भाषण दिया है.

उन्होंने बताया कि दिल्ली का पावर ऑफ सेंटर लाल किला ही रहा है. आगरा, फतेहपुर सीकरी सहित अन्य जगहों पर पावर ऑफ सेंटर बनाने का प्रयास हुआ, लेकिन वह नहीं बन पाया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी दिल्ली को ही पावर ऑफ सेंटर के तौर पर स्थापित किया. लाल किला अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले आंदोलन की पहचान बन गया था. अगर वह पहचान नहीं बनता तो लोगों को स्वीकार नहीं होता. इसलिए कहा जाता है कि मोन्यूमेंट एक मीनिंग कन्वे नहीं करते, बल्कि वह मल्टीपल मीनिंग कन्वे करते हैं. जैसे बनाने वाले का मीनिंग अलग होता है, इसके बाद उसे इस्तेमाल करने वाले का मतलब अलग होता है.

क्या कहते हैं जेएनयू के प्रोफेसर

जेएनयू के प्रोफेसर नजफ हैदर बताते हैं कि लाल किला को ही झंडा फहराने के लिए क्यों चुना गया, इसके दो कारण हैं. लाल किला 1857 से पहले मुगलों के वर्चस्व की निशानी रहा है, जो हिंदुस्तान के शासक थे. विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने अपना सत्ता जमा लिया और अपना झंडा फहराया. देश जब आजाद हुआ तो सत्ता के केंद्र मानते हुए यहां से अंग्रेजो का झंडा उतारकर अपना झंडा लगाया गया. तब से लेकर आज तक यह प्रथा बनी हुई है.

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मुगलों के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने कैद कर लिया था. उन्होंने भी आजादी की लड़ाई के लिए बिगुल फूंका था. अगर आप किसी देश को जीतते हैं तो वहां के राजा के महल से ही अपनी जीत का ऐलान करते है. भारत में लाल किला भी कुछ ऐसा ही था. यहां आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे चलाए गए. तब एक वाक्य काफी मशहूर हुआ. नो वकील, नो अपील, नो दलील. कुल मिलाकर इस दौर में लाल किला एक ऐसा केंद्र बन गया जहां से सत्ता हासिल करना, सत्ता जाना, यह सब देखा गया. जब भारत आजाद हुआ तो लाल किला ही तिरंगा फहराने के लिए सटीक साबित हुआ.

लाल किला का इतिहास

मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किला का निर्माण करवाया था. साल 1639 में शुरू हुआ निर्माण कार्य करीब 10 साल तक चला. यहां मुगलों ने 1857 से पहले तक राज किया. यहां मौजूदा समय में कई म्यूजियम बना दिए गए हैं. यहां 1857 विद्रोह को लेकर खासतौर पर एक म्यूजियम बनाया गया है. फांसी घर भी है. लाल किला के एंट्री गेट पर दो तोपें भी हैं. इसकी निगरानी और संरक्षण कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एएसआई कर रहा है.

ये भी पढ़ें : G20 Summit 2023: संवारे जाएंगे कंद्रीय संरक्षित स्मारक, एएसआई ने जारी किए निर्देश

नई दिल्ली: 15 अगस्त अब नजदीक है और लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल की तरह इस साल भी यहां के प्राचीर से तिरंगा फहराएंगे और देश को संबोधित करेंगे. वहीं, दूसरी तरफ देशभर के लोग हाथों में झंडा लिए स्वतंत्रता दिवस मनाते नजर आएंगे. जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, तब पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी लाल किले से तिरंगा फहराया था. इसके बाद लाल किला से ही अन्य प्रधानमंत्री 15 अगस्त के दिन झंडा फहराने लगे. आखिर झंडा फहराने के लिए लाला किला क्यों चुना गया? तो चलिए हम आपको इस स्टोरी के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि आखिर लाल किला ही क्यों

क्या कहते हैं डीयू के प्रोफेसर

डीयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ हम एकजुट हुए और एक आंदोलन शुरू हुआ. इसे हम क्रांति के तौर पर देखते हैं, वह 1857 है. इसी साल आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता सेनानी एकजुट हुए और एक मूवमेंट शुरू हुआ. इस पूरी लड़ाई को हम लाल किला से देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश की आजादी के समय यह एक ऐसा मोन्यूमेंट था, जहां हमें अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट होने में मदद मिली. उस दौरान लाल किला ही दिखा, जिसका इस्तेमाल किया गया. एक सिंबल के तौर पर सालों साल इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. उन्होंने बताया कि पंडित नेहरू ने लाल किला से 1947 से लेकर 1963 तक 17 बार भाषण दिया है.

उन्होंने बताया कि दिल्ली का पावर ऑफ सेंटर लाल किला ही रहा है. आगरा, फतेहपुर सीकरी सहित अन्य जगहों पर पावर ऑफ सेंटर बनाने का प्रयास हुआ, लेकिन वह नहीं बन पाया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी दिल्ली को ही पावर ऑफ सेंटर के तौर पर स्थापित किया. लाल किला अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले आंदोलन की पहचान बन गया था. अगर वह पहचान नहीं बनता तो लोगों को स्वीकार नहीं होता. इसलिए कहा जाता है कि मोन्यूमेंट एक मीनिंग कन्वे नहीं करते, बल्कि वह मल्टीपल मीनिंग कन्वे करते हैं. जैसे बनाने वाले का मीनिंग अलग होता है, इसके बाद उसे इस्तेमाल करने वाले का मतलब अलग होता है.

क्या कहते हैं जेएनयू के प्रोफेसर

जेएनयू के प्रोफेसर नजफ हैदर बताते हैं कि लाल किला को ही झंडा फहराने के लिए क्यों चुना गया, इसके दो कारण हैं. लाल किला 1857 से पहले मुगलों के वर्चस्व की निशानी रहा है, जो हिंदुस्तान के शासक थे. विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने अपना सत्ता जमा लिया और अपना झंडा फहराया. देश जब आजाद हुआ तो सत्ता के केंद्र मानते हुए यहां से अंग्रेजो का झंडा उतारकर अपना झंडा लगाया गया. तब से लेकर आज तक यह प्रथा बनी हुई है.

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मुगलों के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने कैद कर लिया था. उन्होंने भी आजादी की लड़ाई के लिए बिगुल फूंका था. अगर आप किसी देश को जीतते हैं तो वहां के राजा के महल से ही अपनी जीत का ऐलान करते है. भारत में लाल किला भी कुछ ऐसा ही था. यहां आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे चलाए गए. तब एक वाक्य काफी मशहूर हुआ. नो वकील, नो अपील, नो दलील. कुल मिलाकर इस दौर में लाल किला एक ऐसा केंद्र बन गया जहां से सत्ता हासिल करना, सत्ता जाना, यह सब देखा गया. जब भारत आजाद हुआ तो लाल किला ही तिरंगा फहराने के लिए सटीक साबित हुआ.

लाल किला का इतिहास

मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किला का निर्माण करवाया था. साल 1639 में शुरू हुआ निर्माण कार्य करीब 10 साल तक चला. यहां मुगलों ने 1857 से पहले तक राज किया. यहां मौजूदा समय में कई म्यूजियम बना दिए गए हैं. यहां 1857 विद्रोह को लेकर खासतौर पर एक म्यूजियम बनाया गया है. फांसी घर भी है. लाल किला के एंट्री गेट पर दो तोपें भी हैं. इसकी निगरानी और संरक्षण कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एएसआई कर रहा है.

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