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DMD Disease: सिर्फ लड़कों को अपनी चपेट में लेती है ये बीमारी, जानें वजह और लक्षण - जंतर मंतर

ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) से आज देश में हजारों बच्चे ग्रस्त हैं. यह एक अनुवंशिक बीमारी है, जो सिर्फ लड़कों (Male) में होती है. इस बीमारी का पता करीब 5-7 साल की उम्र में चलता है. वहीं, अभी तक इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है.

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Published : Mar 25, 2023, 7:48 AM IST

Updated : Mar 25, 2023, 11:36 AM IST

नई दिल्ली: विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सारे आविष्कार और दवाओं की खोज होने के बावजूद दुनिया में आज भी एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज लोगों के लिए असंभव है. दरअसल, ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) एक ऐसी बीमारी है, जो जीन में अंतर होने की वजह से होती है. यह एक जेनेटिक बीमारी है.

क्यों और कैसे होती है बीमारी की शुरुआत: इस बीमारी की एक खासियत यह भी है कि यह सिर्फ लड़कों में ही होती है. देश में हजारों बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं. लेकिन, उन्हें इस बीमारी का उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. इससे इन बच्चों के मां-बाप घुट-घुट कर जीने को मजबूर हैं. वे चाहते हुए भी अपने बच्चों को इस बीमारी का इलाज मुहैया नहीं करा पा रहे हैं. सर गंगाराम अस्पताल में जैनेटिक विभाग की चेयरमैन डॉक्टर रत्ना दुआ पुरी बताती हैं कि इस बीमारी के कारण बच्चों के माता-पिता ही होते हैं. उनमें यह बीमारी नहीं होती, लेकिन पहले की पीढ़ी में परिवार में किसी न किसी सदस्य को या किसी रिश्तेदार के बच्चों में इस बीमारी के होने की हिस्ट्री हो सकती है.

जिन बच्चों के जीन में अंतर होता है. यह बीमारी उन्ही बच्चों को होती है. बीमारी जन्म से होती है, लेकिन 5-7 साल की उम्र में इसका पता चलता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में प्रोटीन नहीं बनता है. जिसकी वजह से उनकी मांसपेशियां गलने लगती हैं. इसकी शुरुआत पांव की मांसपेशियों से होती है, लेकिन जल्द ही ये रोग हृदय और फेफड़ों सहित शरीर की हर मांसपेशी को अपनी चपेट में ले लेता है. नतीजा यह होता है कि 15-16 साल की उम्र तक बच्चा व्हीलचेयर पर पहुंच जाता है और फिर एक दो साल में उसकी मौत हो जाती है.

अभी तक नहीं है इसका कोई इलाज: डॉक्टर रत्ना ने बताया कि अभी तक दुनिया में इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है. भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में भी इस बीमारी की दवाई बनाने पर रिसर्च चल रही है. जो बीमारियां जीन के अंतर की वजह से होती हैं. उनकी दवाई बनाना बहुत ही कठिन होता है. यह भी इसी तरह की बीमारी है. देश में पैदा होने वाले 3500 मेल बच्चों में से एक बच्चे को यह बीमारी होती है. अमेरिका में इस बीमारी के इलाज के लिए दवाई बनी है, पर उसका इंजेक्शन इतना महंगा है कि उसे कोई खरीद नहीं सकता. हालांकि, ट्रायल के तौर पर कुछ देशों में इस दवाई के इंजेक्शन मरीजों को देने शुरू किए गए हैं. इसी की तर्ज पर दूसरे देश भी दवाई बनाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में सिर्फ फिजियोथेरेपी और स्टेरॉइड की डोज ही इस बीमारी का इलाज है. जिससे कुछ समय तक इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है, लेकिन खत्म नहीं किया जा सकता. इस बीमारी के मरीजों को स्टेरॉइड की डोज लेने में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.

देश में डीएमडी की दवाई बनाने के लिए चल रही रिसर्च: डॉक्टर रत्ना ने बताया कि देश में चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई सेंटरों में डीएमडी की दवाई बनाने की रिसर्च चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात के 95वें संस्करण में इस बीमारी का इलाज तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों से आव्हान कर चुके हैं. सरकार भी इस बात पर जोर दे रही है, कि जल्द ही इस बीमारी का इलाज संभव हो सके.

ये भी पढ़ें: World Tuberculosis Day : Yes! We can end TB थीम पर मनेगा विश्व टीबी दिवस 2023

नई दिल्ली: विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सारे आविष्कार और दवाओं की खोज होने के बावजूद दुनिया में आज भी एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज लोगों के लिए असंभव है. दरअसल, ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) एक ऐसी बीमारी है, जो जीन में अंतर होने की वजह से होती है. यह एक जेनेटिक बीमारी है.

क्यों और कैसे होती है बीमारी की शुरुआत: इस बीमारी की एक खासियत यह भी है कि यह सिर्फ लड़कों में ही होती है. देश में हजारों बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं. लेकिन, उन्हें इस बीमारी का उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. इससे इन बच्चों के मां-बाप घुट-घुट कर जीने को मजबूर हैं. वे चाहते हुए भी अपने बच्चों को इस बीमारी का इलाज मुहैया नहीं करा पा रहे हैं. सर गंगाराम अस्पताल में जैनेटिक विभाग की चेयरमैन डॉक्टर रत्ना दुआ पुरी बताती हैं कि इस बीमारी के कारण बच्चों के माता-पिता ही होते हैं. उनमें यह बीमारी नहीं होती, लेकिन पहले की पीढ़ी में परिवार में किसी न किसी सदस्य को या किसी रिश्तेदार के बच्चों में इस बीमारी के होने की हिस्ट्री हो सकती है.

जिन बच्चों के जीन में अंतर होता है. यह बीमारी उन्ही बच्चों को होती है. बीमारी जन्म से होती है, लेकिन 5-7 साल की उम्र में इसका पता चलता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में प्रोटीन नहीं बनता है. जिसकी वजह से उनकी मांसपेशियां गलने लगती हैं. इसकी शुरुआत पांव की मांसपेशियों से होती है, लेकिन जल्द ही ये रोग हृदय और फेफड़ों सहित शरीर की हर मांसपेशी को अपनी चपेट में ले लेता है. नतीजा यह होता है कि 15-16 साल की उम्र तक बच्चा व्हीलचेयर पर पहुंच जाता है और फिर एक दो साल में उसकी मौत हो जाती है.

अभी तक नहीं है इसका कोई इलाज: डॉक्टर रत्ना ने बताया कि अभी तक दुनिया में इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है. भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में भी इस बीमारी की दवाई बनाने पर रिसर्च चल रही है. जो बीमारियां जीन के अंतर की वजह से होती हैं. उनकी दवाई बनाना बहुत ही कठिन होता है. यह भी इसी तरह की बीमारी है. देश में पैदा होने वाले 3500 मेल बच्चों में से एक बच्चे को यह बीमारी होती है. अमेरिका में इस बीमारी के इलाज के लिए दवाई बनी है, पर उसका इंजेक्शन इतना महंगा है कि उसे कोई खरीद नहीं सकता. हालांकि, ट्रायल के तौर पर कुछ देशों में इस दवाई के इंजेक्शन मरीजों को देने शुरू किए गए हैं. इसी की तर्ज पर दूसरे देश भी दवाई बनाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में सिर्फ फिजियोथेरेपी और स्टेरॉइड की डोज ही इस बीमारी का इलाज है. जिससे कुछ समय तक इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है, लेकिन खत्म नहीं किया जा सकता. इस बीमारी के मरीजों को स्टेरॉइड की डोज लेने में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.

देश में डीएमडी की दवाई बनाने के लिए चल रही रिसर्च: डॉक्टर रत्ना ने बताया कि देश में चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई सेंटरों में डीएमडी की दवाई बनाने की रिसर्च चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात के 95वें संस्करण में इस बीमारी का इलाज तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों से आव्हान कर चुके हैं. सरकार भी इस बात पर जोर दे रही है, कि जल्द ही इस बीमारी का इलाज संभव हो सके.

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Last Updated : Mar 25, 2023, 11:36 AM IST
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