नई दिल्ली: राजधानी में दिल्ली सरकार के सरकारी स्कूलों के लिए सीबीएसई से एक अलग बोर्ड बनाने की प्रक्रिया का आल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन और वकील अशोक अग्रवाल ने आलोचना की है. उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों को सीबीएसई से हटाकर अलग बोर्ड बनाने का संभावित फैसला गरीब बच्चों के हक में नहीं हैं.
सीबीएसई बोर्ड से हटाने की मंशा गलत
अशोक अग्रवाल ने कहा कि 2015 में आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने ऐसी योजना लाई थी. लेकिन अभिभावकों के विरोध की वजह से वापस लेना पड़ा था. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने इस बात का मन बना लिया है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों को सीबीएसई बोर्ड से हटाकर अलग बोर्ड में लाएं. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार की ये सोच है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की आर्थिक पृष्ठभूमि कमजोर होती है. इसलिए उनका दिमागी समझ ज्यादा विकसित नहीं होती है. इसलिए वे सीबीएसई के पाठ्यक्रम को ठीक से समझ नहीं पाते हैं. अशोक अग्रवाल ने दिल्ली सरकार की इस सोच को तर्कहीन बताया.
लोग दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिला चाहते हैं
अशोक अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार ने एक कमेटी बनाई है जो एक-दो दिनों में अपनी अनुशंसा करने वाली है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों के लिए एक अलग बोर्ड बनाया जाए. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली और यूपी की सीमा पर रहने वाले यूपी के लोग अपने बच्चों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाना चाहते हैं. वो यूपी बोर्ड से अपने बच्चों को सीबीएसई में भेजना चाहते हैं. सरकारी स्कूलों में वो छात्र जाते हैं जिनके अभिभावक गरीब होते हैं. ऐसे में गरीब छात्रों को सीबीएसई बोर्ड से हटाकर एक अलग बोर्ड में लाने का कोई भी फैसला असंवैधानिक और मनमाना है. उन्होंने दिल्ली सरकार से ऐसे किसी भी फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की.