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केंद्र सरकार को किसी भी तरह से न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने नहीं देना चाहिएः राघव चड्ढा - controlling the appointment of judges

आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने संसद सत्र के दौरान खड़े होकर न्यायिक नियुक्तियों पर सांसद बिकास रंजन भट्टाचार्य के निजी सदस्य विधेयक का पुरजोर विरोध (AAP opposes NJAC Bill) किया. उच्च सदन में सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने विधेयक पेश किया था. इस विधेयक का उद्देश्य उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लोगों की सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को नियंत्रित करना था.

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Published : Dec 9, 2022, 10:25 PM IST

नई दिल्लीः आम आदमी पार्टी ने एनजेएसी विधेयक का शुक्रवार को राज्य सभा में पुरजोर विरोध (AAP opposes NJAC Bill) किया. आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने संसद सत्र के दौरान खड़े होकर न्यायिक नियुक्तियों पर सांसद बिकास रंजन भट्टाचार्य के निजी सदस्य विधेयक का पुरजोर विरोध किया. उच्च सदन में सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने विधेयक पेश किया था. विधेयक का उद्देश्य उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लोगों की सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को नियंत्रित करना था.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि न्यायपालिका देश में एकमात्र स्वतंत्र संस्था बची है. उस पर राजनीतिक प्रभाव की अनुमति देना हानिकारक है. कॉलेजियम प्रणाली सुचारू रूप से काम कर रही है. इसमें सुधार की गुंजाइश है, लेकिन किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है. केंद्र सरकार को किसी भी तरह से इसे नियंत्रित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का कॉन्सेप्ट लगभग तीन बार सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन लाया गया. इसे पहली बार 1993, दूसरी बार 1998 और तीसरी बार 2016 में लाया गया. तीनों बार सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी और इस विचार को खारिज कर दिया. मैं इस विधेयक का विरोध करता हूं."

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हम एक संवैधानिक असंभवता को करने का प्रयास कर रहे हैं. न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली बेहतरीन चल रही है. इसमें सुधार की गुंजाइश हो सकती है, जिसे न्यायपालिका के साथ चर्चा और संवाद के बाद किया जा सकता है. हमें केंद्र सरकार को ऐसा कोई भी अधिकार नहीं देना चाहिए कि वे न्यायपालिका और न्यायाधीशों की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर सकें. सीबीआई डायरेक्टर्स व ईडी डायरेक्टर्स की जिस तरह से नियुक्ति होती है, उसी तरह यह न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी घुसना चाहते हैं.

ये भी पढ़ेंः हालिया चुनाव के बाद AAP का बढ़ा कद, अब पूरे देश में झाड़ू चलाने की तैयारी

सुधार की गुंजाइश पर केंद्र सरकार को नहीं दे सकते नियंत्रणः चड्ढा ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली ने पिछले 30 वर्षों में बहुत अच्छा काम किया है. हालांकि, इसमें सुधार की गुंजाइश हो सकती है, लेकिन इसे खारिज करना और जजों की नियुक्ति में राजनीतिक दखल बिल्कुल नहीं होना चाहिए. एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट ने तीन बार खारिज कर दिया है. न्यायिक स्वतंत्रता हमारे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है.

उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बिल नहीं आना चाहिए, जो सरकार को जजों की नियुक्ति में दखल देने का मौका दे. ऐसे समय में सरकार को केवल न्यायपालिका से ही झटका मिल रहा है. न्यायपालिका आज देश में एकमात्र निष्पक्ष संस्था बची है. सरकार के इरादे बहुत स्पष्ट हैं. वह उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को उसी तरह नियुक्त करना चाहते हैं, जैसे वह सीबीआई और ईडी के निदेशकों की नियुक्ति करते हैं, जो संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.

नई दिल्लीः आम आदमी पार्टी ने एनजेएसी विधेयक का शुक्रवार को राज्य सभा में पुरजोर विरोध (AAP opposes NJAC Bill) किया. आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने संसद सत्र के दौरान खड़े होकर न्यायिक नियुक्तियों पर सांसद बिकास रंजन भट्टाचार्य के निजी सदस्य विधेयक का पुरजोर विरोध किया. उच्च सदन में सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने विधेयक पेश किया था. विधेयक का उद्देश्य उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लोगों की सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को नियंत्रित करना था.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि न्यायपालिका देश में एकमात्र स्वतंत्र संस्था बची है. उस पर राजनीतिक प्रभाव की अनुमति देना हानिकारक है. कॉलेजियम प्रणाली सुचारू रूप से काम कर रही है. इसमें सुधार की गुंजाइश है, लेकिन किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है. केंद्र सरकार को किसी भी तरह से इसे नियंत्रित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का कॉन्सेप्ट लगभग तीन बार सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन लाया गया. इसे पहली बार 1993, दूसरी बार 1998 और तीसरी बार 2016 में लाया गया. तीनों बार सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी और इस विचार को खारिज कर दिया. मैं इस विधेयक का विरोध करता हूं."

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हम एक संवैधानिक असंभवता को करने का प्रयास कर रहे हैं. न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली बेहतरीन चल रही है. इसमें सुधार की गुंजाइश हो सकती है, जिसे न्यायपालिका के साथ चर्चा और संवाद के बाद किया जा सकता है. हमें केंद्र सरकार को ऐसा कोई भी अधिकार नहीं देना चाहिए कि वे न्यायपालिका और न्यायाधीशों की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर सकें. सीबीआई डायरेक्टर्स व ईडी डायरेक्टर्स की जिस तरह से नियुक्ति होती है, उसी तरह यह न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी घुसना चाहते हैं.

ये भी पढ़ेंः हालिया चुनाव के बाद AAP का बढ़ा कद, अब पूरे देश में झाड़ू चलाने की तैयारी

सुधार की गुंजाइश पर केंद्र सरकार को नहीं दे सकते नियंत्रणः चड्ढा ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली ने पिछले 30 वर्षों में बहुत अच्छा काम किया है. हालांकि, इसमें सुधार की गुंजाइश हो सकती है, लेकिन इसे खारिज करना और जजों की नियुक्ति में राजनीतिक दखल बिल्कुल नहीं होना चाहिए. एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट ने तीन बार खारिज कर दिया है. न्यायिक स्वतंत्रता हमारे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है.

उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बिल नहीं आना चाहिए, जो सरकार को जजों की नियुक्ति में दखल देने का मौका दे. ऐसे समय में सरकार को केवल न्यायपालिका से ही झटका मिल रहा है. न्यायपालिका आज देश में एकमात्र निष्पक्ष संस्था बची है. सरकार के इरादे बहुत स्पष्ट हैं. वह उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को उसी तरह नियुक्त करना चाहते हैं, जैसे वह सीबीआई और ईडी के निदेशकों की नियुक्ति करते हैं, जो संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.

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