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रकाबगंज में फिल्मी गाने बजाने का मामला गरमाया, जागो पार्टी ने की शिकायत

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Published : Jun 6, 2021, 9:27 PM IST

रकाबगंज साहिब में 1984 घल्लूघारे की बरसी पर रंगीले कार्यक्रम के कारण सिख मर्यादा पर चोट लगने तथा गुरबाणी की अवज्ञा होने का दावा करते हुए जागो पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने कार्रवाई करने के लिए जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को पत्र लिखा है.

jago party complains
जागो पार्टी शिकायत

नई दिल्लीः गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब (Gurdwara Rakabganj Sahib) के कोविड सेंटर में हैप्पीनेस थैरेपी के नाम पर रोमांटिक फिल्मी गीत बजाने के मामले पर जागो पार्टी (jago party) के अध्यक्ष ने श्री अकाल तख्त साहिब (Sri Akal Takht Sahib) पर शिकायत की है. गुरु तेग बहादर साहिब जी के शहीदी स्थान गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में 1984 घल्लूघारे की बरसी पर हुए इस रंगीले कार्यक्रम के कारण सिख मर्यादा पर चोट लगने तथा गुरबाणी की अवज्ञा होने का दावा करते हुए जागो पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके (Manjit Singh GK) ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को इस मामले में कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है.

इस शिकायत पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रबंधकों को श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब करने की मांग करते हुए जीके ने दिल्ली कमेटी की धर्मप्रचार कमेटी को तुरंत बर्खास्त करने की सलाह भी जत्थेदार को दी है. जीके ने बताया कि गुरु तेग बहादर साहिब जी के इस पावन शहीदी स्थान पर होने वाले शादी-ब्याह आदि के कार्यक्रमों में डीजे, ढोल व बैंड बजाने की सख्त मनाही है, बारातियों को ढोल व बैंड बजाने की भी गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब से 100 मीटर पहले तक ही इजाजत है. पर कोविड सेंटर में सिरसा-कालका ने हैप्पीनेस थैरेपी के नाम पर रोमांटिक फिल्मी गीतों को बजाने की इजाजत देकर अपनी नासमझी जाहिर की है.

ये भी पढ़ेंः-अमिताभ बच्चन के 2 करोड़ लौटाएंगी जागो पार्टी, बोले जीके- 'सिखों के दोषी' से मदद लेना गलत

मनजीत सिंह जीके ने कहा कि गुरबाणी में अपार शक्ति है. गुरबाणी को पढ़ने और सुनने से दुःख, रोग, संताप आदि दूर हो जाते हैं, लेकिन गुरबाणी को दरकिनार करके रोमांटिक फिल्मी गीतों से खुशियां गुरुद्वारा साहिब के अंदर कोई बेवकूफ ही ढूंढ सकता है. इसलिए सवाल उठता है कि क्या गुरबाणी हैप्पीनेस नहीं पैदा करती ? या कमेटी प्रबंधकों को आध्यात्मिक चिंतन से रंगीली शैली पर ज्यादा भरोसा है ?

क्या शहीदी स्थान के मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली कमेटी की नहीं है ? एक तरफ सिख कौम जून 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार के शहीदों को 1 से 6 जून तक हर साल याद करती है, इसलिए 1984 घल्लूघारे के शोकमग्न हफ्ते में फिल्मी गीतों को बजाना कौम के शहीदों का अपमान है.

नई दिल्लीः गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब (Gurdwara Rakabganj Sahib) के कोविड सेंटर में हैप्पीनेस थैरेपी के नाम पर रोमांटिक फिल्मी गीत बजाने के मामले पर जागो पार्टी (jago party) के अध्यक्ष ने श्री अकाल तख्त साहिब (Sri Akal Takht Sahib) पर शिकायत की है. गुरु तेग बहादर साहिब जी के शहीदी स्थान गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में 1984 घल्लूघारे की बरसी पर हुए इस रंगीले कार्यक्रम के कारण सिख मर्यादा पर चोट लगने तथा गुरबाणी की अवज्ञा होने का दावा करते हुए जागो पार्टी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके (Manjit Singh GK) ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को इस मामले में कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है.

इस शिकायत पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रबंधकों को श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब करने की मांग करते हुए जीके ने दिल्ली कमेटी की धर्मप्रचार कमेटी को तुरंत बर्खास्त करने की सलाह भी जत्थेदार को दी है. जीके ने बताया कि गुरु तेग बहादर साहिब जी के इस पावन शहीदी स्थान पर होने वाले शादी-ब्याह आदि के कार्यक्रमों में डीजे, ढोल व बैंड बजाने की सख्त मनाही है, बारातियों को ढोल व बैंड बजाने की भी गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब से 100 मीटर पहले तक ही इजाजत है. पर कोविड सेंटर में सिरसा-कालका ने हैप्पीनेस थैरेपी के नाम पर रोमांटिक फिल्मी गीतों को बजाने की इजाजत देकर अपनी नासमझी जाहिर की है.

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मनजीत सिंह जीके ने कहा कि गुरबाणी में अपार शक्ति है. गुरबाणी को पढ़ने और सुनने से दुःख, रोग, संताप आदि दूर हो जाते हैं, लेकिन गुरबाणी को दरकिनार करके रोमांटिक फिल्मी गीतों से खुशियां गुरुद्वारा साहिब के अंदर कोई बेवकूफ ही ढूंढ सकता है. इसलिए सवाल उठता है कि क्या गुरबाणी हैप्पीनेस नहीं पैदा करती ? या कमेटी प्रबंधकों को आध्यात्मिक चिंतन से रंगीली शैली पर ज्यादा भरोसा है ?

क्या शहीदी स्थान के मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली कमेटी की नहीं है ? एक तरफ सिख कौम जून 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार के शहीदों को 1 से 6 जून तक हर साल याद करती है, इसलिए 1984 घल्लूघारे के शोकमग्न हफ्ते में फिल्मी गीतों को बजाना कौम के शहीदों का अपमान है.

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