नई दिल्ली: डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ लगातार बढ़ रही हिंसात्मक घटनाओं के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA), फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA), फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) समेत देश भर की तमाम डॉक्टर एसोसिएशन और फेडरेशन में राष्ट्रव्यापी नेशनल प्रोटेस्ट डे (Nationwide National Protest Day) का आयोजन किया.
AIIMS के बाहर जूनियर डॉक्टर्स का प्रदर्शन
इस दौरान सभी संस्थाओं से जुड़े जूनियर डॉक्टर और रेजिडेंट डॉक्टर दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस (AIIMS) अस्पताल के बाहर एकत्रित हुए और सरकार से डॉक्टरों के के साथ हो रही हिंसात्मक घटनाओं को लेकर केंद्रीय कानून बनाए जाने की मांग की. इस दौरान फेमा के जनरल सेक्रेटरी और एम्स अस्पताल के जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर सुव्रणकर दत्ता ने बताया पिछले कुछ महीनों से लगातार जूनियर डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. एक तरफ कोरोना काल में डॉक्टर्स सीमित संसाधनों के साथ मरीजों का इलाज कर रहे हैं. दूसरी ओर इस तरीके की यातनाएं डॉक्टर झेल रहें हैं. उन्होंने बताया कि बीते दिनों असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक जैसे अलग-अलग राज्यों में जूनियर डॉक्टर के साथ बेरहमी से मारपीट की कई घटनाएं सामने आई हैं.
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सभी राज्यों में अलग-अलग कानून, एक कानून की मांग
डॉक्टरों की ओर से मांग की जा रही है कि डॉक्टरों के साथ हो रही इन घटनाओं को लेकर राज्य सरकारों ने अपने-अपने कानून बनाए हुए हैं, लेकिन बावजूद इसके इस तरीके की घटनाएं देशभर के अलग-अलग राज्यों में हो रही है. इसीलिए सरकार को चाहिए कि वह एक केंद्रीय कानून लेकर आए. जिसके अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकार हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर को सुरक्षा प्रदान करे. इसके साथ ही हेल्थ केयर प्रोफेशनल सुरक्षा अधिनियम में आईपीसी की धारा और आईपीसी शामिल की जाए, जिससे इन घटनाओं पर सख्ती से एक्शन लिया जा सके.
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स्वास्थ्य सेवाओं पर नहीं होता ज्यादा खर्च
डॉक्टर दत्ता ने कहा कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर शायद उतना खर्च नहीं किया जाता, जितना खर्च किया जाना चाहिए. इसके चलते ही हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर इतना मजबूत नहीं है, जिससे हर एक मरीज को बेहतर इलाज मिल सके, लेकिन मौजूदा समय में हर डॉक्टर अपने मरीज को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है. कोई भी डॉक्टर यह नहीं चाहता कि उसके मरीज की जान जाए और मरीजों की जान बचाने के लिए ही डॉक्टर से स्वास्थ्यकर्मी इस प्रोफेशन में आते हैं और अपने मरीज का इलाज करते हैं. लेकिन इसके लिए सरकार को समझना चाहिए कि इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाए. इसके साथ ही लोगों को भी यह समझना होगा कि डॉक्टर अपने मरीज का कभी भी बुरा नहीं चाहते.
IMA द्वारा बुलाए गए प्रदर्शन में 3.5 लाख डॉक्टरों ने लिया हिस्सा
बता दें 18 जून को बुलाए गए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से 3.5 लाख डॉक्टरों ने हिस्सा लिया और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की अलग-अलग शाखाओं की ओर से स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा को लेकर श्वेत पत्र भी जारी किया गया. साथ ही आईएमए की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में देशभर के अब तक 730 डॉक्टर अपनी जान गंवा चुके हैं.