ETV Bharat / state

Gandhi jayanti: साहित्य अकादमी द्वारा पर्यावरण और साहित्य विषय पर साहित्य मंच कार्यक्रम, गांधी जयंती पर विशेष - sahitya manch programme

गांधी जयंती के खास अवसर पर पर्यावरण और साहित्य विषयों पर साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पर्यावरण के बचाव पर चर्चा की गई.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 2, 2023, 10:38 PM IST

नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आज पर्यावरण और साहित्य विषयक साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. 'स्वच्छता ही सेवा' के अंतर्गत इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. आयोजित कार्यक्रम में पंकज चतुर्वेदी, राजीव रंजन गिरि जसविंदर कौर बिंद्रा (पंजाबी) अजय कुमार मिश्रा (संस्कृत)और अनवर पाशा (उर्दू) ने अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम में पर्यावरण और आज के समय में पर्यावरण में आने वाले बदलाव के बारे में विस्तृत चर्चा की गई.

पर्यावरण एक नई अवधारणा: पर्यावरणविद पंकज चतुर्वेदी ने पर्यावरण शब्द को आधुनिक मानते हुए कहा कि पर्यावरण विकास की तरह ही एक नई अवधारणा है और अब पर्यावरण कोई सम्मानित शब्द नहीं रहा है. अब इसने चिंता का रूप ले लिया है. उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य में प्रकृति थी. उन्होंने 'महाभारत' के वन पर्व में युधिष्ठिर और मार्कण्डेय ऋषि के संवाद के आधार पर बताया कि कलयुग के लिए या आने वाले समय के लिए उनकी जो चिंताएं थीं वो आज हमारे सामने प्रत्यक्ष आ खड़ी हुई हैं. उनमें ऋतुओं का बदलना, तालाब-नदियों का सूखना, फलों के स्वाद-सुगंध का कम होना और प्रचंड तापमान होना शामिल है.

आधुनिक हिंदी साहित्य में उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु, चंद्रकांत देवताले, अज्ञेय और भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं और नासिरा शर्मा के उपन्यास 'कुइयां जान' का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां पर्यावरण की चिंता तो है लेकिन वह बहुत व्यापक रूप में सामने नहीं आई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव रंजन गिरि ने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उनके अलग-अलग अर्थ और भाव हैं.

हिंदी साहित्य में प्रकृति का चित्रण प्रतीकों के रूप में तो बहुत है, लेकिन चिंता न के बराबर है. उन्होंने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेश जोशी और अरुण कमल की कविताओं के उदाहरण और काशीनाथ सिंह की कहानी का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे साहित्य में पर्यावरण की चिंता नहीं है, तो समाधान नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति पर विजय जब से विकास का पर्याय बनी है तब से मुश्किलें और बढ़ी हैं.

ये भी पढ़ें: गांधी जयंती पर खादी इंडिया स्टोर में लोगों ने की जमकर खरीदारी, जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेताओं ने किया प्रमोट

पर्यावरण की रक्षा के संदेश: 'अभिज्ञान शाकुंतलम' और 'मेघदूत' के उदाहरण देकर उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के बीच के सहज और गंभीर संबंधों को उजागर किया. उर्दू के प्रख्यात विद्वान, शिक्षा शास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर अनवर पाशा ने उर्दू साहित्य के बारे में बताने से पहले कहा कि आज का दिन, दो महान हस्तियों महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन है, जिन्होंने हमेशा भौतिक विकास का विरोध किया और अपने पूरे जीवन में सादगी को प्रोत्साहित किया. उनके लिबास से भी उनका चिंतन, उनका दर्शन हमें हमेशा पर्यावरण की रक्षा के संदेश देते रहे. उनके सिद्धांत पूरी मनुष्यता की भलाई के लिए थे.

ये भी पढ़ें: लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर विजय घाट पहुंचे किसान, सरकार के सामने रखी ये मांगें

नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आज पर्यावरण और साहित्य विषयक साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. 'स्वच्छता ही सेवा' के अंतर्गत इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया. आयोजित कार्यक्रम में पंकज चतुर्वेदी, राजीव रंजन गिरि जसविंदर कौर बिंद्रा (पंजाबी) अजय कुमार मिश्रा (संस्कृत)और अनवर पाशा (उर्दू) ने अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम में पर्यावरण और आज के समय में पर्यावरण में आने वाले बदलाव के बारे में विस्तृत चर्चा की गई.

पर्यावरण एक नई अवधारणा: पर्यावरणविद पंकज चतुर्वेदी ने पर्यावरण शब्द को आधुनिक मानते हुए कहा कि पर्यावरण विकास की तरह ही एक नई अवधारणा है और अब पर्यावरण कोई सम्मानित शब्द नहीं रहा है. अब इसने चिंता का रूप ले लिया है. उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य में प्रकृति थी. उन्होंने 'महाभारत' के वन पर्व में युधिष्ठिर और मार्कण्डेय ऋषि के संवाद के आधार पर बताया कि कलयुग के लिए या आने वाले समय के लिए उनकी जो चिंताएं थीं वो आज हमारे सामने प्रत्यक्ष आ खड़ी हुई हैं. उनमें ऋतुओं का बदलना, तालाब-नदियों का सूखना, फलों के स्वाद-सुगंध का कम होना और प्रचंड तापमान होना शामिल है.

आधुनिक हिंदी साहित्य में उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु, चंद्रकांत देवताले, अज्ञेय और भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं और नासिरा शर्मा के उपन्यास 'कुइयां जान' का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां पर्यावरण की चिंता तो है लेकिन वह बहुत व्यापक रूप में सामने नहीं आई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव रंजन गिरि ने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उनके अलग-अलग अर्थ और भाव हैं.

हिंदी साहित्य में प्रकृति का चित्रण प्रतीकों के रूप में तो बहुत है, लेकिन चिंता न के बराबर है. उन्होंने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेश जोशी और अरुण कमल की कविताओं के उदाहरण और काशीनाथ सिंह की कहानी का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे साहित्य में पर्यावरण की चिंता नहीं है, तो समाधान नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति पर विजय जब से विकास का पर्याय बनी है तब से मुश्किलें और बढ़ी हैं.

ये भी पढ़ें: गांधी जयंती पर खादी इंडिया स्टोर में लोगों ने की जमकर खरीदारी, जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेताओं ने किया प्रमोट

पर्यावरण की रक्षा के संदेश: 'अभिज्ञान शाकुंतलम' और 'मेघदूत' के उदाहरण देकर उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के बीच के सहज और गंभीर संबंधों को उजागर किया. उर्दू के प्रख्यात विद्वान, शिक्षा शास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर अनवर पाशा ने उर्दू साहित्य के बारे में बताने से पहले कहा कि आज का दिन, दो महान हस्तियों महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन है, जिन्होंने हमेशा भौतिक विकास का विरोध किया और अपने पूरे जीवन में सादगी को प्रोत्साहित किया. उनके लिबास से भी उनका चिंतन, उनका दर्शन हमें हमेशा पर्यावरण की रक्षा के संदेश देते रहे. उनके सिद्धांत पूरी मनुष्यता की भलाई के लिए थे.

ये भी पढ़ें: लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर विजय घाट पहुंचे किसान, सरकार के सामने रखी ये मांगें

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.