नई दिल्ली: साल 1999 का वो युद्ध जब कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय सेना के वीर जवानों ने खदेड़ दिया था. 26 जुलाई का वो दिन जिसे देश कारगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है.
इसी युद्ध में दुश्मन की टुकड़ी पर सबसे पहले हैंड ग्रेनेड और गोली चलाने वाला वीर. दुश्मन को हराकर अपनी टुकड़ी के साथ विजय पताका फहराने वाला वीर. आज भी सरकार की बेरुखी का शिकार है. मजबूरी में दर-दर की ठोकरें खा रहा है. नाम है लांस नायक सतवीर सिंह.
सरकारी सहारे की आज भी है आस
दरअसल लांस नायक सतवीर सिंह जब जान को हथेली पर रखकर दुश्मनों के साथ खून की होली खेल रहे थे तब दुश्मन की गोली से उनके पैर में जा लगी. जिसकी वजह से आज उन्हें चलने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है. पैर को तो किसी तरह सहारा मिल गया लेकिन जिंदगी जीने के लिए अभी भी इन्हे सरकारी सहारे की आस है.
दिल्ली से कारगिल के अकेले जांबाज
लांस नायक सतबीर सिंह दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहते हैं. यह दिल्ली से कारगिल युद्ध के अकेले जांबाज हैं. आज कारगिल युद्ध को 20 साल बीत जाने के बाद भी दुश्मन की गोली इनके पैर में फंसी हुई है. जिसकी वजह से ठीक से चल पाना भी मुश्किल है. इस योद्धा ने करगिल के मैदान में दुश्मनों से देश की लड़ाई तो जीत ली लेकिन प्रशासन से अपनी लड़ाई हार गया.
कारगिल की लड़ाई के बाद करीब डेढ़ साल तक आर्मी अस्पताल में इलाज चला जिसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए लांस नायक सतवीर सिंह ने मजदूरी तक भी की. जिसका जिम्मेदार सरकारी तंत्र है.
शुक्रवार को देश 20वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है, लेकिन देश की राजधानी में ही कारगिल युद्ध का एक योद्धा अपनी शौर्य गाथा बताते हुए रोने लगता है. जिसने अपने हाथों से दुश्मन को धूल चटाई. वह आज मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है.
युद्ध की पहली गोली चलाई
लांस नायक सतवीर बताते हैं कि 13 जून साल1999 की सुबह थी. कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर वह थे. तभी पहाड़ियों के बीच घात लगाए दुश्मन की एक टुकड़ी से आमना-सामना हुआ. इन से महज कुछ ही दूरी पर पाकिस्तानी सैनिक थे.
अपनी 9 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे सतवीर ने दुश्मनों पर अपनी बंदूक से युद्ध की पहली गोली चलाई और हैंड ग्रेनेड से भी हमला किया. जिसमें पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए.
तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया
उन्होंने बताया कि उन्हें जिस काम के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया था. उन्होंने उस कम को बखूबी अंजाम दिया और तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया. हमारी कंपनी में 24 जवान थे जिन्हें तीन टुकड़ों में बांटा गया और सबसे पहली टुकड़ी को लीड खुद सतवीर सिंह कर रहे थे. इस युद्ध में इनकी बटालियन के 7 अफसर और जवान शहीद हुए.
आज भी पैर में फंसी हुई है गोली
इसी दौरान दुश्मन की 2 गोलियां लगी थी एक गोली ऐड़ी से छूकर निकल गई और दूसरी गोली आज भी पैर में फंसी हुई है. करीब15 घंटो तक दुश्मन की गोली से घायल यह योद्धा चीते की तरह पहाड़ी पर पड़ा रहा. शरीर का बहुत खून बह चुका था. कई बार सेना का हेलीकॉप्टर लेने भी आया लेकिन दुश्मन सैनिकों की वजह से वह उतर नहीं सका.
बाद में अपने साथियों की मदद से एयरबेस पर लाया गया. जहां पर करीब 9 दिन तक इलाज चलने के बाद दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया. भारत की विजय के साथ 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया.
पेट्रोल पंप आज तक नहीं मिला
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में करीब 527 जवान शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए. युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी. उस सूची में कारगिल युद्ध के घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का भा नाम था.
अपने अदम्य साहस का परिचय दे चुके सतवीर सिंह ने बताया कि करीब डेढ़ साल तक इनका इलाज दिल्ली के सेना हॉस्पिटल में चला. उसी दौरान घायल और शहीद हुए सैनिकों को पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी. लेकिन दुर्भाग्य से इन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका.
दी हुई जमीन भी सरकार ने छीन ली
इसके बाद जीवन यापन करने के लिए इन्हें करीब 1 एकड़ जमीन भी सरकार की ओर से दी गई. जिसमें उन्होंने फलों की बाग भी लगायी. वह जमीन करीब 6 साल तक इनके पास रही. इन्होंने उस पर खेती की लेकिन बाद में उसे भी सरकार ने छीन लिया.
अब किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. पैसों की कमी से उनके बेटों की पढ़ाई भी छूट गई. किसी तरह सरकारी पेंशन के पैसों से घर का खर्च चलाने के लिए जूस की दुकान खोली लेकिन वह भी बंद करनी पड़ी. सतवीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने दिहाड़ी मजदूरी तक की.
सर्विस सेवा स्पेशल मेडल पाने वाले दिल्ली के अकेले सिपाही
सतबीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने फौज में 13 साल 11 महीने नौकरी की. मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया गया. दिल्ली का अकेला सिपाही था जिसे सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला.
लांस नायक सतवीर सिंह के साथी हरपाल सिंह राणा इनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति तक का दरवाजा खटखटाया लेकिन सब जगह से निराशा ही हाथ लगी.
कारगिल युद्ध के इतने साल बाद भी इन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसका वीर योद्धा हकदारन होता है.