नई दिल्ली: राउज एवेन्यू कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के दो विधायकों और 36 अन्य को लॉकडाउन के समय ईंधन की बढ़ती कीमतों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के मामले में बरी कर दिया है. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट वैभव मेहता ने कहा कि इस अदालत का विचार है कि अभियोजन पक्ष के पास गवाह नहीं है और पुलिस की जांच में गंभीर खामियां हैं.
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट वैभव मेहता ने कहा कि इस अदालत का विचार है कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में भौतिक विरोधाभास हैं और पुलिस अधिकारियों द्वारा अच्छी तरह से निर्धारित सिद्धांतों और कानूनी मिसालों और अपने स्वयं के वरिष्ठ पुलिस द्वारा दिए गए निर्देशों की अनदेखी करते हुए की गई जांच में गंभीर खामियां हैं.
आप के राजेंद्र पाल गौतम व दुर्गेश पाठक समेत 36 अन्य पर आईपीसी की धारा 188 और धारा 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि जुलाई 2020 में महामारी के कारण निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद, आप के पदाधिकारी और स्वयंसेवक आदेशों का उल्लंघन करते हुए पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के विरोध में एकत्र हुए थे. अदालत ने सभा के संबंध में अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में विसंगतियों का उल्लेख किया. जिसमे यह पाया गया कि वीडियो या फोटो के अभाव में, आरोपी संदेह का लाभ पाने के हकदार थे, क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने पुलिस उपायुक्त (मुख्यालय), दिल्ली द्वारा बनाए गए "दिशानिर्देशों के अनुसार" कार्य नहीं किया था.
अदालत ने कहा, "अभियोजन पक्ष ने निषेध आदेश के संचार के तथ्य को साबित करने के लिए कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं रखा है और इस बिंदु पर कोई वीडियोग्राफी/तस्वीरें रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई हैं. कोर्ट ने माना कि कोरोनावायरस के चलते निषेधाज्ञा जरूरी है लेकिन फिर भी अभियोजन पक्ष को संदेह से परे साबित करना होगा. क्या प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेने से पहले उक्त निषेधाज्ञा आदेश की विधिवत जानकारी दी गई थी और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, खासकर तब जब 29 जुलाई 2020 और 30 जुलाई 2020 को क्षेत्र में ऐसा कोई निषेधाज्ञा आदेश लागू नहीं था.
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फैसले ने रेखांकित किया कि चार्जशीट में ना तो महिला पुलिस अधिकारी का जिक्र था और न ही ऐसे किसी अधिकारी को मामले में गवाह बनाया गया. यह, इस तथ्य के बावजूद कि मौके पर कई महिला प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया था. "किसी भी महिला पुलिस अधिकारी का उल्लेख न करना अभियोजन पक्ष के मामले के खिलाफ जाता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि या तो मौके पर कोई महिला प्रदर्शनकारी नहीं थी जो गैरकानूनी सभा का हिस्सा थी या महिला प्रदर्शनकारियों/आरोपी व्यक्तियों को हिरासत में लेना अवैध था. साक्ष्यों के अभाव में कोर्ट ने दोनों विधायकों समेत 36 लोगों को आरोप मुक्त करार दिया.
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