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कारगिल विजय दिवस: सरकार से हारा जवान, पैर में आज भी है दुश्मन की बन्दूक की गोली - petrol

कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह सरकार से हैं निराश. युद्ध में दुश्मन की लगी गोली आज भी पैर में मौजूद.

कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह etv bharat
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Published : Jul 26, 2019, 7:39 AM IST

Updated : Jul 26, 2019, 3:04 PM IST

नई दिल्ली: साल 1999 का वो युद्ध जब कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय सेना के वीर जवानों ने खदेड़ दिया था. 26 जुलाई का वो दिन जिसे देश कारगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है.

कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह


इसी युद्ध में दुश्मन की टुकड़ी पर सबसे पहले हैंड ग्रेनेड और गोली चलाने वाला वीर. दुश्मन को हराकर अपनी टुकड़ी के साथ विजय पताका फहराने वाला वीर. आज भी सरकार की बेरुखी का शिकार है. मजबूरी में दर-दर की ठोकरें खा रहा है. नाम है लांस नायक सतवीर सिंह.

सरकारी सहारे की आज भी है आस
दरअसल लांस नायक सतवीर सिंह जब जान को हथेली पर रखकर दुश्मनों के साथ खून की होली खेल रहे थे तब दुश्मन की गोली से उनके पैर में जा लगी. जिसकी वजह से आज उन्हें चलने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है. पैर को तो किसी तरह सहारा मिल गया लेकिन जिंदगी जीने के लिए अभी भी इन्हे सरकारी सहारे की आस है.

दिल्ली से कारगिल के अकेले जांबाज
लांस नायक सतबीर सिंह दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहते हैं. यह दिल्ली से कारगिल युद्ध के अकेले जांबाज हैं. आज कारगिल युद्ध को 20 साल बीत जाने के बाद भी दुश्मन की गोली इनके पैर में फंसी हुई है. जिसकी वजह से ठीक से चल पाना भी मुश्किल है. इस योद्धा ने करगिल के मैदान में दुश्मनों से देश की लड़ाई तो जीत ली लेकिन प्रशासन से अपनी लड़ाई हार गया.


कारगिल की लड़ाई के बाद करीब डेढ़ साल तक आर्मी अस्पताल में इलाज चला जिसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए लांस नायक सतवीर सिंह ने मजदूरी तक भी की. जिसका जिम्मेदार सरकारी तंत्र है.

kargil vijay diwas sad story of jawan satveer singh from delhi
लांस नायक सतवीर सिंह का घायल पैर


शुक्रवार को देश 20वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है, लेकिन देश की राजधानी में ही कारगिल युद्ध का एक योद्धा अपनी शौर्य गाथा बताते हुए रोने लगता है. जिसने अपने हाथों से दुश्मन को धूल चटाई. वह आज मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है.

युद्ध की पहली गोली चलाई
लांस नायक सतवीर बताते हैं कि 13 जून साल1999 की सुबह थी. कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर वह थे. तभी पहाड़ियों के बीच घात लगाए दुश्मन की एक टुकड़ी से आमना-सामना हुआ. इन से महज कुछ ही दूरी पर पाकिस्तानी सैनिक थे.

अपनी 9 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे सतवीर ने दुश्मनों पर अपनी बंदूक से युद्ध की पहली गोली चलाई और हैंड ग्रेनेड से भी हमला किया. जिसमें पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए.

तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया
उन्होंने बताया कि उन्हें जिस काम के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया था. उन्होंने उस कम को बखूबी अंजाम दिया और तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया. हमारी कंपनी में 24 जवान थे जिन्हें तीन टुकड़ों में बांटा गया और सबसे पहली टुकड़ी को लीड खुद सतवीर सिंह कर रहे थे. इस युद्ध में इनकी बटालियन के 7 अफसर और जवान शहीद हुए.

आज भी पैर में फंसी हुई है गोली
इसी दौरान दुश्मन की 2 गोलियां लगी थी एक गोली ऐड़ी से छूकर निकल गई और दूसरी गोली आज भी पैर में फंसी हुई है. करीब15 घंटो तक दुश्मन की गोली से घायल यह योद्धा चीते की तरह पहाड़ी पर पड़ा रहा. शरीर का बहुत खून बह चुका था. कई बार सेना का हेलीकॉप्टर लेने भी आया लेकिन दुश्मन सैनिकों की वजह से वह उतर नहीं सका.


बाद में अपने साथियों की मदद से एयरबेस पर लाया गया. जहां पर करीब 9 दिन तक इलाज चलने के बाद दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया. भारत की विजय के साथ 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया.

kargil vijay diwas sad story of jawan satveer singh from delhi
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह

पेट्रोल पंप आज तक नहीं मिला
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में करीब 527 जवान शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए. युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी. उस सूची में कारगिल युद्ध के घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का भा नाम था.


अपने अदम्य साहस का परिचय दे चुके सतवीर सिंह ने बताया कि करीब डेढ़ साल तक इनका इलाज दिल्ली के सेना हॉस्पिटल में चला. उसी दौरान घायल और शहीद हुए सैनिकों को पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी. लेकिन दुर्भाग्य से इन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका.

दी हुई जमीन भी सरकार ने छीन ली
इसके बाद जीवन यापन करने के लिए इन्हें करीब 1 एकड़ जमीन भी सरकार की ओर से दी गई. जिसमें उन्होंने फलों की बाग भी लगायी. वह जमीन करीब 6 साल तक इनके पास रही. इन्होंने उस पर खेती की लेकिन बाद में उसे भी सरकार ने छीन लिया.


अब किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. पैसों की कमी से उनके बेटों की पढ़ाई भी छूट गई. किसी तरह सरकारी पेंशन के पैसों से घर का खर्च चलाने के लिए जूस की दुकान खोली लेकिन वह भी बंद करनी पड़ी. सतवीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने दिहाड़ी मजदूरी तक की.

सर्विस सेवा स्पेशल मेडल पाने वाले दिल्ली के अकेले सिपाही
सतबीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने फौज में 13 साल 11 महीने नौकरी की. मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया गया. दिल्ली का अकेला सिपाही था जिसे सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला.

लांस नायक सतवीर सिंह के साथी हरपाल सिंह राणा इनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति तक का दरवाजा खटखटाया लेकिन सब जगह से निराशा ही हाथ लगी.


कारगिल युद्ध के इतने साल बाद भी इन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसका वीर योद्धा हकदारन होता है.

नई दिल्ली: साल 1999 का वो युद्ध जब कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय सेना के वीर जवानों ने खदेड़ दिया था. 26 जुलाई का वो दिन जिसे देश कारगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है.

कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह


इसी युद्ध में दुश्मन की टुकड़ी पर सबसे पहले हैंड ग्रेनेड और गोली चलाने वाला वीर. दुश्मन को हराकर अपनी टुकड़ी के साथ विजय पताका फहराने वाला वीर. आज भी सरकार की बेरुखी का शिकार है. मजबूरी में दर-दर की ठोकरें खा रहा है. नाम है लांस नायक सतवीर सिंह.

सरकारी सहारे की आज भी है आस
दरअसल लांस नायक सतवीर सिंह जब जान को हथेली पर रखकर दुश्मनों के साथ खून की होली खेल रहे थे तब दुश्मन की गोली से उनके पैर में जा लगी. जिसकी वजह से आज उन्हें चलने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है. पैर को तो किसी तरह सहारा मिल गया लेकिन जिंदगी जीने के लिए अभी भी इन्हे सरकारी सहारे की आस है.

दिल्ली से कारगिल के अकेले जांबाज
लांस नायक सतबीर सिंह दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहते हैं. यह दिल्ली से कारगिल युद्ध के अकेले जांबाज हैं. आज कारगिल युद्ध को 20 साल बीत जाने के बाद भी दुश्मन की गोली इनके पैर में फंसी हुई है. जिसकी वजह से ठीक से चल पाना भी मुश्किल है. इस योद्धा ने करगिल के मैदान में दुश्मनों से देश की लड़ाई तो जीत ली लेकिन प्रशासन से अपनी लड़ाई हार गया.


कारगिल की लड़ाई के बाद करीब डेढ़ साल तक आर्मी अस्पताल में इलाज चला जिसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए लांस नायक सतवीर सिंह ने मजदूरी तक भी की. जिसका जिम्मेदार सरकारी तंत्र है.

kargil vijay diwas sad story of jawan satveer singh from delhi
लांस नायक सतवीर सिंह का घायल पैर


शुक्रवार को देश 20वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है, लेकिन देश की राजधानी में ही कारगिल युद्ध का एक योद्धा अपनी शौर्य गाथा बताते हुए रोने लगता है. जिसने अपने हाथों से दुश्मन को धूल चटाई. वह आज मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है.

युद्ध की पहली गोली चलाई
लांस नायक सतवीर बताते हैं कि 13 जून साल1999 की सुबह थी. कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर वह थे. तभी पहाड़ियों के बीच घात लगाए दुश्मन की एक टुकड़ी से आमना-सामना हुआ. इन से महज कुछ ही दूरी पर पाकिस्तानी सैनिक थे.

अपनी 9 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे सतवीर ने दुश्मनों पर अपनी बंदूक से युद्ध की पहली गोली चलाई और हैंड ग्रेनेड से भी हमला किया. जिसमें पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए.

तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया
उन्होंने बताया कि उन्हें जिस काम के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया था. उन्होंने उस कम को बखूबी अंजाम दिया और तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया. हमारी कंपनी में 24 जवान थे जिन्हें तीन टुकड़ों में बांटा गया और सबसे पहली टुकड़ी को लीड खुद सतवीर सिंह कर रहे थे. इस युद्ध में इनकी बटालियन के 7 अफसर और जवान शहीद हुए.

आज भी पैर में फंसी हुई है गोली
इसी दौरान दुश्मन की 2 गोलियां लगी थी एक गोली ऐड़ी से छूकर निकल गई और दूसरी गोली आज भी पैर में फंसी हुई है. करीब15 घंटो तक दुश्मन की गोली से घायल यह योद्धा चीते की तरह पहाड़ी पर पड़ा रहा. शरीर का बहुत खून बह चुका था. कई बार सेना का हेलीकॉप्टर लेने भी आया लेकिन दुश्मन सैनिकों की वजह से वह उतर नहीं सका.


बाद में अपने साथियों की मदद से एयरबेस पर लाया गया. जहां पर करीब 9 दिन तक इलाज चलने के बाद दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया. भारत की विजय के साथ 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया.

kargil vijay diwas sad story of jawan satveer singh from delhi
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों पर पहली गोली चलाने वाले वीर लांस नायक सतवीर सिंह

पेट्रोल पंप आज तक नहीं मिला
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में करीब 527 जवान शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए. युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी. उस सूची में कारगिल युद्ध के घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का भा नाम था.


अपने अदम्य साहस का परिचय दे चुके सतवीर सिंह ने बताया कि करीब डेढ़ साल तक इनका इलाज दिल्ली के सेना हॉस्पिटल में चला. उसी दौरान घायल और शहीद हुए सैनिकों को पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी. लेकिन दुर्भाग्य से इन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका.

दी हुई जमीन भी सरकार ने छीन ली
इसके बाद जीवन यापन करने के लिए इन्हें करीब 1 एकड़ जमीन भी सरकार की ओर से दी गई. जिसमें उन्होंने फलों की बाग भी लगायी. वह जमीन करीब 6 साल तक इनके पास रही. इन्होंने उस पर खेती की लेकिन बाद में उसे भी सरकार ने छीन लिया.


अब किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. पैसों की कमी से उनके बेटों की पढ़ाई भी छूट गई. किसी तरह सरकारी पेंशन के पैसों से घर का खर्च चलाने के लिए जूस की दुकान खोली लेकिन वह भी बंद करनी पड़ी. सतवीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने दिहाड़ी मजदूरी तक की.

सर्विस सेवा स्पेशल मेडल पाने वाले दिल्ली के अकेले सिपाही
सतबीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने फौज में 13 साल 11 महीने नौकरी की. मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया गया. दिल्ली का अकेला सिपाही था जिसे सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला.

लांस नायक सतवीर सिंह के साथी हरपाल सिंह राणा इनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति तक का दरवाजा खटखटाया लेकिन सब जगह से निराशा ही हाथ लगी.


कारगिल युद्ध के इतने साल बाद भी इन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसका वीर योद्धा हकदारन होता है.

Intro:नॉर्थ वेस्ट दिल्ली,

लोकेशन मुखमेल पुर ।

बाईट - लांस नायक सतवीर सिंह ओर उनके साथी के साथ वन टू वन ।

स्टोरी... 1999 के कारगिल युद्ध का जांबाज और वीर सैनिक आज सरकार के अपेक्षा का शिकार होकर दर-दर की ठोकरे खा रहा है । इस सैनिक ने 1999 में हुए कारगिल युद्ध में सबसे पहली विजय पताका अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मन को हराकर फहराई । दुश्मन की टुकड़ी पर सबसे पहले हैंड ग्रेनेड और गोली चलाने वाला यही वीर और जांबाज सैनिक है जो आज सरकार की बेरुखी का शिकार होकर थक हार कर अकेले बैठकर रोता है । कारगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान को हथेली पर लेकर दुश्मन के खेमे पर चीते की तरह टूट पड़ा और आज मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहा है । दुश्मन की गोली पैर में लगने के बाद सतवीर सिंह को तो खुद चलने बैसाखी का सहारा मिल गया लेकिन जिंदगी जीने के लिए अभी भी सरकारी सहारे की आस लगाए बैठा है ।


Body:लांच नायक सतबीर सिंह दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहते हैं यह दिल्ली से कारगिल युद्ध के अकेले जांबाज है । आज कारगिल युद्ध को 20 साल बीत जाने पर भी दुश्मन की गोली आज दिन के पैर में फंसी हुई है । जिसकी वजह से यह ठीक से चल फिर भी नहीं सकते । इस योद्धा ने करगिल के मैदान में दुश्मनों से लड़ाई तो जीत ली लेकिन सिस्टम से लड़ाई हार गया । कारगिल की लड़ाई के बाद करीब डेढ़ साल तक आर्मी अस्पताल में इलाज चला जिसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए लांस नायक सतवीर सिंह ने मजदूरी तक भी की । इस योद्धा को मजदूरी कराने के लिए सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है । आज देश का बीसवां कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है लेकिन देश की राजधानी में कारगिल युद्ध का एक योद्धा अपने शौर्य गाथा बताते हुए रोने लगता है, कि किस तरह से कारगिल युद्ध में दुश्मन पर चीता बन कर टूट पड़ा । जिसने अपने हाथों से दुश्मन को धूल चटाई और वह आज मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है।

सतवीर बताते हैं कि 13 जून 1999 सुबह थी कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर थे तभी पहाड़ियों के बीच घात लगाए दुश्मन की टुकड़ी से आमना सामना हो गया । इन से महज कुछ ही दूरी पर पाकिस्तानी सैनिक थे, अपनी 9 सैनिकों की टुकड़ी नेतृत्व कर रहे सतवीर ने दुश्मन पर अपनी बंदूक से युद्ध की पहली गोली चलाई ओर हैंड ग्रेनेड भी फीका जिसमे पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए । उन्होंने बताया कि जिस काम के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया था उन्होंने उस काम को बखूबी अंजाम दिया ओर तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया । हमारी कंपनी में 24 जवान थे जिन्हें तीन टुकड़ों में बांटा गया और सबसे पहली टुकड़ी को लीड खुद सतवीर सिंह कर रहे थे । इस युद्ध में इनकी बटालियन के 7 अफसर ओर जवान भी शहीद हुए और इसी दौरान दुश्मन की गोली इनके पैर की एड़ी में आकर लगी जो आज भी पैर में फंसी हुई है । करीब 15 घंटो तक दुश्मन की गोली से घायल योद्धा चीते की तरह पहाड़ी पर पड़े रहे । जिसमें इनके शरीर का काफी खून बह चुका था, कई बार सेना का हेलीकॉप्टर भी लेने आया लेकिन दुश्मन सैनिकों की वजह से वह उतर नहीं सका । फिर बाद में इन्हें इनके साथियों की मदद से एयरबेस लाया गया । जहां पर करीब 9 दिन तक इलाज चलने के बाद ने दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया ।

सरकारी आंकड़ों की बात करें तो देश में करीब 527 योद्धा शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए । भारत की विजय के साथ 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया । उस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी । उस सूची में कारगिल युद्ध के घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का नाम भी था । लांस नायक सतवीर के पैर में 2 गोलियां लगी थी एक गोली इनके पैर में लगकर ऐडी से छूकर निकल गई और दूसरी गोली आज भी पैर में फंसी हुई है ।

अपने अदम्य साहस का परिचय उसमें दे चुके सतवीर सिंह ने बताया कि करीब डेढ़ साल तक इनका इलाज दिल्ली के सेना हॉस्पिटल में चला । उसी दौरान घायल और शहीद हुए सैनिकों को पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी । लेकिन दुर्भाग्य से इन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका । इसके बाद जीवन यापन करने के लिए इन्हें करीब 1 एकड़ जमीन भी सरकार की ओर से दी गई । जिसमें उन्होंने फलों का बाग भी लगाया और वह जमीन करीब 6 साल तक इनके पास रही । इन्होंने उस पर खेती की, लेकिन बाद में उसे भी सरकार ने छीन लिया । बस अब किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे लेकिन पैसों की कमी के कारण उनके बेटों की पढ़ाई भी छूट गई । किसी तरह सरकारी पेंशन के पैसों से घर का खर्च चलाने के लिए जूस की दुकान खोली लेकिन मजबूरी में वह भी बंद करनी पड़ी । सतवीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने देहाडी पर मजदूरी भी की जीवन यापन करने के लिए क्या कुछ नही किया । लेकिन सरकार की ओर से वाजिब मदद आज तक नहीं मिली ।




Conclusion:सतबीर बताते हैं कि इन्होंने फौज में 13 साल 11 महीने की नौकरी की । मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया गया दिल्ली का अकेला सिपाही था जिसे सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला । सरकार ने जमीन व पेट्रोल पंप देने का वादा भी किया । ल3किन पेट्रोल पंप नही मिला खेती करने के लिए किसी तरह से एक एकड़ जमीन ही मिली । उसी दौरान एक बड़ी पार्टी के नेता ने उनसे जमीन वापस लेने के लिए संपर्क किया जब उन्होंने इंकार किया इनसे खेती की जमीन भी वापस छीन ली गयी । फिलहाल लांस नायक सतवीर सिंह के साथी हरपाल सिंह राणा ने इनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति से लेकर सभी का दरवाजा खटखटाया, सभी मंत्रियों की चौखट पर गए सरकारी तंत्र का ऐसा कोई मंत्री नहीं जिसके पास इन्होंने चक्कर ना लगाए हो लेकिन आज तक नहीं कुछ नहीं मिला । कोई सरकारी मदद नहीं मिली । वह सम्मान नहीं मिला जिसका यह कारगिल युद्ध का वीर योद्धा हकदार है ।
Last Updated : Jul 26, 2019, 3:04 PM IST

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