नई दिल्ली: सुखी-संपन्न परिवार से होने के बावजूद संजना तिवारी पिछले 25 सालों से दिल्ली की सड़कों पर किताबें बेच रही है. उनकी कहानी काफी दिलचस्प है. पति पत्रकारिता से रिटायर है और कई किताबें भी लिख चुके हैं, एक बेटा डॉक्टर है. जबकि, दामाद आईपीएस अधिकारी है. जानकारी के अनुसार, इनकी दुकान एक भी दिन बंद नहीं रहती. ETV भारत ने मंडी हाउस के पास फुटपाथ पर 25 सालों से हिंदी साहित्य की किताब बेच रही 50 वर्षीय संजना से खास बातचीत की.
रंगमंच के बच्चे हैं परिवार का हिस्सा: उन्होंने बताया कि वैसे उनका परिवार काफी बड़ा है, क्योंकि रंग मंच के जितने भी बच्चे हैं वह उनके परिवार का हिस्सा हैं. वैसे परिवार में एक बेटी, एक बेटा और पति हैं. बेटा एमबीबीएस कर चुका है, डॉक्टर बन गया है. बेटी सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही है. बेटी की शादी हो चुकी है और दामाद राजस्थान में आईपीएस है. जबकि, उनके पति पत्रकारिता से रिटायर हो चुके हैं. संजना खुद का पब्लिकेशन भी चलाती है.
जब शादी हुई थी तब हाई स्कूल पास थी: संजना खुद अभी कई कविताओं को लिख रही है. मूल रूप से बिहार के सीवान जिले की रहने वाली है. जब उनकी शादी हुई थी तब वह 10वीं पास थी, लेकिन आज मास्टर्स कर चुकी हैं. उनका कहना है कि किताब बेचना उनकी कोई मजबूरी नहीं है बस शौक है. काम सब लोग मजबूरी में करते हैं, लेकिन हमारी कोई मजबूरी नहीं है. उन्होंने कहा कि काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता.
साहित्य के बारे में रखती है जानकारी: आज दिल्ली से बाहर का भी कोई आता है तो उन्हीं के यहां किताबें खरीदने आता है. कला और थिएटर के लिए मशहूर मंडी हाउस में श्रीराम सेंटर ऑडिटोरियम के बाहर जमीन पर पलंग बिछाकर पुस्तकें बेचने वाली संजना साहित्य के बारे में काफी जानकारी रखती हैं. उनका घर मंडी हाउस से काफी दूर है. लोग दूर-दूर से उनके पास किताब खरीदने आते हैं. अगर किसी को कोई नई किताब खरीदनी होती है तो उनसे पूछकर ही लेता है.
बेटा डॉक्टर, पति पत्रकार, दामाद आईपीएस: संजना ने बताया कि एक बार उनके बेटे ने उनसे कहा था कि आप मेरे पास आ जाइए बड़ा सा बुक स्टॉल खुलवा देते हैं लेकिन मैंने मना कर दिया. हालांकि, परिवार की तरफ से कोई मुझे रोका नहीं है. उन्होंने बताया कि एक भी दिन वह अपनी दुकान को बंद नहीं रखती. बारिश हो या आधी हो या तूफान हर दिन उनकी किताबों की दुकान खुली रहती है. रोज सुबह 9-10 बजे तक उनकी दुकान सज जाती है और शाम 8 या 9 बजे तक दुकान खुली रहती है. वह रोज खुद अपनी स्कूटी से चार पांच बड़े-बड़े बैग में किताबें लाती हैं. संजना को किताबों से इतना लगाव है कि हर दिन वह किताबें बेचने के साथ किताबें पढ़ती भी हैं. उन्हें भविष्य साहित्य के बारे में तमाम जानकारियां भी है.
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दिल्ली से बाहर जाने पर रंग मंच के बच्चे चलाते हैं दुकान: उनका कहना है कि मैं रहूं या ना रहूं लेकिन यह मेरी दुकान आगे भी चलती रहेगी. पति एक बड़े संस्थान से पत्रकारिता से रिटायर्ड हो चुके हैं. उन्हें साहित्य विरासत में मिला है. हालांकि, उन्होंने दिल्ली में अभी अपना कोई घर नहीं खरीदा, लेकिन अपने बच्चों को खूब पढ़ाया है. उनका बेटा एमबीबीएस करने के बाद एमडी कर रहा है.