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बढ़ रहा स्क्रीन टाइम बच्चों के लिए बेहद खतरनाक, अभी से संभल जाएं, वरना...

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Published : Jul 10, 2023, 2:56 PM IST

Updated : Jul 10, 2023, 3:12 PM IST

आज के भागदौड़ भरे तकनीकी दौर में बच्चे इलेट्रॉनिक गैजेट्स पर बहुत अधिक समय बिताने लगे हैं. बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है जो खतरनाक साबित हो रहा है.

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सर गंगा राम अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ धीरेन गुप्ता से बातचीत

नई दिल्ली: आजकल के तकनीकी दौर में इलेट्रॉनिक गैजेट्स ने हर किसी को अपना गुलाम बना लिया है. मोबाइल, टैब, लैपटॉप और कंप्यूटर जैसे गैजेट्स में से मोबाइल ने लगभग हर पीढ़ी को जकड़ लिया है. इसके इस्तेमाल का सबसे अधिक दुष्परिणाम एक से पांच साल तक के बच्चों पर देखने को मिल रहा है. कोरोना महामारी के दौरान जब हर किसी ने खुद को घरों में कैद कर लिया था, उस वक्त बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी हद तक बढ़ गया था. बच्चों को बाहर खेलने की मनाही थी.

बच्चों को व्यस्त रखने के लिए माता-पिता अक्सर उनके हाथ में फोन थमा दिया करते थे या फिर उन्हें टीवी के सामने बिठा देते थे. इसका दुष्प्रभाव अब सामने आ रहे हैं. दुर्भाग्य से अब बच्चों में कई तरह की बीमारियां देखने को मिल रही हैं. जैसे आँखे कमजोर होना, सोल्डर जाम, स्पीच प्रॉब्लम्स आदि. ऐसे में अब माता पिता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि किस तरह बच्चों से स्क्रीन टाइम को कम किया जाए ?

'ETV भारत' ने दिल्ली के करोलबाग स्थित सर गंगा राम अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट और सीनियर कंसलटेंट डॉ धीरेन गुप्ता से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर हो गई है. खास तौर पर जब बच्चे मोबाइल या टीवी देखते हैं तो वे अपनी पलकों को सामान्य से कम बार झपकाते हैं. इसका सीधा असर आंखों से जुड़ी म्यूकस मेम्ब्रेन पर पड़ता है. इसके कारण बच्चों को धुंधला दिखने लगता है. आंखों की नमी कम हो जाती है, जिससे बच्चों के सिर में दर्द भी शुरू हो जाता है और बच्चे चिड़चिड़े होने लगते हैं.

स्क्रीन टाइम बढ़ने से होने वाली बीमारियां
स्क्रीन टाइम बढ़ने से होने वाली बीमारियां

कौन-कौन सी बीमारियों की आशंका?: डॉक्टर धीरेन गुप्ता ने बताया कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों में नींद न आना, गर्दन में दर्द, आँखों का कमजोर होना, चिड़चिड़ापन, तनाव व मानसिक व शारीरिक विकास में कमी जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं. दो साल की उम्र वाले बच्चों में बोलने की शैली का विकास शुरू होता है. ज्यादा देर तक मोबाइल देखने वाले बच्चों में भाषा शैली का विकास भी बहुत देर से होता हैं. कुुल मिलाकर बच्चों के लिए ज्यादा देर तक मोबाइल या टीवी देखना बहुत घातक साबित हो रहा है.

कितना होना चाहिए स्क्रीन टाइम?: इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परीक्षा पर चर्चा के दौरान बच्चों के छह घंटे स्क्रीन टाइम पर चिंता जाहिर की थी. वहीं डॉक्टर ने बच्चों में बढ़ते मायोपिया (दूर की चीजें साफ न दिखना) की एक वजह बढ़ता स्क्रीन टाइम बताया है. उस समय डॉक्टरों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि यही स्थिति रही तो 2050 तक 40 से 45 फीसदी बच्चे मायोपिया के शिकार हो जाएंगे.

इस मसले पर डॉ धीरेन का मानना है कि अगर बच्चे की उम्र 2 साल से कम हैं, तो उसको मोबाइल नहीं देखना चाहिए. वहीं अगर बच्चा 2 साल से बड़ा है तो वह एक दिन में 30 मिनट से एक घंटे के लिए मोबाइल देख सकता है. लेकिन पेरेंट्स को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि बच्चा मोबाइल में क्या देख रहा है?

इन बातों पर ध्यान रखें

  1. 3 साल से पहले : कोई स्क्रीन टाइम नहीं
  2. 6 साल से पहले : इंटरनेट का प्रयोग नहीं
  3. 9 साल से पहले : वीडियो गेम नहीं
  4. 12 साल से पहले : सोशल मीडिया का कोई प्रयोग नहीं

स्क्रीन का पैरेंटल कंट्रोल जरूरी: इंटरनेट पर अच्छा और खराब हर तरह का कंटेंट मौजूद है. ऐसे में पैरेंट्स को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे मोबाइल, टैब या लैपटॉप पर क्या देख रहे हैं? इसके लिए पेरेंट्स को हर गैजेट पर पैरेंटल कंट्रोल ऑन करना चाहिए. डॉ धीरेन ने बताया कि पैरेंट्स को खास तौर इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि उनका बच्चा मोबाइल पर परोसे जाने वाले कौन से कंटेंट को देख रहा है ? इसके लिए पेरेंट्स को मोबाइल और अन्य सभी डिवाइज़ पर पैरेंटल कंट्रोल को अप्लाई करना चाहिए. इसके अलावा घर में मौजूद सभी फ़ोन को एक ही गूगल अकाउंट से लिंक करना चाहिए इससे पैरंट्स अपने बच्चों की सभी गतिविधियों को ट्रैक कर सकते हैं.

कैसे कम करें स्क्रीन टाइम?: स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों पर कई तरह के घातक प्रभाव देखने को मिले हैं. इसको देखते हुए अब पैरेंट्स सोचते हैं कि किस तरह बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम किया जाए. डॉ धीरेन ने बताया कि इसके लिए पैरंट्स को खुद जागरूक होने की जरुरत है, खास तौर पर छोटे बच्चों के पैरंट्स को. ऐसा इसलिए क्यों कि छोटे बच्चे वही कॉपी करते हैं जो वह अपने आस पास देखते हैं. इसलिए पैरंट्स को अपनी स्क्रीन टाइम में कमी लानी होगी और बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना होगा.

ये भी पढ़ें: छोटे-छोटे प्रयासों से करें बच्चों का स्क्रीन टाइम कम

सर गंगा राम अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ धीरेन गुप्ता से बातचीत

नई दिल्ली: आजकल के तकनीकी दौर में इलेट्रॉनिक गैजेट्स ने हर किसी को अपना गुलाम बना लिया है. मोबाइल, टैब, लैपटॉप और कंप्यूटर जैसे गैजेट्स में से मोबाइल ने लगभग हर पीढ़ी को जकड़ लिया है. इसके इस्तेमाल का सबसे अधिक दुष्परिणाम एक से पांच साल तक के बच्चों पर देखने को मिल रहा है. कोरोना महामारी के दौरान जब हर किसी ने खुद को घरों में कैद कर लिया था, उस वक्त बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी हद तक बढ़ गया था. बच्चों को बाहर खेलने की मनाही थी.

बच्चों को व्यस्त रखने के लिए माता-पिता अक्सर उनके हाथ में फोन थमा दिया करते थे या फिर उन्हें टीवी के सामने बिठा देते थे. इसका दुष्प्रभाव अब सामने आ रहे हैं. दुर्भाग्य से अब बच्चों में कई तरह की बीमारियां देखने को मिल रही हैं. जैसे आँखे कमजोर होना, सोल्डर जाम, स्पीच प्रॉब्लम्स आदि. ऐसे में अब माता पिता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि किस तरह बच्चों से स्क्रीन टाइम को कम किया जाए ?

'ETV भारत' ने दिल्ली के करोलबाग स्थित सर गंगा राम अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट और सीनियर कंसलटेंट डॉ धीरेन गुप्ता से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर हो गई है. खास तौर पर जब बच्चे मोबाइल या टीवी देखते हैं तो वे अपनी पलकों को सामान्य से कम बार झपकाते हैं. इसका सीधा असर आंखों से जुड़ी म्यूकस मेम्ब्रेन पर पड़ता है. इसके कारण बच्चों को धुंधला दिखने लगता है. आंखों की नमी कम हो जाती है, जिससे बच्चों के सिर में दर्द भी शुरू हो जाता है और बच्चे चिड़चिड़े होने लगते हैं.

स्क्रीन टाइम बढ़ने से होने वाली बीमारियां
स्क्रीन टाइम बढ़ने से होने वाली बीमारियां

कौन-कौन सी बीमारियों की आशंका?: डॉक्टर धीरेन गुप्ता ने बताया कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों में नींद न आना, गर्दन में दर्द, आँखों का कमजोर होना, चिड़चिड़ापन, तनाव व मानसिक व शारीरिक विकास में कमी जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं. दो साल की उम्र वाले बच्चों में बोलने की शैली का विकास शुरू होता है. ज्यादा देर तक मोबाइल देखने वाले बच्चों में भाषा शैली का विकास भी बहुत देर से होता हैं. कुुल मिलाकर बच्चों के लिए ज्यादा देर तक मोबाइल या टीवी देखना बहुत घातक साबित हो रहा है.

कितना होना चाहिए स्क्रीन टाइम?: इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परीक्षा पर चर्चा के दौरान बच्चों के छह घंटे स्क्रीन टाइम पर चिंता जाहिर की थी. वहीं डॉक्टर ने बच्चों में बढ़ते मायोपिया (दूर की चीजें साफ न दिखना) की एक वजह बढ़ता स्क्रीन टाइम बताया है. उस समय डॉक्टरों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि यही स्थिति रही तो 2050 तक 40 से 45 फीसदी बच्चे मायोपिया के शिकार हो जाएंगे.

इस मसले पर डॉ धीरेन का मानना है कि अगर बच्चे की उम्र 2 साल से कम हैं, तो उसको मोबाइल नहीं देखना चाहिए. वहीं अगर बच्चा 2 साल से बड़ा है तो वह एक दिन में 30 मिनट से एक घंटे के लिए मोबाइल देख सकता है. लेकिन पेरेंट्स को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि बच्चा मोबाइल में क्या देख रहा है?

इन बातों पर ध्यान रखें

  1. 3 साल से पहले : कोई स्क्रीन टाइम नहीं
  2. 6 साल से पहले : इंटरनेट का प्रयोग नहीं
  3. 9 साल से पहले : वीडियो गेम नहीं
  4. 12 साल से पहले : सोशल मीडिया का कोई प्रयोग नहीं

स्क्रीन का पैरेंटल कंट्रोल जरूरी: इंटरनेट पर अच्छा और खराब हर तरह का कंटेंट मौजूद है. ऐसे में पैरेंट्स को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे मोबाइल, टैब या लैपटॉप पर क्या देख रहे हैं? इसके लिए पेरेंट्स को हर गैजेट पर पैरेंटल कंट्रोल ऑन करना चाहिए. डॉ धीरेन ने बताया कि पैरेंट्स को खास तौर इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि उनका बच्चा मोबाइल पर परोसे जाने वाले कौन से कंटेंट को देख रहा है ? इसके लिए पेरेंट्स को मोबाइल और अन्य सभी डिवाइज़ पर पैरेंटल कंट्रोल को अप्लाई करना चाहिए. इसके अलावा घर में मौजूद सभी फ़ोन को एक ही गूगल अकाउंट से लिंक करना चाहिए इससे पैरंट्स अपने बच्चों की सभी गतिविधियों को ट्रैक कर सकते हैं.

कैसे कम करें स्क्रीन टाइम?: स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों पर कई तरह के घातक प्रभाव देखने को मिले हैं. इसको देखते हुए अब पैरेंट्स सोचते हैं कि किस तरह बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम किया जाए. डॉ धीरेन ने बताया कि इसके लिए पैरंट्स को खुद जागरूक होने की जरुरत है, खास तौर पर छोटे बच्चों के पैरंट्स को. ऐसा इसलिए क्यों कि छोटे बच्चे वही कॉपी करते हैं जो वह अपने आस पास देखते हैं. इसलिए पैरंट्स को अपनी स्क्रीन टाइम में कमी लानी होगी और बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना होगा.

ये भी पढ़ें: छोटे-छोटे प्रयासों से करें बच्चों का स्क्रीन टाइम कम

Last Updated : Jul 10, 2023, 3:12 PM IST
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