नई दिल्ली: हाल ही में, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि 12 साल के लंबे इंतजार के बाद, दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में एक हजार नई बसें आने जा रही हैं. बसों का इंतजार सबको है लेकिन इसके साथ ही सरकार के उन कदमों का भी इंतजार है जिनसे दिल्ली परिवहन निगम एक बार फिर अपनी बेहतर व्यवस्था के लिए जानी जा सके.
न सिर्फ बसें बल्कि परिवहन व्यवस्था में शामिल दिल्ली के ऑटो और टैक्सी चालक भी दिल्ली सरकार से बहुत सी उम्मीदें लगाए बैठे हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार अपने तीसरे कार्यकाल का दूसरा बजट पेश करने जा रही है और इसी बजट पर सब नजर गड़ाए बैठे हैं.
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पिछले साल किया था एलान
साल 2020-21 के बजट में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली परिवहन निगम के लिए 250 करोड़ रुपए तो वहीं क्लस्टर बसों के लिए 11,100 करोड़ की राशि निर्धारित की थी. सरकार ने बसों में महिलाओं के लिए फ्री यात्रा, जीपीएस, पैनिक बटन जैसी तमाम सुविधाएं सुनिश्चित करने और बहुमंजिला डिपो बनाने के लिए भी बजट में दावे किए थे. योजनाओं पर काम भी किया गया लेकिन कोरोना ने हर अगले काम को प्रभावित किया.
दिल्ली में बसों की स्थिति
मौजूदा समय में दिल्ली में डीटीसी और क्लस्टर बसों की कुल संख्या लगभग 6700 है. इसमें करीब 3700 डीटीसी की बसें तो वही अन्य क्लस्टर की बसें हैं. बीते 2 साल में दिल्ली में क्लस्टर स्कीम के तहत चलने वाली बसों में 1681 बसें जोड़ी गई हैं. डीटीसी की 1000 बसें अगर इस साल आ जाती है तो भी यह संख्या लगभग 7700 बसों की होगी जोकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 9000 के टारगेट से भी कम है.
डीटीसी को बंद करना चाहती है सरकार!
एक तरफ जहां सरकार दावे करती है कि दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में भी नई बसें आने जा रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ डीटीसी से जुड़े कर्मचारी लगातार ये आरोप लगाते हैं कि सरकार असल में डीटीसी को बंद कर देना चाहती है.
डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के ललित कहते हैं कि दिल्ली के बजट में इस बार अगर परिवहन क्षेत्र में कुछ मिलेगा भी तो वह क्लस्टर बसों के ही नाम पर मिलेगा क्योंकि दिल्ली सरकार की दिल्ली परिवहन निगम में कोई दिलचस्पी नहीं है.
ललित कहते हैं कि बसों को शामिल करने का प्रचार करना असल में लोगों को सिर्फ यह दिखाना है कि सरकार डीटीसी को बेहतर बना रही है जबकि सच्चाई है कि पिछले 5 साल से ऐसे ही दावे किए जा रहे हैं और डीटीसी के बेड़े में आज तक एक नई बस शामिल नहीं हुई है.
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ऑटो-टैक्सी चालक नहीं हैं खुश
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में बसों के रोल से अलग ऑटो टैक्सी का भी अहम रोल है. दिल्ली में करीब एक लाख ऑटो हैं तो वहीं टैक्सियों की संख्या हज़ारों में है. लास्ट माइल कनेक्टिविटी में दोनों ही अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन सरकार से दोनों ही खुश नहीं है.
ऑटो चालकों की समस्याएं जहां फिटनेस परमिट और नई-नई औपचारिकताओं के नाम पर हो रहे शोषण को लेकर हैं तो वहीं टैक्सी चालक ओला-उबर जैसी कंपनियों पर सरकार के रवैए से नाराज हैं. टैक्सी चालकों को सरकार की अन्य नीतियों से भी आपत्ति है जो उनके मुताबिक चालकों के हित में नहीं है.
विपक्ष को भी है शिकायत
परिवहन के क्षेत्र में विपक्ष भी सरकार पर लगातार हमला बोलता है. भारतीय जनता पार्टी के लिए पिछले साल हुए दिल्ली के चुनावों में दिल्ली परिवहन की व्यवस्था एक अहम मुद्दा थी. बजट में परिवहन के क्षेत्र में सरकार की जिम्मेदारी पूर्ण महामारी के बावजूद बड़ी इसलिए भी है क्योंकि यही ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार अक्सर बैकफुट पर नजर आती है.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदर्श गुप्ता पहले ही अपने सुझावों में दिल्ली सरकार को परिवहन के क्षेत्र में कुछ बेहतर कदम उठाने की सलाह दे चुके हैं. बसों की कम संख्या को बढ़ाने के लिए भी उन्होंने सरकार को कहा है.
क्या है बजट से मिलने की उम्मीद!
कुल मिलाकर सभी स्टेकहोल्डर्स को सरकार के बजट से आस तो है लेकिन इस बजट में क्या कुछ मिलेगा इसका पूर्वानुमान मौजूदा समय की स्थितियों को देखते हुए लगाना बहुत मुश्किल है. सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस बार बजट में नए एलान होने की उम्मीद है बहुत कम है.
हालांकि इसके बावजूद परिवहन के क्षेत्र में सरकार अलग-अलग योजनाओं के लिए आवंटन कर सकती है. दिल्ली परिवहन निगम की बसों में महिलाओं को किराए में मिल रही रियायत, डीटीसी के बेड़े में एक हजार बसें और 300 इलेक्ट्रिक बसों की संभावनाओं के साथ, डीटीसी के रिवाइवल के लिए कुछ कदमों के कयास लगाए जा रहे हैं.